चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है–सीवान

चंदन है इस देश की माटी
तपोभूमि हर ग्राम है–सीवान

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जब अपने माटी की सुगंध गीत बनकर मस्तिष्क में गूंजती है तब आंखों का रेगिस्तान हरा-भरा मैदान बन जाता है। ऐसा ही कुछ है इस सीवान के साथ जो उत्तर प्रदेश के साथ सटकर बतियाता है, सरयू नदी की कलकल बहती धारा को सुनता है और कहता है-

मैं सीवान हूॅ, मै सीवान था और सीवान ही रहूंगा।

एक समय था जब सारण (छपरा) के एक अनुमंडल के रूप में सीवान का पालन-पोषण होता था, व्यस्क होने पर सारण की तीन टहनियां ‘कलम’ के रूप में स्थापित हुई जिसमें एक सीवान दूसरा छपरा और तीसरा गोपालगंज। यही सीवान 3 दिसंबर 1972 को एक जिले के रूप में स्थापित हुआ और आज इन पचास वर्षों में अपनी सुषमा और सुगंध को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया।

इस मिट्टी के कण-कण में कला की सुरभि छिपी हुई है यही कारण है कि 1842 में सीवान के निकट उखई गांव में जन्म लिए खुदा बख्श खाॅ साहब के नाम से विश्व प्रसिद्ध पुस्तकालय पटना में स्थापित है। साथ ही देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेंद्र प्रसाद को इस धरती की कोख ने जन्म दिया है।

मौलाना मजहरूल हक बृजकिशोर बाबू की राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति की कहानियाँ पुस्तकों में भरे पड़े हैं। 1942 की लड़ाई में पटना के सेक्रेट्रिएट पर झंडा फहराने के क्रम में नरेंद्रपुर के उमाकांत सिंह का नाम कौन भूल सकता है। सीवान के गौरवपूर्ण अतीत में वर्धमान महावीर, चंद्रगुप्त, चाणक्य, सम्राट अशोक के साथ-साथ भगवान बुद्ध की न जाने कितनी भूमिकाएं यहां के धरती में अंकित है।

समय के साथ ही इन 50 वर्षों में सीवान सदैव नए तेवर के साथ बढ़ता रहा है। परिवर्तन के दौर में भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-सामाजिक व राजनीतिक तत्वों ने इसे प्रभावित किया है। सीवान की वाचिक परंपरा व लेखन परंपरा ने अपने कालबोध को समेट कर रखा है,यही कारण है की इसके गर्भ में न जाने कितने रत्न भरे पड़े हैं।

सबसे पहले सीवान के भूगोल की बात की जाए तो यह 2219 वर्ग किलोमीटर में फैला चौकोर आकार की भूमि है। पूरब में इसकी पितृभूमि सारण है तो पश्चिम में उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला है वही उत्तर मिस के छोटे भाई गोपालगंज हैं तो दक्षिण में सरजू मैया की कलरव करती कल-कल धारा है। जिले में कई छोटी-बड़ी नदियां भी हैं जिसमें दहा, झरही,धमई,सोना,सियाही और निकरी नदियाॅ है। नहरों का विस्तार पश्चिम से लेकर पूरब तक है।

सीवान की ऊंचाई समुद्र तल से 64 मीटर यानी 210 फीट है। जिले का संपूर्ण स्थल नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़क मिट्टी से निर्मित मैदान है, जिससे भूमि उपजाऊ है।यहां के अन्नदाता धान, गेहूं, मक्का, गन्ना जैसे फसलों का उत्पादन करते है जिससे 37 लाख लोगों का पेट भरता है। यहां के रहवासी वर्ष के छह ऋतुओं का आनंद उठाते है।

सीवान जिले के इतिहास पर बात की जाए तो यह संपूर्ण भू-भाग सिंधु तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ निर्मित मैदान का छोटा सा हिस्सा है। जिले के दक्षिण भाग में सरयू नदी बहा करती है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ होय के अनुसार सालवान या शवयान से इस सीवान की उत्पत्ति हुई है क्योंकि 647 ईसवी में इस पर चीनी तिब्बती आक्रमण भी हुआ था आक्रमण के बाद यह पूरा क्षेत्र ध्वस्त हो गया यहां की हरी-भरी भूमि सालवन में बदल गई संभवत इसी सालवन से सीवान शब्द का जन्म हुआ है।

