बरगद के समान पति के दीर्घायु होने की महिलाओं ने की कामना.

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महिलाओं ने की वट वृक्ष की पूजा.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वट सावित्री पर्व के अवसर पर सुहागिनों ने वट वृक्षों की पूजा की। व्रत रखकर अपने स्वजनों के दीर्घायु होने की कामना की। कालोनियों, मंदिरों और घरों में लगे वट वक्षों पर पहुंची महिलाओं ने सबके स्वास्थ्य लाभ की कामना की। इस दौरान महिलाओं ने अपने घरों पर गमलों व घरों के आसपास बरगद के पौधे लगाने का संकल्प लिया।

बुधवार सुबह से ही  मोहल्लों, कालोनियों और मंदिरों में वट वृक्षों के आसपास महिलाओं का जुटना शुरू हो गया था। दोपहर तक महिलाओं द्वारा वट वृक्ष की पूजा-अर्चना जारी रही। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए महिलाओं के द्वारा शारीरिक दूरी का पालन भी किया गया, हालांकि कुछ जगहों पर महिलाएं लापरवाही करती भी दिखी। महिलाएं शीतला माता मंदिर भी पूजा के लिए पहुंची। वट सावित्री की पूजा अर्चना करने पहुंची रजनी सिंह ने कहा कि वट सावित्री पर्व पर वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। सुहागिन महिलाओं द्वारा यह पूजा की जाती है। जिसमें अधिक उम्र वाले वृक्ष की पूजा की जाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि जितनी अधिक पूरानी वट वृक्ष की पूजा की जाती है, पति की आयु उतनी ही अधिक लंबी होती है।  जेठ माह में अमावस्या पर यह पूजा की जाती है। इस साल कोरोना के कारण आक्सीजन के लिए तपड़ते अपनों को देखा है, इसलिए मैंने संकल्प लिया है कि ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाऊंगी, जिससे प्राकृतिक आक्सीजन की कमी न हो।

पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है।
* वट पूजा से जुड़े धार्मिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलू हैं।
*  वट वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।
* भगवान बुद्घ को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
* वट एक विशाल वृक्ष होता है, जो पर्यावरण की दृष्टि से एक प्रमुख वृक्ष है, क्योंकि इस वृक्ष पर अनेक जीवों और पक्षियों का जीवन निर्भर रहता है।
*  इसकी हवा को शुद्घ करने और मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में भी भूमिका होती है।
दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है।
* वट सावित्री में स्त्रियों द्वारा वट यानी बरगद की पूजा की जाती है।
* इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है।
* वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्घ हुआ।
*  धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है।
* प्राचीनकाल में मानव ईंधन और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए लकड़ियों पर निर्भर रहता था, किंतु बारिश का मौसम पेड़-पौधों के फलने-फूलने के लिए सबसे अच्छा समय होता है। साथ ही अनेक प्रकार के जहरीले जीव-जंतु भी जंगल में घूमते हैं।
* इसलिए मानव जीवन की रक्षा और वर्षाकाल में वृक्षों को कटाई से बचाने के लिए ऐसे व्रत विधान धर्म के साथ जोड़े गए, ताकि वृक्ष भी फलें-फूलें और उनसे जुड़ी जरूरतों की अधिक समय तक पूर्ति होती रहे। इस व्रत के व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो इस व्रत की सार्थकता दिखाई देती है।

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