बिहार के लाल बाबू जगजीवन राम का लोकतंत्र में अमूल्य योगदान रहा है,कैसे?
जन्मदिवस पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जब भी भारत की आजादी की बात होती है तो देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों में बाबू जगजीवन राम का भी जिक्र आता है। भारत के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रहे बाबू जगजीवन राम का 6 जुलाई 1986 को 78 वर्ष की उम्र में निधन हुआ था।
बाबू जगजीवन राम का भारत के संसदीय लोकतंत्र के विकास में अमूल्य योगदान रहा है। साथ ही उन्हें देश की दलित राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण चेहरे के तौर पर भी याद किया जाता है। उन्होंने दलितों के विकास के लिए हमेशा ही आवाज को मुखर रखा। आइये जानते हैं बाबू जगजीवन राम से जुड़े अहम तथ्यों के बारे में, कैसे उन्होंने बिहार के एक छोटे से गांव चांदवा से दिल्ली तक की राजनीति का सफर तय किया।
बिहार के भोजपुर में हुआ था ‘बाबूजी’ का जन्म
बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के चांदवा गांव में सोभी राम और वसंती देवी के यहां 5 अप्रैल 1908 में हुआ था। बाबू जगजीवन राम को बाबूजी कहकर भी बुलाया जाता था। उन्होंने आरा टाउन स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। बताया जाता है कि दलित समाज से आने के कारण उन्हें अपने शुरुआती दिनों में ही मुश्किलों को सामना करना पड़ा। उन्होंने दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को बहुत ही करीब से देखा। हालांकि, जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की।
बाबूजी’ के नाम दर्ज है वर्ल्ड रिकॉर्ड
- 1934 में उन्होंने कलकत्ता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की। इन संगठनों के माध्यम से उन्होंने दलित समाज के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया।
- बाबू जगजीवन राम ही थे, जिन्होंने 19 अक्टूबर 1935 को रांची में हैमंड कमीशन के सामने पेश होकर पहली बार दलितों के लिए वोटिंग के अधिकार की मांग की थी।
- 28 साल की उम्र में ही बाबू जगजीवन राम 1936 में बिहार विधान परिषद के सदस्य नामित किए गए थे।
- 1937 में जब कांग्रेस सरकार बनी, तो बाबूजी को शिक्षा और विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। हालांकि, 1938 में उन्होंने पूरे मंत्रिमंडल के साथ इस्तीफा दे दिया था।
- बाबू जगजीवन राम ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर उन्होंने 10 दिसंबर 1940 को गिरफ्तारी दी थी।
- ‘बाबूजी’ जगजीवन राम के नाम 50 साल तक सांसद रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है।
- बता दें कि बाबू जगजीवन राम के जन्मदिन को समता दिवस के रूप हर साल मनाया जाता है।
- लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार, बाबू जगजीवन राम की ही बेटी हैं।
1940 से 1977 कांग्रेस के सदस्य रहे बाबू जगजीवन राम
बाबू जगजीवन राम ने 1937 से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख भूमिका निभाई। वह 1940 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे और 1948 से 1977 तक कांग्रेस कार्य समिति में भी रहे। वह 1950 से 1977 तक केंद्रीय संसदीय बोर्ड में रहे। जगजीवन राम ने नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी की सरकार में अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी को संभाला। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो वह उस समय देश के रक्षा मंत्री थे। यहीं नहीं जब देश में हरित क्रांति आई, उस समय वह देश के कृषि मंत्री थे।
जब पीएम बनते-बनते रह गए बाबू जगजीवन राम
- देश में जब इमरजेंसी लगाई गई थी, उसके कुछ महीनों तक जगजीवन राम और इंदिरा गांधी के बीच रिश्ते सामान्य रहे थे।
- बताया जाता है कि इंदिरा गांधी ने बाबूजी से वादा किया था कि अगरे उन्हें पीएम का पद छोड़ना पड़ा तो वे ही अगले प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
- हालांकि, बाद में दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी और जगजीवन राम ने इमरजेंसी के हटाए जाने के बाद अपनी पार्टी बना ली।
- जगजीवन राम ने हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम से नई पार्टी बनाई।
- इस बीच जयप्रकाश नारायण के कहने पर उन्होंने जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा।
जेपी के समझाने पर सरकार में हुए शामिल
जनता पार्टी की जीत के बाद जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे, लेकिन मोरारजी देसाई पीएम के लिए चुने गए। हालांकि, बाबूजी ने मोरारजी देसाई के शपथग्रहण समारोह से दूरी बनाए रखी। जयप्रकाश नारायण के काफी समझाने के बाद वह कैबिनेट का हिस्सा बने और उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि इसी दौरान उनके बेटे बेटे की आपत्तिजनक तस्वीरों को लेकर भी जमकर हंगामा मचा था।
साल 1978 में उनके के बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ आपत्तिजनक मैग्जीन में छपी थी। हालांकि, बाद में उनके बेटे ने उस महिला से शादी कर ली थी। बता दें कि 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में जगजीवन राम को जनता पार्टी ने पीएम पद का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन जनता पार्टी को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
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