लालू यादव के सियासी सफर और निजी जीवन
भैंस की पीठ से सत्ता के शीर्ष तक लालू यादव का सफ़र
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार के राजनीतिक पटल पर लालू यादव एक अमिट सितारे की तरह हैं। चाहे सियासी बातें हो या बेबाक ठेठ अंदाज, लालू यादव एक ऐसे नेता हैं, जिनकी लोकप्रियता देश-विदेश तक रही। उनके फैसलों से अक्सर विरोधी चकमा खा जाते थे।
11 जून को लालू यादव का 76वां जन्मदिन है। ऐसे में जानेंगे कि आखिर कैसे बिहार के एक छोटे से गांव से आने वाले लड़के ने प्रदेश और देश की सियासत पर अपनी अलग छाप छोड़ी। लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज के फुलवरिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कुंदन राय और मां का नाम मरछिया देवी था।
गरीबी में बीता लालू का बचपन
लालू यादव का बचपन संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में अपनी गरीबी का जिक्र किया है। वे बताते हैं कि उन्हें खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिलता था। पहनने को कपड़े नहीं होते थे। गांव में वे भैंस और अन्य मवेशी चराते थे।
एक घटना ने गरीबी से जूझ रहे लालू की जिंदगी की दिशा तय कर दी। हुआ यूं कि लालू बचपन से ही बेहद शरारती थे। एक बार उन्होंने एक हींगवाले का झोला कुएं में फेंक दिया। जिसके बाद हींगवाले ने खूब हंगामा किया। इसके बाद तय हुआ कि लालू को पटना भेजा जाए।
(मां के साथ लालू यादव)
लालू यादव पढ़ने के लिए अपने भाई के पास पटना आ गए। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय के बीएन कॉलेज से एलएलबी और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री ली। फिर पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्होंने बिहार पशु चिकित्सा कॉलेज, पटना में क्लर्क का काम किया। उनके बड़े भाई इसी कॉलेज में एक चपरासी थे।
छात्र राजनीति से सियासत में एंट्री
लालू यादव ने पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पीयूएसयू) के महासचिव बने और अपने राजनैतिक जीवन की पहली सीढ़ी पर कदम रखा। इसके बाद 1973 में वे पटना यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण (JP Andolan) ने आपातकाल के खिलाफ बिगूल फूंक दिया। जेपी आंदोलन के साथ जुड़कर लालू प्रसाद यादव भी जेल गए। यहीं से लालू प्रसाद यादव की राजनीति चमकी। उन्होंने साल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और सबसे कम उम्र (29 साल) में सांसद बने।
जब लालू यादव के मौत की खबर फैली
आपातकाल (Emergency) के दौरान एक बार तो लालू प्रसाद यादव की मौत की अफवाह से सनसनी मच गई थी। सभी छात्र सड़कों पर उतर आए। उस वक्त तक लालू बतौर जाने-माने नेता में शुमार किए जाने लगे थे।
बात तब की है, जब आपातकाल के दौरान सरकार ने आंदोलनकारियों के खिलाफ सेना को उतार दिया था। उस दिन सेना ने आंदोलनकारियों को जमकर पीटा था। इस घटना के बाद यह अफवाह फैल गई कि सेना की पिटाई से बुरी तरह घायल लालू यादव की मौत हो गई है।
पूरे प्रदेश में खलबली मच गई। लालू परिवार में तो कोहराम मच गया। बाद में लालू यादव खुद सामने आए और उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है।
बड़ी बेटी का नाम मीसा क्यों?
साल 1973 में लालू यादव की शादी राबड़ी देवी के साथ हुई थी। तीन साल बाद यानी साल 1976 में लालू और राबड़ी देवी की एक बेटी हुई। उस समय आपातकाल में लालू यादव को आंतरिक सुरक्षा कानून यानी मीसा (MISA) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
जब लालू यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया
1990 में देश में अयोध्या राममंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था। उस समय भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली। जब आडवाणी रथयात्रा लेकर बिहार पहुंचे तो तब तक लालू यादव ने उनकी रथयात्रा रोकने की ठान ली।
23 अक्टूबर को बिहार के समस्तीपुर में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी के बाद देश की सियासत में खलबली मच गई। भाजपा ने केंद्र की वीपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। हालांकि, आडवाणी की रथयात्रा रोकने के बाद लालू एक ताकतवर राजनेता के रूप में उभरे।
लालू प्रसाद की जीवनी ‘द किंगमेकर, लालू प्रसाद की अनकही दास्तान’ के लेखक जयन्त जिज्ञासु दैनिक जागरण से बातचीत में बताते हैं कि “महात्मा गांधी अपने समय के उपज कहे जाते थे। लालू यादव भी अपने समय के विंडबनाओं, समाजिक असामनताओं के बीच उभरे थे। जेपी मूवमेंट ने एक तरह लालू यादव, सत्यपाल मलिक, शरद यादव को बनाया है। लालू यादव जी ने बिहार में एक सियासी प्रतिमान स्थापित किया। लालू प्रसाद ने लोगों को आत्महीनता से निकाला। जो लोग सुप्तावस्था में थे, उनको झकझोरा। उनके शब्दकोष और बातों में नेृतत्व की बात थी। कर्पूरी जी के बाद लालूजी ही जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।”
