Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
गाय को औषधीय महत्व की नज़र से देखें,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

गाय को औषधीय महत्व की नज़र से देखें,क्यों?

गाय को औषधीय महत्व की नज़र से देखें,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गाय आज भी भारतीय लोकजीवन का सबसे प्रिय प्राणी है। अथर्ववेद में कहा गया है..”धेनु: सदनम् रचीयाम्” यानी ‘‘गाय संपत्तियों का भंडार है।’ हम गाय को केंद्र में रखकर देखें, तो गांव की तस्वीर कुछ ऐसी बनती है कि गाय से जुड़े हैं किसान, किसान से जुड़ी है खेती और खेती से जुड़ी है ग्रामीण अर्थव्यवस्था। गाय हमारे आर्थिक जीवन की ही नहीं वरन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन की भी आधारशिला है। सही मायने में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए गौ-पालन बूस्टर डोज बन सकता है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र को देखें, तो आप पाएंगे कि उस समय में गायों की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिये एक विशेष विभाग था। भगवान श्रीकृष्ण के समय भी गायों की संख्या, सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती थी। नंद, उपनंद, नंदराज, वृषभानु, वृषभानुवर आदि उपाधियां गोसंपत्ति के आधार पर ही दी जाती थीं। गर्ग संहिता के गोलोक खंड में ये लिखा गया है कि जिस गोपाल के पास पांच लाख गाय हों, उसे उपनंद और जिसके पास 9 लाख गायें हो उसे नंद कहते हैं। महाभारत में युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्न ‘‘अमृत किम् ?’’ यानी ‘अमृत क्या है?’ के उत्तर में कहा कि ‘‘गवाऽमृतम्’’ यानी ‘गाय का दूध’। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘‘देश की सुख-समृद्धि गाय के साथ ही जुड़ी हुई है।’’

जानकर हैरानी होगी कि जो पशु सूर्य की किरणों को सर्वाधिक ग्रहण करता है, वह है ‘गाय’ और यह दूध के माध्यम से हमें सौर ऊर्जा देती है। आपने कभी सोचा कि आज पश्चिमी देश क्यों उन्नति कर रहे हैं? विदेशों में चले जाइये, आपको भैंस नहीं मिलेगी, प्रायः आपको गाय मिलेगी। दो दशक से पश्चिमी देशों में श्वेत क्रांति चल रही है। एक अमेरिकन व्यक्ति प्रतिदिन एक से दो लीटर गाय का दूध पीता है और मक्खन खाता है। जबकि भारतीय व्यक्ति को औसतन मात्र 200 ग्राम दूध मुश्किल से प्राप्त होता है। कोलंबस 1492 में अमेरिका गया, वहां एक भी गाय नहीं थी।

सिर्फ जंगली भैसों का पालन होता था। कोलंबस जब दूसरी बार अमेरिका गया, तब अपने साथ 40 गायों को ले गया, जिससे दूध की जरुरत पूरी हो सके। सन् 1640 में ये 40 गायें बढ़कर 30,000 हो गयीं। 1840 तक ये गायें बढ़कर ड़ेढ करोड़ और सन् 1900 में 4 करोड़ हो गईं। 1930 में इनकी संख्या 6 करोड़ 40 लाख थी तथा मात्र पांच वर्ष पश्चात सन् 1935 में इनकी संख्या बढ़कर 7 करोड़ 18 लाख हो गई। 1985 में अमेरिका में 94 प्रतिशत लोगों के पास गायें थीं और हर किसान के पास दस से पंद्रह गायें होती थीं।

