प्रकृति के क़रीब ले आया लॉकडाउन,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • मारे इर्द-गिर्द बहुत सारी नैसर्गिक सुंदरता और विस्मय है, लेकिन हम कभी उनके लिए समय निकाल नहीं पाते।
  • पक्षियों का सुंदर संसार भी ऐसा ही है। जब ज़िंदगी हमें इतनी मोहलत देती है कि हम धैर्य से उस संसार को निहार सकें तो हमारे सामने उनका वो रूप निखरकर सामने आता है, जिसे अन्यथा हम कभी जान नहीं सकते थे।

लॉकडाउन का समय बच्चों के लिए विशेषकर कठिन रहा है। स्कूल बंद रहे, खेलने की जगहें सिकुड़ गईं, पार्टियां नहीं हुईं। बच्चों के लिए समझ सकना कठिन हो गया कि वे करें, तो क्या करें। मेरी बेटियां लूडो, शतरंज और मोनोपॉली जैसे इनडोर खेल खेलकर ऊब गईं। एक दिन मेरे पति ने अपनी दूरबीन निकाली और बच्चों को लेकर पक्षियों को देखने छत पर चले गए। कौवे, मैना और लाल बट्टों वाली बुलबुल जैसे आम पक्षियों को देखने के बाद उन्होंने एक बहुत ही भिन्न पक्षी देखा, जिसका शरीर भूरा और काला था। मेरी बेटियां इस आकर्षक पक्षी को लेकर बहुत उत्साहित हो गईं। उन्होंने उसका नाम खोजा। यह था ग्रेटर कूकल या महोख। एक सुंदर पक्षी, जो कौवे से बड़ा होता है और बहुत शानदार ढंग से उड़ान भरता है। इस नए पक्षी पर दृष्टि पड़ने से पक्षी देखने में हमारी रुचि जागृत हो गई। अपने हाथों में दूरबीन लिए हम घंटों अपना सारा ख़ाली समय छत पर और लॉन में पक्षियों की नई प्रजातियों की तलाश में बिताते थे। धीरे-धीरे हम कई प्रजातियों के पक्षियों को पहचानने लगे, जैसे कि बैंगनी फुलचूही (सनबर्ड), टेलरबर्ड या दर्जिन, ब्राउन रॉक चैट, पीले पैरों वाले हरे कबूतर आदि।

हमारे घर की एक दीवार किसी के फ़ार्म हाउस से जुड़ी है। यह एक विशाल फ़ार्म हाउस है, जिसमें बहुत सारे पेड़, जड़ी-बूटियां और झाड़ियां हैं और यहां अनेक प्रकार के पक्षी रहते हैं। इसके कारण कई क़िस्मों के पक्षी हमारे घर भी आ जाते हैं। एक दिन एक विशाल पक्षी कुछ मिनटों के लिए हमारे लॉन में आया। मेरी बेटियां उत्साहित हो गईं और उसे देखने के लिए दौड़ीं। यह एक सुंदर-सी मोरनी थी, जो अंडे देने के लिए जगह खोज रही थी। हमारे लॉन में कोई जगह न मिलने पर वह फिर लौट गई। जब लॉकडाउन के प्रतिबंधों में ढील दी गई, तो हमने अपनी बेटियों के साथ प्रकृति की सैर करने का फ़ैसला किया। हम पास के गांव के खेतों तक गए। हम पक्षियों की ऐसी कई नई प्रजातियों की खोज करके चकित रह गए, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखा था जैसे कि तालाब वाले सफ़ेद बगुले, सफ़ेद छाती वाली जलमुर्ग़ी, सफ़ेद वैग्टेल- जिसकी पूंछ हर समय हिलती रहती है, तालाब में रहने वाले देसी बगुले और कई और पंछी। हमें पता ही नहीं था कि इतनी सारी सुंदरता हमारे चारों ओर विद्यमान थी। और अब तो साप्ताहिक छुट्टी पर खेतों तक जाना हमारा नियम जैसा हो गया है। हमने यह भी देखा कि इनमें से कई पक्षी प्रवासी थे। वे हमें विशिष्ट मौसम में ही दिखते थे।

