बिहार में मुजफ्फरपुर का लंगट सिंह कॉलेज की है ऐतिहासिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आपने बिहार में लंगट सिंह कॉलेज, मुज़फ़्फ़रपुर का नाम सुना होगा। इसके संस्थापक थे लंगट सिंह। सन 1899 में इस कॉलेज की नींव उन्होंने रखी मगर तब इसका नाम ‘भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियट स्कूल’ था। उत्तर बिहार के छात्रों के लिए पटना का साइंस कालेज, मुजफ्फरपुर का एल एस कालेज और दरभंगा का सी एम साइंस कालेज में एडमिशन होना गौरव की बात थी।
चौंकाने वाली बात यह कि जिस जमाने में राजा जमींदार लोग शिक्षण संस्थान बनवाते थे, उस समय लंगट सिंह नामक मुज़फ़्फ़रपुर के धरहरा ग्राम में जन्मे तथा रेलवे कुली की नौकरी कर रहे 49 वर्षीय व्यक्ति ने इस कॉलेज की स्थापना की। इतना ही नहीं, BHU की स्थापना में उन दिनों 1,00,000 रुपये की मदद दी। वहां ये महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह के बुलावे पर गए थे।मात्र कक्षा 4 तक पढ़ाई करनेवाले इन महापुरुष ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिए इतना कुछ किया।
ये किसान परिवार में जन्म लिए थे। अल्प शिक्षा के बाद दरभंगा समस्तीपुर रेल लाइन पर टेलीफोन सेक्शन में काम करने लगे। आपने ग्रीयर विल्सन नामक अंग्रेज इंजीनियर को अपनी मेहनत और मितभाषिता से मोह लिया। इस कारण उनकी कृपादृष्टि बन गई। उनकी पत्नी ने भी इन्हें मदद की और रेलवे-टेलीफोन की ठेकेदारी मिल गई। लगभग साढ़े 7 वर्ष की इस नौकरी में वे कमाई की ऊंचाई पर थे।
जब महराजाधिराजदरभंगा नरेश उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना से पूर्व होनेवाली मीटिंग में लेकर गए तब लंगट सिंह की पहचान एक छोटी मोटी हस्ती के रूप में थी। बैठक के समय जब विश्वविद्यालय निर्माण हेतु चंदे की बात चलने लगी तब महामना पंडित मदन मोहन मालवीय प्रभृति विद्वानों और कुछ समर्थवान लक्ष्मीपुत्रों के सामने उन्होंने एक लाख रुपये दान देने का प्रस्ताव रखा। उस समय उस सभा में उपस्थित सभी विद्वतजनों की आंखें फटी रह गई थी।
सन 1899 में जब मुज़फ़्फ़रपुर में भूमिहार ब्राह्मण महासभा की बैठक इनके नेतृत्व में चल रही थी तब इन्होंने भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियट के लिए 13 एकड़ जमीन और आर्थिक सहायता देने का भी वचन दिया।ऐसी विभूतियों की चर्चा कम ही होती है। बिहार इन्हें सिर्फ कॉलेज के नाम से ही जानता है। इनकी जीवनी प्रथम बार रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा। इस लंगट सिंह कॉलेज में कभी रामधारी सिंह दिनकर व्याख्याता के पद पर नौकरी करते थे।
लंगट सिंह कॉलेज , जिसे एलएस कॉलेज के नाम से जाना जाता है , उत्तर बिहार का प्रमुख और सबसे पुराना उच्च शैक्षणिक संस्थान है, जिसका बिहार के शैक्षिक, साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में अमिट प्रभाव है। इसकी स्थापना 1899 में व्यापक सामुदायिक समर्थन द्वारा उभरते भारतीय राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि में की गई थी। इसकी स्थापना में सबसे प्रमुख भूमिका बाबू लंगट सिंह ने निभाई। 1900 के वर्ष में, कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध हो गया। इसे 1915 में सरकारी कॉलेज घोषित किया गया और बाद में 1917 में पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दिया गया।
1952 में, बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना मुजफ्फरपुर में मुख्यालय के साथ की गई और कॉलेज इस नए विश्वविद्यालय से संबद्ध हो गया। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कॉलेज वर्तमान बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से काफी पुराना है। बीआरबिहार विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग 1979 में इस संस्थान से विभाजित हो गए। 1984 से इस कॉलेज में विभिन्न धाराओं की स्नातकोत्तर पढ़ाई बहाल कर दी गई है। कॉलेज में इंडो-सरसेनिक स्थापत्य शैली की विशेषता को समाहित करने वाली एक विशाल और शानदार इमारत है। इसे ऑक्सफोर्ड के बैलिओल कॉलेज की तर्ज पर बनाया गया था।
इस कॉलेज में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, रामधारी सिंह दिनकर, समेत कई महान विभूति अपनी सेवा दे चुके हैं। 11 अप्रैल 1917 को चंपारण जाते समय महात्मा गांधी एक रात के लिए यहां रुके थे।
कॉलेज के भवन का डिजाइन 1915 में आर्किटेक्ट जेमयुनिक ने तैयार किया है। उन्होंने न्यू पटना सिटी का भी डिजाइन तैयार किया था। 1917 में कॉलेज का भवन बनना शुरू हुआ। 1952 में बनकर तैयार हो गया। कॉलेज को इंडो आर्सेनिक डिजाइन में तैयार किया गया।
1900ई. में पहली बार इस कॉलेज को कोलकत्ता विवि से सम्बद्धता मिली। फिर 1915 में पटना विवि से और 1952 में बिहार विवि के स्थापना के बाद 1979 को एलएस कॉलेज को डिग्री की स्थाई मान्यता मिली।
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