आगे बताते हैं कि बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध वैशाली से कुशीनगर जाने के क्रम में सीवान के निकट ही पपौर नाम के गांव में ठहरे थे, जहां उन्हें विषाक्त भोजन खिलाया गया, जिससे वह अस्वस्थ हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। उनके मृत शरीर को शवयान से कुशीनगर ले जाया गया। अनुमान लगाया जाता है यही शवयान आगे चलकर सीवान के रूप में परिवर्तित हो गया। एक दूसरी विचारधारा के अनुसार सीवान सीमांत शब्द का अपभ्रंश है जो एक समय में मगध, कौशल नेपाल का सीमा था। आप जब इसकी भौगोलिक बनावट को देखेंगे तो यह सारण क्षेत्र गंडक और सरयू नदी के दोआब का क्षेत्र है इसलिए एक समय यहां काशी के शासक शिवमान भी राज किया करते थे।

इतिहासकार बताते हैं कि उन्हीं के नाम पर इसका नाम सीवान पड़ा लेकिन यह बात प्रमाणित है कि यह क्षेत्र हमेशा से काशी के निकट रहा है और आज भी है। डीएवी के पूर्व प्रचार्य डॉ प्रभुनाथ पाठक बताते हैं कि ॠगवैदिक काल में कोई भी साक्ष्य इस जिले में अप्राप्त हैं। वैदिक युग के उत्तर भाग में इस जिले का प्रसार हुआ और ईसा पूर्व 600 के आसपास यह क्षेत्र कौशल जनपद का भाग था। कुछ विद्वान इसे महाकौशल का अंग मानते हैं। ईसा पूर्व 500 में इस जिले पर मगध का अधिपत्य स्थापित हो गया। आगे चलकर कई शासक रहे, यह भी बताया जाता है कि कुछ समय के लिए चीनी राजा का भी यहां अधिकार था।


इस्लाम का प्रचार प्रसार करने हेतु कई सूफी चिंतक मोहम्मद गोरी के साथ भारत आए। उनके साथ आए ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने चिश्ती संप्रदाय की स्थापना की और उनके अनुयायी पूरे उत्तर भारत में फैल गए। इसी क्रम में शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने हेतु सीवान की धरती पर पहली बार चिश्ती संप्रदाय के मखदूम सैयद हसन चिश्ती 1325 ईस्वी में दहा नदी के किनारे हसनपुरा में ठहरे और पूरे क्षेत्र में घूम-घूम कर इस्लाम धर्म व संस्कृति का प्रचार करते हुए व्यवहारिक शिक्षा, एकता, समरसता की बातें बताएं।

आगे चलकर शाहजहां और औरंगजेब के काल में भी इस क्षेत्र में कई खानकाह और दरगाह के स्थापित होने का प्रमाण मिलता है, साथ ही औरंगजेब ने पटना के मुस्लिम संत अर्जन शाह को सीवान को भेजा जहां उसने लकड़ी दरगाह में खानकाह की स्थापना कि, जो आज भी देखा जा सकता है।

बिहार के उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित श्रीमान जिले की राजनीति पर बात करें तो यह 1848 में छपरा जिले के एक अनुमंडल के रूप में स्थापित हुआ और 03 दिसंबर 1972 (रविवार) को जिला बना।

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय नगर मुख्यालय के गांधी मैदान के एक समारोह में इसकी घोषणा की।
आंकड़ों के रूप में सीवान में कुल 1528 गांव, 283 पंचायत, 41 जिला परिषद क्षेत्र,411 बीडीसी सदस्य, 4086 वार्ड और 283 मुखिया व 283 सरपंच हैं। वहीं इसके विधानसभा क्षेत्रों पर बात करें तो यहाँ आठ विधानसभा सीवान सदर, दरौली, रघुनाथपुर, दरौंधा, बड़हरिया, महाराजगंज और गोरियाकोठी है, तो 2 लोकसभा क्षेत्र सीवान और महराजगंज है। सीवान में एक नगर परिषद सीवान नगर परिषद 45 वार्ड के साथ 1869 से स्थित है तो सात नगर पंचायत जिसमें मैरवा, महाराजगंज, बसंतपुर गोपालपुर, हसनपुरा, आंदर और गुठनी है।
जिले की आबादी लगभग 37 लाख है,जिसमें 71.59% साक्षर है,इसमें 77.59% पुरुष व 60.35% महिला साक्षर है।

