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लड्डू बाबू मरने वाले हैं" कहानी विद्रूप समय का यथार्थ है"~चंद्रकला त्रिपाठी - श्रीनारद मीडिया

लड्डू बाबू मरने वाले हैं” कहानी विद्रूप समय का यथार्थ है”~चंद्रकला त्रिपाठी

“लड्डू बाबू मरने वाले हैं” कहानी विद्रूप समय का यथार्थ है”~चंद्रकला त्रिपाठी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

साहित्य,कला एवं संस्कृति के समृद्ध मंच कस्तूरी के तत्वावधान में कहानी परिचर्चा का आयोजन किया गया।
कस्तूरी मंच द्वारा संचालित होने वाली महत्वपूर्ण श्रृंखलाओं में एक “एक कहानी यह भी:कहानी परिचर्चा” की प्रथम कहानी के रूप में समय की महत्वपूर्ण कथाकार अल्पना मिश्र की कहानी “लड्डू बाबू मरने वाले हैं” परिचर्चा के केंद्र में थी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रकला त्रिपाठी ने की। वक्ता के रूप में रूपा सिंह(कहानीकार) एवं सुघोष मिश्र(युवा कवि) ने परिचर्चा में भाग लिया।

कथा वनमाली पत्रिका के जनवरी:2023 अंक में प्रकाशित कहानी “लड्डू बाबू मरने वाले हैं” उच्च शिक्षा में शोध की स्थिति एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारणों(बाजार,रेस आदि) पर व्यंग्य करती है। शिक्षा का बाजारीकरण वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है। भीड़ के बीच “भविष्य” का निर्माण शिक्षण संस्थाओं,शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों की गहरी पीड़ा है। कहानी बखूबी सभी के हिस्से की बात करती है।

सूत्रवाक्य:
चंद्रकला त्रिपाठी(वरिष्ठ साहित्यकार)
•लड्डू बाबू मरने वाले हैं कहानी की दुनिया हिंदी की दुनिया है।
•हमारे समय का यथार्थ खिसका हुआ है।
•शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास है।
•कहानी में लड्डू बाबू युवा मन की दुविधा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
•आज सामाजिक यथार्थ के विचलन को देखने की आवश्यकता है।
•कहानीकार की भाषा में भाषा की स्मृति सबसे सुंदर बात है।
•कहानीकार द्वारा कहानी का कल्चर बनाया जाता है।
•रचनाकार व्यंग्य और विदग्धता के साथ समय में प्रवेश करता है।

अल्पना मिश्र (कथाकार)

•जटिल समय में आसान लिखना आसान नहीं हैं।
•जटिलताओं,उलझनों में घिरी कहानियां हमारे आसपास हैं।
•हमारा परिवेश हमें गढ़ता है।
•रचनाकार परिवेश से विछिन्न होकर नहीं लिख सकता।
•लड्डू बाबू “भविष्य” हैं।
•रचनाकार की कोशिश पूर्वाग्रह को तोड़ना भी है।
•मेरी संवेदना उचित दिशा की खोज में भाग रहे युवाओं के साथ है।

रूपा सिंह(कहानीकार)

•शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक और छात्र दोनों महत्वपूर्ण हैं।
•बाजार ने मनुष्य की अनिवार्य आवश्यकताओं को प्रभावित किया है।
•शिक्षातंत्र और आजीविका के बीच का रिश्ता संवेदनशील है।
•विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास में शिक्षण संस्थाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
•शिक्षक_छात्र का रिश्ता बदले स्वरूप में सामने है।

सुघोष मिश्र (युवा कवि)

•अध्यवसाय और लक्ष्य के प्रति ईमानदारी विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है।
•संपर्क_स्रोत और जुगाड़ ने विद्यार्थियों को आकर्षित किया है।
•इस कहानी का नायक सपनों की दुनिया में जीने का आकांक्षी है।
•आज पात्रता का पैमाना बदल गया है।
•कहानी में जटिल कथानक को सरल भाषा में चित्रित किया गया है।
•विश्वविद्यालय हमें स्वप्न और विचार देते हैं।

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