महाभारत काल का जीवन्त प्रमाण है , कुन्तेश्वरधाम और पारिजात धाम
श्रीनारद मीडिया, लक्ष्मण सिंह, बाराबंकी (उतर प्रदेश):
सरयू उच्छल , जलधि तरंग तोया , बाराह बन के नाम से विख्यात जनपद बाराबंकी का पौराणिक दृष्टि से अपना अलग ही महत्व है जहां पर महादेवा कुंतेश्वर धाम कोटवा धाम पारिजात धाम समेत कई तीर्थ स्थल व पर्यटक स्थल विद्यमान हैं जहां पर सावन मास के प्रत्येक सोमवार पुरुषोत्तम मास व महाशिवरात्रि के मौके पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भगवान भूत भावन शिव की नगरी महादेवा तथा किंतूर स्थित कुंतेश्वर धाम पहुंच कर माता कुंती द्वारा स्थापित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक व रुद्राभिषेक करके मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं ।
सरयू नदी के तट पर शिव की नगरी महादेवा में देश के कोने कोने से लाखों की संख्या में कांवरिये व श्रद्धालु पुरुषोत्तम मास महाशिवरात्रि तथा सावन मास के प्रत्येक सोमवार पर पहुंचकर त्रिनेत्र धारी भगवान शिव का जलाभिषेक व रुद्राभिषेक करके मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं लोगों में यह धारणा है कि जिस प्रकार माता वैष्णवी के दर्शन करने के बाद भक्तगण भैरव नाथ के दर्शन अवश्य करते हैं उसी प्रकार से महादेवा में जलाभिषेक करने के बाद शिवभक्त ग्राम किंतूर स्थित कुंतेश्वर धाम में माता कुंती द्वारा स्थापित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक करने के पश्चात देव वृक्ष पारिजात का दर्शन करने जाते हैं ।
जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पूरब रामनगर टिकैतनगर रोड पर कस्बा बदोसराय के मुख्य चौराहे से 2 किलोमीटर उत्तर किंतूर में कुंतेश्वर धाम मंदिर स्थित है जहां पर माता कुंती द्वारा स्थापित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक करके श्रद्धालु मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं ।
कुंतेश्वर धाम व पारिजात धाम के संबंध में कहा जाता है कि द्वापर युग के महाभारत काल में पांडवों ने अपना कुछ समय सरयू नदी के तट पर व्यतीत किया था उस समय पांडवों की माता कुंती ने अपने पुत्रों से शिवार्चन करने की इच्छा प्रकट किया माता की आज्ञा पाकर महाबली भीम पर्वत मालाओं में विचरण करते हुए एक शिवलिंग को बहगी में रख कर चल दिए जब उन्हें चलने में असुविधा हुई तो उसी प्रकार का दूसरा शिवलिंग उन्होंने बहंगी के दूसरी ओर रख लिया जिसमें से एक शिवलिंग को माता कुंती ने अपने हाथों से सरयू नदी के तट पर प्रत्यारोपित कर दिया और उस स्थान का नाम कुंतेश्वर धाम रख दिया कालांतर में धीरे-धीरे वहां पर आबादी बसने लगी और एक गांव कुंती पुर के नाम से बस गया बाद में अपभ्रंश होकर किंतूर के नाम से विख्यात हो गया ।
एक समय की बात है महाभारत काल में उक्त स्थान पर पांडवों की माता कुंती और दुर्योधन की मां गांधारी एक ही समय पूजा करने आई और अपने अपने पुत्रों के विजय की कामना करने लगी इस पर वहां एक आकाशवाणी हुई कि कल प्रातः काल जो मेरा प्रथम शिवार्चन स्वर्ण पुष्पों से करेगा उसी का पुत्र महाभारत के युद्ध में विजई होगा माता कुंती सुनकर निराश हो गई क्योंकि अज्ञातवास के समय उनके पास कुछ भी नहीं था फिर इतना स्वर्ण कहां से लाती माता कुंती की निराशा का कारण जानकर भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन देवराज इनकी वाटिका को गए और वहां से पारिजात की एक डाल तोड़ कर लाए उसके स्वर्णमई आभा वाले पुष्पों से माता कुंती ने प्रथम शिवार्चन किया पांडवों को विजय श्री मिली यही कारण कि इसे कल्प वृक्ष भी कहा जाता है तत्पश्चात पारिजात की डाल को उन्होंने ग्राम बरोलिया में प्रत्यारोपित कर दिया गंगा दशहरा के समय इसमें स्वर्णमयी आभा वाले पुष्पा आते है जो अपनी भीनी भीनी सुगंध से सारे वातावरण को आच्छादित कर देते हैं इन स्थानों की पौराणिकता के संबंध में सुप्रसिद्ध कवि शिवराज शिव द्वारा कही गई पंक्तियां अक्षरसः सटीक बैठ रही है-
हर तरफ अलौकिक छटाएं , शिव नयन अभिराम से ।
हाथ खाली न गया कोई , कुंतेश्वर के धाम से ।।
कुंती मां के हाथ का , द्वापर कालयुगीन ।
कुंतेश्वर महादेव का , मंदिर अति प्राचीन ।।
शिवराज शिव की इन पंक्तियों से इस स्थान की पौराणिक सिद्ध होती है । इस मंदिर की स्थापना काल माता कुंती ने अपने हाथों से किया था जहां पर माता कुंती आज भी प्रथम शिवार्चन करती है शाम को मंदिर में चढ़ाई गई सारी सामग्री को हटा दिया जाता है रात में 12:00 बजे के आसपास कोई अदृश्य शक्ति यहां पर पूजा अर्चना करके चली जाती है जो अपने आप में रहस्य बना हुआ है लोगों की मान्यता कि यहां पर शिवार्चन करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं ऐसा लोगों का विश्वास है ।
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