जबकि जिले का घनत्व 1501 प्रति वर्ग किलोमीटर है। यहां उच्च विद्यालय 95 हैं तो प्राथमिक व मधय विद्यालयों की संख्या 2489 है। महाविद्यालयों की संख्या सात है, यहां का लिंगानुपात 988 प्रति हजार पुरुष पर है। जिले में दो अनुमंडल सीवान सदर और महाराजगंज हैं। जब सीवान अनुमंडल था तब यहां 13 प्रखंड हुआ करते थे,1972 में दो प्रखंड बसंतपुर व भगवानपुर सारण के मढ़ौरा से अलग होकर सीवान में जुड़ गये। सीवान में प्रखंडों की संख्या 15 हो गई आगे चलकर लकड़ी नवीगंज, नौतन,जीरादेई और हसनपुरा प्रखंड बनाए गए जिससे जिले में प्रखंडों की संख्या 19 हो गई है।

वहीं 1991 में महाराजगंज को अनुमंडल बनाया गया। जिले में सबसे पुराने विधायक कांग्रेस के विजय शंकर दुबे हैं जो 1980 में कांग्रेस की ओर से रघुनाथपुर से चुनाव जीते थे और आज भी महाराजगंज के विधायक हैं तो इस 50 वें वर्षगांठ पर सोवान के लिए गौरव की बात है कि हमारे सीवान सदर विधायक अवध बिहारी चौधरी बिहार विधानसभा के अध्यक्ष है।आप सीवान सदर से छठवीं बार विधायक हैं, 1985 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे और आज राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं।


सीवान में धार्मिक आधार पर जनसंख्या का वितरण समझे तो यहां हिंदू 80.25%, मुस्लिम 19.1 %है। इसमें सामान्य वर्ग 30 .12%,पिछड़े वर्ग 58.02%, अनुसूचित जाति 11.28% और अनुसूचित जनजाति,0. 58% है।

सत्यं वद धर्मं चर।स्वाध्यायत मा प्रमदः।

अर्थात्‌ (सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में आलस मत करो)।

सीवान की अर्थव्यवस्था पर बात की जाए तो जिला कृषि प्रधान है इसकी कुल भूमि के 65% हिस्से पर कृषि की जाती है, मुख्य रूप से धान, गेहूं, मक्का,मोटे अनाज उपजाये जाते हैं। अब थोड़ी मात्रा में ही गन्ना की फसल बोई जाती है। जिला बनने के बाद यहाँ तीन चिनी मीलें थी, जो किसानों के नगदी फसल गन्ना की पर्याय थी। लेकिन यह मीले बंद हो गई, किसान मजदूरी करने कोलकाता, दिल्ली, गुजरात, पंजाब और चेन्नई निकल गए।

आलम यह है कि आप देश के किसी भी कोने में चले जाएं सीवान का एक व्यक्ति अवश्य मिल जाएगा। पूरी अर्थव्यवस्था आज मनीआर्डर इकोनामिक पर टिक गई है। भारी संख्या में यहां के लोग खाड़ी के देशों में रहते हैं और कहा जाता है कि ‘अरब के दरब से’ मालामाल है सीवान। यही कारण है कि यहां सबसे अधिक पासपोर्ट बनाई जाती हैं और यहां के लोग खाड़ी के विभिन्न देशों में काम करते हैं।

कुटीर उद्योग के रूप में जमालपुर की बुनी हुई चादरें, हरीहास का टिकुली उद्योग प्रसिद्ध रहा है। आज कुकुट पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन के रूप में कई परिवारों के द्वारा यह काम किया जा रहा है। पलायन यहां की मुख्य प्रवृत्ति है, सालों भर रेल गाड़ियों में आरक्षण की समस्या बनी रहती है लोग बोगियों में ठुस-ठुस कर देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने जाया करते हैं और मनीआर्डर द्वारा अपने परिवार को पैसा भेजा करते हैं।

और अंततः सीवान कहता है-
फैसला होने से पहले मैं भला हार क्यों मानूं,
कि जग अभी जीता और मैं अभी हारा नहीं-हारा नहीं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!