जानें, हमदर्द रूह-अफजा की शुरुआत होने की कहानी

जानें, हमदर्द रूह-अफजा की शुरुआत होने की कहानी

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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शरबत का नाम हो और रूह-अफजा की बात ना आए…ऐसा हो ही नहीं सकता. गर्मी का मौसम है,  दो दशक पूर्व शादी विवाह के मौसम में  लोगों को रूह आफजा का शरबत किया जाता था। बारात, तिलक, घर आये अतिथियों को गर्मी में प्‍यास बुझाने के लिए रूह आफजा का शर्बत दिया जाता था। लेकिन बाजार में कई पेय पदार्थ आने से आज शादी विवाह में वह अपना स्‍थान जमा लिया है।

रूह-अफजा की शुरूआत एक हकीम ने गर्मी से बचाने वाले एक टॉनिक के रूप में की थी. चलिए आपको बताते हैं शुरूआती दिनों में बर्तन में बिकने वाला रूह-अफजा देखते ही देखते कैसे 400 करोड़ का ब्रांड बन गया.

बात 1907 की है, यूनानी हर्बल चिकित्सा के एक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने रूह-अफजा की गाजियाबाद में ईजाद किया था. साल था 1906, उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द नामक एक क्लीनिक खोला था और 1907 के दौरान दिल्ली में भीषण गर्मी और लू से काफी लोग बीमार पड़ने लगे. तब हकीम अब्दुल मजीद मरीजों को  इसी रूह-अफजा की खुराक देने लगे, लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह-अफजा कमाल का साबित हुआ. देखते ही देखते यह दवाखाना रूह-अफजा की वजह से पहचाना जाने लगा. और यह सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई. और लोग दवाखाने में दवा लेने नहीं, बल्कि रुह-अफजा लेने के लिए जाया करते थे, लेकिन अब रूह-अफजा दवा या टानिक ना रहकर एक प्यास बुझाने बाला शरबत बन गया है.
पहले रूह-अफजा को बर्तनों में दिया जाता था लेकिन बढ़ती मांगो को लेकर रूह-अफजा बोतलों में दिया जाने लगा है. रुह-अफजा की ब्रांड वैल्यू करीब  400 करोड़ रुपए है, तो ये थी टॉनिक से शुरु होकर करोड़ो लोगों तक पहुंचने वाली रूह-अफजा की कहानी.

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