(रामजन्मभूमि मामले में लालू यादव ने जनता से की थी अपील)
‘गैया बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए’
जयंत आगे बताते हैं “लालू जी का सबसे ज्यादा फोकस पढ़ने-लिखने पर था। लालू प्रसाद ने आह्वान किया कि ‘पढ़ो या मरो’। इसी के तर्ज पर उन्होंने चरवाहा विद्यालय की स्थापना की। जिससे कौशल का विकास भी हो और पढ़ाई भी हो। गैया बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए। का भी नारा राजद सुप्रीमो ने ही दिया था।
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लिए तीन फैसले
मार्च 1990 में लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए। इस दौरान उन्होंने तीन अहम फैसले लिए।
- पहला उन्होंने ताड़ी की बिक्री पर लगे कर और उपकर को हटा दिया।
- उन्होंने 150 चरवाहा विद्यालय खुलवाए, जिससे चरवाहे मवेशी चराते समय पढ़ाई कर सकें।
- उन्होंने खेतिहर मजदूरों का न्यूनतम पारिश्रमिक को 16.50 रुपये से बढ़ाकर 21.50 रुपये कर दिया था।
सियासत की काली कोठरी की दाग से नहीं बच पाए लालू यादव
कहा जाता है कि राजनीति, काजल की कोठरी होती है, जो इसमें जाता है वह काला हो जाता है। लालू यादव भी इससे अछूते नहीं रहे। उनके दामन पर भी इस काली कोठरी के काजल के दाग लगे, जो उनके राजनीतिक जीवन के लिए नासूर बन गए।
राजद सुप्रीमो पर चारा घोटाले (Fodder Scam) का आरोप लगा। इस आरोप के बाद उन्होंने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लालू प्रसाद यादव के लिए यह टर्निंग प्वाइंट था। इसी घटना के बाद राबड़ी देवी प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद तो छोड़ दिया, लेकिन उनकी इच्छा थी कि उन्हें जनता दल का अध्यक्ष रहने दिया जाये, पर ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद लालू यादव ने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया।
रेल मंत्री रहते लालू के प्रबंधन की हुई तारीफ
लालू यादव ने रेल मंत्रालय संभाला तो उनके प्रबंधन का डंका देश-विदेश तक बजा। लालू यादव का दावा है कि रेल मंत्रालय संभालने के दौरान रेलवे ने काफी लाभ कमाया था। खास बात रही कि ये उपलब्धि बिना यात्री किराए और माल भाड़े में बढ़ोतरी किए हासिल की गई।
लालू यादव के रेल प्रबंधन की चारों तरफ तारीफ हुई। लालू के प्रबंधन का कौशन का लोग लोहा मानने लगे। यही वजह है कि 2004 में लालू ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद में छात्रों को प्रबंधन का गुर सिखाया।
छात्रों को संबोधित करते हुए रेल मंत्री लालू प्रसाद ने कहा था कि ‘रेलवे देसी गाय नहीं, जर्सी (दुधारू नस्ल) गाय है।’ तत्कालीन रेलमंत्री का ये जुमला लोगों को खूब भाया था।
लालू यादव एक अच्छे कुक, राहुल गांधी भी मुरीद
लालू यादव के निजी जीवन पर बात करें तो वो खाना खाने और बनाने दोनों के शौकीन हैं। हाल ही में, राहुल गांधी ने दिल्ली के जायकों का लुत्फ उठाया था। इस दौरान कुनाल विजयकर से बातचीत में राहुल गांधी ने लालू यादव के बनाए खाने की जिक्र किया।
कुनाल ने पूछा कि कौन से पॉलिटिशियन अच्छा खाना बनाता है, तब राहुल गांधी ने बताया कि लालू यादव बहुत अच्छा खाना बनाते हैं। जब वो दिल्ली में थे, वो उनके हाथ से बना खाना खा चुके हैं।
लालू यादव खाना खाने और बनाने के शौकीन
जयंत बताते हैं कि लालू प्रसाद शानदार कुक हैं। वे मटन और मछली बहुत अच्छा बनाते हैं। वो खाने-पीने के शौकीन हैं। उनको आम, लिट्ठी और दही बेहद पसंद हैं।
शरद यादव ने एक बार इंटरव्यू में कहा कि राजनीति में लालू थोड़े असावधान हो सकते हैं लेकिन निजी जीवन में बेहद शानदार व्यक्ति हैं।
लालू यादव का तकिया कलाम
लालू यादव ‘धत बुड़बक’ और ‘क्या फजुला बात करते हो, ये अक्सर कहते हुए सुने जाते हैं। लालू का ‘धत बुड़बक’ कहना काफी चर्चा में रहा और आज भी कॉमेडियन इसका काफी इस्तेमाल करते हैं।
जयंत बताते हैं कि लालू यादव का शब्दकोष, उनकी बात की शैली और लोगों से जुड़ने की कला उन्हें लोगों से अलग बनाती है। वे बिहार के जननेता है।
लालू को बचपन से मिमिक्री का शौक
लालू यादव को बचपन से मिमिक्री करना अच्छा लगता था। अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘गोपालगंज टू रायसीना, माय पॉलिटिकल जर्नी’ में वे बताते हैं कि उन्हें बेहद कम उम्र से ही मिमिक्री का शौक हो गया था।