Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
जी-20 में हम कुछ ऐसा करें की वह यादगार बन जाये - श्रीनारद मीडिया

जी-20 में हम कुछ ऐसा करें की वह यादगार बन जाये

जी-20 में हम कुछ ऐसा करें की वह यादगार बन जाये

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इन दिनों जी-20 की बड़ी चर्चा है। जी-20 देश पृथ्वी के लगभग आधे भूभाग में बसे हैं, उनमें दुनिया की कुल 65 प्रतिशत आबादी रहती है और वे दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी का स्रोत हैं। भारत इस समूह का सदस्य है और इसकी अध्यक्षता बारी-बारी से हर सदस्य देश को दी जाती है। भारत को पहली बार यह अवसर मिल रहा है।

दुनिया जितनी तेजी से बदल रही है, उसमें बहुत सम्भव है कि जी-20 आने वाले 20 सालों तक कायम न रहे और भारत को फिर से इसकी अध्यक्षता करने का मौका न मिले। यही कारण है कि सरकार इसे बहुत महत्व दे रही है। वह इसे भारत के प्रमोशन और ब्रांडिंग के एक मौके के रूप में देख रही है। इसके तहत पूरे साल विभिन्न शहरों, विश्वविद्यालयों व अन्य स्थानों पर विभिन्न इवेंट्स होंगे। इससे पूरी दुनिया का ध्यान भारत पर केंद्रित होगा।

लेकिन यह भी सच है कि प्रेसिडेंसी खत्म होते ही सबकुछ भुला दिया जाता है, इसलिए सरकार को इस पर रणनीतिक रूप से ज्यादा सोचना होगा। सवाल यह है कि ऐसी कौन-सी चीज है, जो भारत की अध्यक्षता को प्रभावी बना सकती है?

हमें 2017 की जर्मन प्रेसिडेंसी से सीखना होगा। जी-20 ने वर्ष 1999 में आर्थिक सहभागिता के एक समूह के रूप में शुरुआत की थी। इसके वार्षिक कार्यक्रमों में राष्ट्रप्रमुख और उनके वित्त मंत्री सहभागिता करते थे। लेकिन जर्मनी की अध्यक्षता के दौरान तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने कुछ अलग किया। उनका मानना था कि वैश्विक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण आयाम हेल्थ है और जी-20 की बैठकों में स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए।

2017 में पहली बार जी-20 के स्वास्थ्य कार्य-समूह की स्थापना की गई और जी-20 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों को चर्चाओं में सम्मिलित होने के लिए निमंत्रित किया गया। इसके बाद से स्वास्थ्य-सम्बंधी चर्चाएं जी-20 के एजेंडा का अहम हिस्सा बन गई हैं। इनमें एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, जलवायु परिवर्तन, उम्रदराज आबादी आदि विषयों को शामिल किया गया। कोविड के बाद तो स्वास्थ्य की तरफ सबका और ध्यान गया है।

इसके बावजूद जी-20 प्रेसिडेंसी के साथ समस्या यह है कि अध्यक्षता पाने वाला हर नया देश अपना एजेंडा तय कर लेता है, जिससे निरंतरता में बाधा उत्पन्न होती है। भारत को इंडोनेशिया के बाद अध्यक्षता मिली है, जो कि ग्लोबल-साउथ का एक निम्न-मध्य आयवर्ग वाला देश है। 2024 में यह ब्राजील और 2025 में दक्षिण अफ्रीका को मिलेगी। यह पहला अवसर है, जब ग्लोबल-साउथ के देशों को लगातार जी-20 की अध्यक्षता दी जा रही है। भारत के इन तमाम देशों से अच्छे कूटनीतिक सम्बंध हैं।

ऐसे में भारत को अपनी अध्यक्षता का उपयोग उन देशों से अपने सम्बंध मजबूत बनाने में करना चाहिए, जो आने वाले वर्षों में अध्यक्षता प्राप्त करने जा रहे हैं। दूसरे, हमें इस आयोजन का उपयोग अपनी विजिबिलिटी बढ़ाने के एक अवसर के बजाय कुछ ऐसा करने के लिए करना चाहिए, जिसमें केवल जी-20 देशों ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की दिलचस्पी हो।

कोविड पहली और आखिरी महामारी नहीं है, इसलिए हमें महामारियों की तैयारियों पर ध्यान देना चाहिए। कोविड पर विभिन्न देशों की प्रतिक्रियाओं, वैक्सीन की किल्लत और जीवन-रक्षक मशीनों पर आईपीआर वेवर्स पर सर्वसम्मति के अभाव से यह जाहिर हुआ कि आज दुनिया का हर देश सबसे पहले अपने हितों को आगे रखता है, जबकि महामारियां राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं पहचानतीं। भविष्य में आने वाली महामारियों का सामना करने के लिए एक समायोजित वैश्विक प्रतिक्रिया की दरकार होगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक पैंडेमिक ट्रीटी प्रस्तावित की है, जो अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों के परे वैश्विक समन्वय को मजबूत करने पर जोर देती है। जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत को इसके लिए सर्वसम्मति बनाने की कोशिशें करते हुए इस विचार को आगे बढ़ाने का यत्न करना चाहिए। वह भारत के ध्येय-वाक्य एक दुनिया, एक परिवार, एक ग्रह के अनुरूप ही होगा।

आज दुनिया का हर देश अपने हितों को आगे रखता है, जबकि महामारियां राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं पहचानतीं। भविष्य में आने वाली महामारियों का सामना करने के लिए एक वैश्विक प्रतिक्रिया की दरकार होगी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!