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गुरु जी घनश्याम शुक्ल से आख़िरी भेंट

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आलेखः  राजीव कुमार सिंह,आखर सदस्य।

श्रीनारद मीडिया‚ सेंट्रल डेस्कः

अबकि साल के शुरू में ही गुरुजी के तबियत ख़राब होखे के खfबर मिलऽल। आत्मा में एक अजीब डर बइठ गइल। ओही बीच कोरोना के क़हर आइल। क़हर के बीचे गुरुजी के इलाज चलऽल। ईश्वर के कृपा भइल, गुरुजी के इलाज सफल रहऽल। गुरुजी घरे अइनी। मन के धुक धुकी के आराम मिलऽल। लेकिन गुरु जी से मिले ख़ातिर , उनका के एक नज़र देखे ख़ातिर मन छटपटात रहे। संजय भइया आ प्रियांशु से गुरुजी की हाल चाल लगातार मिलऽत रहे।

कोरोना काल के बाद एक बार फिर राखी पे गाँवे जाए के मौक़ा मिलऽल। गुरुजी भी स्वस्थ हो के पंजवार, अपना गाँवे आ गइल रहीं। 26 अगस्त के अपना छोट भाई के साथे गुरु जी से मिले गइनी। संजय भइया बतइलें कि गुरुजी कॉलेजे पे होखेम। पिछला कई साल से प्रभा प्रकाश डिग्री ही गुरुजी के डेरा रहे। कॉलेज से अभी 200- 300 मीटर दूरे रहऽनी कि गुरु जी लउक गइनी…

कॉलेज के ओसारा में ही दुनो गोड़ मोड़ के चउकी पे धऽ के कुर्सी पे बइठऽल किताब पढ़ऽत रहऽनी। हमरा के देखऽते फट से खड़ा होके… “अरे अरे अरे राजीव बाबू, आवऽ आवऽ… एने कइसे”

“जी… रउए से मिले आइल रहऽनी” हम क़हऽत गोड़ छूये ख़ातिर जइसहीं निहुरनी तले गुरुजी गोड़ पीछे खिंचऽत हाँथ धऽ के सीना से लगा लेनी। गुरुजी के आदत रहे कबो केहु के आपन गोड़ ना छूये देस।

हमनी के कुर्सी पे बइठा के अपने चउकी पे हमार हाँथ अपना दुनो हाँथ में पकड़ के बतियावे लगऽनी “आउर सुनावऽ… घर परिवार में सब केहु ठीक बा नू??”

“बस गुरुजी घर में सब ठीक बा। रउये से मिले के इक्षा रहे… कइसन बानी… अब तबियत कइसन बा” हम पुछऽनी।

“हम एक दम स्वस्थ बानी। कौनो परेशानी, कौनो तकलीफ़ नइखे। बाक़ी… देखऽ ना हो… हमरा कारण बहुत लोग के बहुत दिन ले परेशानी भइल… हम बहुत लोग के तकलीफ़ देनी” कहऽत-कहऽत गुरुजी के मुँह उतर गइल।

गुरुजी से केहु के परेशानी, तकलीफ़ ना देखऽल जात रहे। दोसरा के दुःख, तकलीफ़, पीड़ा, चिंता… के उ आपन बना लेत रहलें। जीवन भर उहाँ के दोसरे के दुःख तकलीफ़ दूर करे ख़ातिर संघर्षरत रह गइनी।

अपने समाज के पाखंड के ख़िलाफ़ खड़ा भऽ गइनी। दबऽल कुचलऽल वर्ग के आवाज़ बनऽनी। लइकियन के सम्पूर्ण विकास ख़ातिर लड़ाई लड़नी। लाइब्रेरी खोलऽनी, संगीत महाविद्यालय के खड़ा कइनी। लइकियन ख़ातिर कॉलेज शुरू कइनी। खेल संस्थान के नीव रखऽनी। उनका अपना पूरा जीवन जे भी कमजोर, मजबूर इंसान भेंटाइल, ओकर लाठी बन गइनी।

दु-अढ़ाई घंटा के बतकही में गुरुजी आपन बिमारी आपन तकलीफ़ पे ना बात कर के अस्पताल में अपना अग़ल बग़ल आला बेड पे के मरीज़न के तकलीफ़, उनका देख रेख करत में नर्स के भइल परेशानी, परिवार के लोगन के भइल परेशानी पे ही बात कइनी। मैरी कॉम खेल अकैडमी पे बात करऽत उनका आँख के चमक देखे लायक रहे।

हम चले के बात जइसही कइनी तऽ “अरे अइसे कइसे… अभी घरे चले के बा… बिना खइले पिएले नइखे जाए के” कहऽत खड़ा हो गइनी। हम “ना ना” करते रह गइनी लेकिन गुरु जी के ज़िद के आगा केहु के चलऽल रहे कि हमार चलित। लेकिन गुरुजी के ज़िद आम आदमी के स्वार्थ से प्रेरित ज़िद लेखा ना रहे। उंकर ज़िद तऽ चट्टान पे फूल उगा देवे आला रहे। पाँक से भरऽल गढ़ऽहा के स्वच्छ, पीए लायक निर्मल पानी से भरऽल पोखर में बदऽल देवे आला रहे। डकइत के साधु बने पे मजबूर कर देवे आला रहे। अइसना ज़िद्दी इंसान के आगा तऽ भगवानो के ना चले, इंसान के कहाँ चली।

लइकाइएँ से गाँधी जी पे पढ़ऽले रहनी। लेकिन गांधी से मिले के मौक़ा पहिला हाली तब मिलऽल जब हम साल 2013 में पंजवार गइनी। गुरुजी से मिलनी।

पंजवार से वापिस आ के नबीन भइया से बात होत रहे आ जब हम उनका के बतइनी की “गुरुजी के एको गो फ़ोटो ना खिंचनी” तऽ भइया काफ़ी निराश भइलें। हम भइया के ख़ुश करऽत कहनी “अरे भइया फ़ोटो के का बा फेन लिया जाई। गुरुजी एकदम फ़र्स्ट क्लास बानी, तनी कमजोर भइल बानी लेकिन बिमारी से निकलऽल बानी तऽ तनी मनी कमजोरी तऽ रहबे करी.. बाक़ी ठीक बानी… अभी ढेर मौक़ा मिली”… ई बात हम अइसहीं ना कहले रहऽनी। विश्वास से कहऽले रहऽनी। गुरुजी से भेंट कइला के बाद, उनका के देखला के बाद, उनका से बात कइला के बाद जवन विश्वास बनऽल रहे ओह विश्वास के दम पे कहले रहऽनी।

ना मालूम रहे हमार विश्वास एतना जल्दी टूट जाई।

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