नीतीश का साथ छोड़ना BJP के लिए बना वरदान
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार का निकाय चुनाव राजनीतिक झंडे के साथ नहीं लड़ा जा रहा। लेकिन राजनीतिक पार्टियों की भागीदारी पर्दे के पीछे से जबर्दस्त दिखी। कुढ़नी उपचुनाव में महागठबंधन की हार हुई और भाजपा का अतिपिछड़ा कार्ड सुपरहिट रहा था। निकाय चुनाव के दूसरे फेज के परिणाम ने भी महागठबंधन को फेल किया और बताया कि शहरी इलाकों में भाजपा का जनाधार मजबूत है। 17 नगर निगमों में से भाजपा और महागठबंधन की ताकत समान दिखना इसका संकेत है।
राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने लालू प्रसाद की मौजूदगी में राजद राज्य परिषद की 21 सितंबर को पटना में हुई बैठक में कहा था कि राजद और जदयू कार्यकर्ताओं के दिल आपस में नहीं मिले हैं। इसको उन्होंने बड़े चैलेंज के रुप में बताया था। निकाय चुनाव ने उनकी बात को सही साबित कर दिया है। इस चुनाव का असर 2024 और 2025 के चुनावों में पड़ना तय है।
अतिपिछड़ों ने कुढ़नी की तरह पटना में भी नीतीश का साथ छोड़ा
पटना की नई मेयर सीता साहु और नई डिप्टी मेयर रेमशी चंद्रवंशी बनी हैं। महागठबंधन की दो पार्टियों ने अलग-अलग उम्मीदवार देकर भाजपा की उम्मीदवार सीता साहु को हराने में कोई कमी नहीं की। राजद समर्थित अफजल इमाम की पत्नी डॉ. महजबी और जदयू समर्थिक बिट्टू सिंह की पत्नी विनिता सिंह ने खूब वोट काटा, लेकिन राजद और जदयू चित हो गए। यह इस बात का संकेत है कि यादव वोट बैंक और मुसलमान वोट बैंक भले महागठबंधन के साथ रहा, लेकिन अतिपिछड़ा वोट बैंक ने कुढ़नी की तरह पटना में भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया।
यहां बड़ी बात यह है कि राजद नेता तेजस्वी यादव को लेकर जैसी हवा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बनाई है और बार-बार उनकी तरफ इशारा करते हुए कह रहे हैं कि आगे इन्हीं को देखना है। उसका कोई असर पटना में मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर नहीं दिखा।
महागठंधन जीतने से ज्य़ादा भाजपा को हराने के लिए लड़ा
तेजस्वी यादव लगातार नौकरी देने, रोजगार देने की बात कर रहे हैं। लेकिन पटना की जागरूक जनता ने इन वायदों को दरकिनार कर दिया। बहुसंख्यक हिन्दुओं ने भाजपा के पक्ष में अपनी एकजुटता दिखायी। वोटों के अंतर से आपको भविष्य की राजनीति का आभास हो जाएगा। पटना से मेयर बनने वाली सीता साहु को 1 लाख 54 हजार 791 वोट मिले। डॉ. महजबी को 75 हजार 185 वोट मिले। विनीता बिट्टू सिंह को 64682 वोट मिले।
महागठबंधन की स्ट्रेटजी थी कि वोटों को बांटा जाए, ताकि भाजपा समर्थित सीता साहु हार जाए! ऐसा लगता है महागबंधन जीतने के लिए चुनाव ही नहीं लड़ रहा है। जीतने के लिए लड़ता तो किसी एक उम्मीदवार को सहमति के साथ उतारा जाता। लेकिन यहां तो भाजपा को हराना सबसे बड़ा काम था! इस लक्ष्य के चक्कर में हालत यह हुई कि महागठबंधन समर्थित मेयर पद के दोनों उम्मीदवारों ने खूब वोट लाया, लेकिन अंततः एक-दूसरे को ही लेकर डूबे।
2024-25 की झांकी के रुप में इसको लेना चाहिए
जदयू और राजद में रह चुके वरिष्ठ नेता और लेखक प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि अब गांवों का मीडिल क्लास शहर में रह रहा है और वह अपने गांव आता-जाता भी रहता है। नगर निकाय रिजल्ट से यह बात सामने आई कि महागठबंधन बनाकर सेकुलर पार्टियां 2024 और 2025 का ख्वाब बना रहे हैं और गणित का सिद्धांत लागू कर रहे हैं। महागठबंधन के बारे में आम धारणा बनती जा रही है कि यह ज्यादा जोगी मठ उजाड़ हो रहा है। इसे भाजपा वरदान के रुप में ले रही है।
नीतीश की उपस्थिति भाजपा के लिए कष्टप्रद हो गई थी। नगरीय वोट बताता है कि भाजपा बहुत आगे है महागठबंधन से। 2024-25 की झांकी के रूप में इसको लेना चाहिए। ख्वाब में डूबे रहने का अधिकार सभी को है। हमारे जैसे समाजवादी लोग देख रहे हैं कि महागठबंधन के बड़े नेता भाजपा का रास्ता मजबूत कर रहे हैं। महागठबंधन में ऑपरेशन की जरूरत है लेकिन यह संभव नहीं है।
यह जीत ज्यादा ताकतवर है, सीधे जनता की जीत
राजनीतिक विश्लेषक ध्रुव कुमार कहते हैं कि यह सही है जदयू और राजद के कार्यकर्ताओं के दिल नहीं मिल रहे हैं! बिहार की भविष्य की राजनीति किस ओर जा रही है, यह निकाय चुनाव इसका संकेत है। पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोट भाजपा के साथ है। बहुत ज्यादा मुस्लिम तुष्टीकरण महागठबंधन के लिए भारी पड़ता जा रहा है। इस बार तो पटना मेयर या डिप्टी मेयर की जीत जनता के सीधे मतदान की जीत है। इसलिए यह ज्यादा ताकतवर है।
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