नन्हें नन्हें कान्हा, लाडली राधा रानी,
बस बहती जा रही थी संस्कृति की सनातनी सतरंगी बयार….
संस्कार भारती द्वारा कचहरी दुर्गा मंदिर के प्रांगण में कृष्ण बाल मेला का बेहद शानदार आयोजन
जैसा मैंने देखा……
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
रविवार का दिन। दोपहर की बेला। सीवान शहर के कचहरी दुर्गा मातारानी के मंदिर का सुंदर प्रांगण। संस्कार भारती का एक बेहद शानदार आयोजन। विजय जी के मंच संचालन का जादूगरी भरा अंदाज। कृष्ण बाल मेला का एक बेहद उत्कृष्ठ सांस्कृतिक आयोजन। प्रोफेसर रविन्द्र पाठक जैसे अतिथियों का स्नेहिल सान्निध्य। आस्था का उल्लास। उत्साह का उमंग। बचपन की मदमस्त बानगी।।
कई कान्हा वहां मौजूद थे। कई राधा भी वहां मौजूद थीं। व्याकुल और बेबस सुदामा भी थे। दुर्गा मंदिर का प्रांगण कुछ समय के लिए गोकुल बन गया था। कभी कभी तो बरसाने का मधुर अहसास भी दिला रहा था। छोटे छोटे बालगोपाल मन को मोह ले जा रहे थे। लाडली राधा रानियों का कलरव भी अदभुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। माता यशोदा भी थीं लेकिन वह अपने चिर परिचित अंदाज में। पिता नंद भी थे लेकिन अपने राधा और कान्हा को सहेजने में लगे थे। कभी कोई कान्हा उधम मचा रहे थे तो कभी कोई राधा अपने साज सज्जा को लेकर सतर्क नजर आ रही थी।
हमारी सनातन संस्कृति की सतरंगी बयार बस बहे जा रही थी। कभी इस बयार को शंभू सोनी तो कभी राजू सोनी अपने स्वर से और मृदुल बना रहे थे। तो कभी राधा और कृष्ण के स्वरूप में बच्चे माहौल में रास की भंगिमा को और भी आनंददाई बना रहे थे। कुल मिलाकर वहां का माहौल बेहद आत्मीय आनंद दे रहा था। दर्शक तालिया बजा रहे थे तो अतिथि दाद देने से नहीं चूक रहे थे। नृत्य, गीत, संगीत की बहती त्रिवेणी मन मोह रही थी।
फिर बारी आई नन्हें नन्हें बाल गोपालों और लाडली रानी सभी को पुरस्कार और प्रमाण पत्र देने की। जग को कर्मों के आधार पर पुरस्कृत करनेवाले युगल जोड़ी के मानवीय स्वरूप को पुरस्कृत करने का अहसास भी अतिथियों के लिए बेहद अदभुत ही रहा। पुरस्कृत करते वक्त आस्था भी बस निहाल हो जा रही थी। कृष्ण और राधा रूप धारण कर बच्चे देवत्व का अहसास दिला रहे थे। और उनकी प्यारी प्यारी हरकतें कान्हा की बाल लीलाओं की याद दिला रही थीं। संस्कार भारती की कृष्ण बाल लीला वास्तव में एक अविस्मरणीय संस्मरण बन गई…
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