संबंधों का महीन जाल ही तो है ज़िंदगी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सम्बन्धों का दर्शन है यह मानव जीवन।जीवन के प्रारंभ में माता-पिता के संग शुरु हुआ यह सिलसिला शनै: शनै: भाई,बहन,गुरु,चाचा,पत्नी और फिर बेटों के मध्य स्थापित होता जाता है।जन्म से लेकर मृत्यु तक इन्हीं संबंधों को न ढ़ोता है मानव!यह टूटे नहीं,इसी चेष्टा में दिन-रात उलझा रहता है।
“रामायण” या “राम चरित मानस” का अध्ययन बताता है कि संबंधों का स्तर कैसे विकसित हो,उसे कैसे ऊंचाई तक पहुंचाया जाय।मां-बेटा,पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य,पति-पत्नी,भाई-भाई के संबंधों के सूक्ष्म तत्वों को जानना हो तो हम सबों को एक बार इस महाकाव्य को पढ़ना होगा।
भाई-भाई के संबंध पर भी बात चली है तो एक बार बड़ा भाई और छोटा भाई बन कर हम स्वयं को इस विवेचना में शामिल करें।मेरे कवि मित्र डा.अमरेन्द्र कहते हैं-
“जब साथ में छोटा भाई हो,
आसान लंका पे चढ़ाई हो”-
उनका संदर्भ भाई लक्ष्मण और प्रभु राम को लेकर है।राम के वन गमन से लेकर घर वापसी तक एक छोटे भाई की भूमिका में लखन सदैव खड़ा उतरे हैं।इसी तरह बड़े भाई के रुप में प्रभु राम ने अपने इस रिश्ते को जो स्तरीयता दी है,वह जग प्रसिद्ध है।लक्ष्मण जी को जब शक्ति बाण लगता है और वे अचेत हो जाते हैं।ऐसे में छाती पीट पीट कर रोने वाला बड़ा भाई भगवान नहीं हो सकता।वह एक आम और भारतीय परंपराओं को ढ़ोता हुआ मानव ही तो है।यहीं फिर कहते हैैं मित्र अमरेन्द्र जी-
“जो कायदे का बड़ा भाई है-
कुछ पूर्व जन्म की कमाई है”
संबंधों ने अपनी यात्रा मानव जीवन के प्रारंभ से किया है।यह यात्रा अभी भी जारी है परन्तु आप ही एक बार समीक्षा करें-क्या संबंधों का ह्रास हुआ है,गिरावट आई है?क्या हम वो रह गये हैं,जो हम पूर्व में थे?क्या हम दशरथ के राम हैं?क्या हम सीता के राम रह गये या फिर सीता राम की है अभी?भाई-भाई के रिश्ते तार-तार हो चुके हैं।
एक बार इस चित्र को देखें।बड़े और छोटे भाई के संबंधों की विराटता को रेखांकित करती यह तस्वीर उस बीज तत्त्व का बोध करा रही है,जो आज भी हमारे भीतर है।बस इसी को जीवनपर्यंत निभा देना है,हमारा भारत फिर से विराट हो जायेगा।
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