पशु विशेषज्ञ डॉ. राइट ने 1935 में कहा था कि ‘‘गोवंश से होने वाली वार्षिक आय 11 अरब रुपये से अधिक है।” यह गणना 1935 के वस्तुओं के भावों के अनुसार लगाई गयी थी। आज सन् 1935 की अपेक्षा वस्तुओं के भाव कई गुना अधिक बढ़ गये हैं। इसलिए मेरा मानना है कि गोवंश से होने वाली आय लगभग 100 अरब रुपये से अधिक है। आप देखिए कि भारत में पूरे वर्ष में केवल साढ़े तीन माह ही वर्षा होती है और वह भी अनिश्चितता लिए हुए होती है। इस अनिश्चितता में किसान किसका सहारा ले? इसलिए प्रत्येक किसान को गो-पालन को पूरक व्यवसाय बनाना चाहिए। महर्षि दयानंद ने कहा था कि “गाय है तो हम हैं, गाय नहीं तो हम नहीं। गाय मरी तो बचेगा कौन? और गाय बची तो मरेगा कौन?”

गौपशुओं की 20 करोड़ से भी अधिक संख्या के साथ भारत दुनिया में प्रथम है। विश्व की गौपशुओं की कुल आबादी का 33.39 प्रतिशत उसके पास है। 22.64% के साथ ब्राज़ील और 10.03% के साथ चीन दुनिया के गौपशुओं की आबादी की दृष्टि से क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर है।  हर भारतीय को गर्व की अनुभूति होनी चाहिये कि हम दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक हैं। वर्ष 2017 में भारत का कुल दूध उत्पादन लगभग 155 मिलियन टन था, जो 2022 में बढ़कर 210 मिलियन टन होने की संभावना है। यह भारत की गायों की आबादी के कारण ही है कि हम पिछले 10 वर्षों से दुग्ध उत्पादन में 4% की वार्षिक वृद्धि कर रहे हैं। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड को अगले कुछ वर्षों के दौरान 7.8% की वार्षिक वृद्धि की उम्मीद है।

देश में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन भी 1991 के मात्र 178 ग्राम से बढ़कर 2015 में 337 ग्राम हो गया था और कुछ वर्षों में यह बढ़कर 500 ग्राम हो जाएगा। भारत में गाय की कोई 30 नस्लें अच्छी तरह से वर्णित हैं। कुछ भारतीय नस्लें, जैसे साहीवाल, गिर, लाल सिंधी, थारपारकर और राठी दुधारू नस्लों में से हैं। कंकरेज, लाल कंधारी, मालवी, निमाड़ी, नगोरी, आदि बैलों की जानी मानी नस्लें हैं।

हरियाणा राज्य की “हरियाणा बैल” नस्ल दुनिया में सबसे मजबूत कद-काठी वाली नस्लों में से एक मानी जाती है। केरल में पाई जाने वाली वेंचुर नस्ल दुनिया की सबसे छोटी मवेशी नस्ल है। इसे एक मेज पर खड़ा करके दुहा जा सकता है। वेंचुर गाय बहुत अच्छे बैल पैदा करती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मवेशियों के बिना कृषि अकल्पनीय है। पर्वतीय समुदाय प्रायः पशुधन पर निर्भर हैं। पशु शक्ति पर आधारित खेती में पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों की भी आवश्यकता नहीं होती। पशुधन-आधारित खेती कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करती है।

गाय को धार्मिक नजरिए से देखने के बजाए उसके औषधीय महत्व को देखना होगा। देसी गायों के दूध में ए-2 नामक औषधीय तत्व पाया जाता है, जो मोटापा, आर्थराइटिस, टाइप-1 डाइबिटीज व मानसिक तनाव को रोकता है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में तो ए-2 कार्पोरेशन नामक संस्था बनाकर भारतीय नस्ल की गायों के दूध को ऊंची कीमत पर बेचा जाता है। दूसरी ओर हॉलस्टीन व जर्सी जैसी विदेशी नस्ल की गायों में यह प्रोटीन नहीं पाया जाता है। ‘आपरेशन फ्लड’ के दौरान यूरोपीय नस्ल की गायों को आयात कर उनके साथ देसी नस्लों की क्रॉस ब्रीडिंग का नतीजा ये हुआ कि जहां भारत में देसी नस्लें खत्म होती जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय मूल की ‘गिर गाय’ ब्राजील में दूध उत्पादन का रिकार्ड बना रही है।