एक सुबह मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि उसने लॉन में एक अलग आवाज़ सुनी है, लेकिन वह इस पक्षी को देख नहीं पा रही थी। फिर उसने मर्लिन पक्षी ऐप खोला, जो अपने क्षेत्र में पक्षियों की पहचान करने वाला ऐप है। उसने बताया कि यह आवाज़ थी कॉपर स्मिथ बारबेट या छोटा बसंता या ठठेरा की। हमने सोशल मीडिया पर उस पक्षी की आवाज़ को जोड़ा और अपने लॉन में उसे बजाया। कुछ ही मिनटों में हरे शरीर, लाल और पीले पंखों वाला एक छोटा पक्षी हमारे सामने था। मेरी बेटियां अपनी नई खोज पर ख़ुशी से चिल्ला उठीं। पक्षी इतना सुंदर था कि हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते थे। यह बहुत ही शर्मीला पक्षी था।

जैसे-जैसे हम अधिक से अधिक पक्षियों की पहचान करते गए, हम उनके स्वभाव-व्यवहार के बारे में भी बहुत कुछ सीखते गए। कुछ पक्षी ज़मीन के पास रहना पसंद करते हैं, जैसे कि लाल टिटहरी, लाल नैप्ड इबिस या काला अवाक, ममोला या खंजन, जिसे अंग्रेजी में वैग्टेल कहते हैं, यूरेशियन हूपू या हुदहुद इत्यादि। कुछ पक्षी पेड़ों पर रहते हैं, जैसे तोते, बुलबुल आदि। कुछ पक्षी ज़्यादातर बिजली के तारों पर पाए जाते थे जैसे कि किंगफ़िशर, वहीं कुछ पक्षियों को पेड़ों के शीर्ष पर देखा जा सकता है, जैसे काली चील। कुछ पक्षी बहुत शर्मीले होते हैं और पेड़ों और झाड़ियों में छिपे रहना पसंद करते हैं, जैसे कि पीले पैरों वाले हरे कबूतर, छोटा बसंता या ठठेरा, बड़ा बसंता या कोटुर आदि। कुछ पक्षी बहुत मित्रवत होते हैं, जैसे साधारण मैना। हमने यह भी देखा कि नर पक्षी अपनी प्रजाति की मादा पक्षियों की तुलना में कहीं अधिक रंगबिरंगे और आकर्षक होते हैं।

एक दिन मेरी छोटी बेटी ने मुझे बताया कि उसने हमारे गुड़हल के पौधे में एक बैंगनी फुलचूही को घोंसला बनाते हुए देखा है। थोड़े ही समय बाद उसने अंडे दिए। कुछ दिनों बाद उन अंडों से फुलचूही के दो छोटे-छोटे सुंदर बच्चे निकले। उन बच्चों के पिता और मां दोनों ही अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत थे। नर उनके लिए भोजन खोजता था और मादा हमेशा उन पर नज़र बनाए रखती थी। एक दिन मेरी बेटियों ने ग्रेटर कूकल (महोख) को बैंगनी फुलचूही के घोंसले के चारों ओर मंडराते देखा, जबकि बच्चों के माता-पिता दोनों भोजन की तलाश में दूर गए हुए थे। हम तुरंत उसे डराने के लिए लॉन की ओर भागे, लेकिन वह पहले ही फुलचूही के बच्चों पर झपट चुका था। जब नर-मादा फुलचूही वापस आए, तो वे अपना घोंसला खाली देखकर हैरान रह गए। मां ने बार-बार घोंसले के अंदर खोजा, लेकिन बच्चे तो हमेशा के लिए जा चुके थे। इस घटना से मेरे बच्चे दु:खी हो गए। उस दिन से मेरे बच्चों की आंखों से ग्रेटर कूकल के लिए सम्मान खत्म हो गया।

किसी तरह हमने अपनी बेटियों को यह एहसास कराया कि प्रकृति ने कुछ पक्षियों को शिकार करने वाला बनाया है, और वे छोटे पक्षियों और उनके अंडों को खाकर जीवित रहते हैं। प्रकृति में ऐसी कई खाद्य शृंखलाएं हैं।

बहरहाल, लॉकडाउन की अवधि हमें प्रकृति के क़रीब ले आई। हम अपने आस-पास सुंदर पक्षियों की उपस्थिति से बहुत बेख़बर थे, लेकिन कोरोना के काल ने हमें एक नई दृष्टि प्रदान की, जिससे हम अपने आस-पास के आकाश, पेड़ों और विभिन्न प्राणियों को देख सकें, उनकी सुंदरता की सराहना कर सकें। इस असामान्य कालखंड ने निस्संदेह हमारी जागरूकता को हमारे नीरस और रटे-रटाए जीवन से इतर जाने का अवसर दिया, जिससे हमारा भी उल्लास और उत्साह बढ़ा।

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