वर्षों पहले ब्राजील ने मांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत से 3000 गिर गायों का आयात किया था। उसने इनके दूध के औषधीय महत्व को देखा तो वह दूध उत्पादन के लिए इन्हें बढ़ावा देने लगा। आस्ट्रेलिया में भारतीय नस्ल के ‘ब्राह्मी बैलों’ का डंका बज रहा है। दुर्भाग्य है कि भारतीय नस्ल की गायों का उन्नत दूध विदेशी पी रहे हैं और हम विदेशी नस्लों का जहरीला दूध।

मांस उद्योग सबसे क्रूर जलवायु खलनायकों में से एक है, जो वायुमंडल में बहुत बड़े कार्बन पदचिन्ह छोड़ रहा है। औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से जब दुनिया ने जीवाश्म ईंधन को जलाना शुरू किया, हमने दुनिया को 0.8 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर दिया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि अतीत और पूर्वानुमानित कार्बन उत्सर्जन के कारण दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस गर्म हो जाएगी। दिसंबर, 2016 की पेरिस जलवायु वार्ता में विश्वव्यापी तापक्रम बढ़ोत्तरी का लक्ष्य 2 डिग्री सेल्सियस तय किया गया। 2 डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा देखने में छोटा लगता है,

लेकिन इसका जीवन और जीवित ग्रह पर अभूतपूर्व नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। खानपान की आदतें यूं तो एक व्यक्तिगत मामला है, जिस पर प्रश्न उठाना अटपटा-सा लगता है, लेकिन हमारी जलवायु पर सबसे बड़ी और सबसे विस्फोटक मार मांसाहार की प्रवृत्ति से पड़ रही है। एक रिपोर्ट से पता चलता है कि विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के कारण सबसे बड़ा कार्बन पदचिन्ह गोमांस के कारण होता है, जो बीन्स, मटर और सोयाबीन यानी शाकाहारी आहार की तुलना में लगभग 60 गुना बड़ा है।

इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो पता चलता है कि बाबरनामे में एक पत्र में बाबर, बेटे हुमायूं को नसीहत देता है- “तुम्हें गौहत्या से दूर रहना चाहिए। ऐसा करने से तुम हिन्दुस्तान की जनता में प्रिय रहोगे। इस देश के लोग तुम्हारे आभारी रहेंगे और तुम्हारे साथ उनका रिश्ता भी मजबूत हो जाएगा।” बादशाह बहादुर शाह जफ़र ने भी 28 जुलाई, 1857 को बकरीद के मौके पर गाय की कुर्बानी न करने का फ़रमान जारी किया और चेतावनी दी कि जो भी गौ-हत्या करने का दोषी पाया जाएगा, उसे मौत की सज़ा मिलेगी। उस समय गौ-हत्या के खिलाफ अलख जगाने का काम करने वाले पत्रकार मोहम्मद बाकर को अंग्रेजों ने मौत की सजा सुनाई थी।

कवि-पत्रकार पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने 1920 में मप्र के सागर जिले के रतौना नामक स्थान पर लगाए जा रहे कसाईखाने के विरोध में अभियान चलाया, इस कत्लखाने में प्रतिमाह ढाई लाख गौ-वंश को काटने की योजना थी। कसाईखाने के विरुद्ध जबलपुर के उर्दू समाचार पत्र ‘ताज’ के संपादक मिस्टर ताजुद्दीन मोर्चा पहले ही खोल चुके थे। उधर, सागर में मुस्लिम नौजवान और पत्रकार अब्दुल गनी ने भी गोकशी के लिए खोले जा रहे इस कसाईखाने का विरोध प्रारंभ कर दिया। मात्र तीन माह में ही अंग्रेजों को कसाईखाना खोलने का निर्णय वापस लेना पड़ा। सच कहें तो गौ-शक्ति से संपन्न भारत ही खुशहाल भारत होगा।

ये भी पढ़े…

Leave a Reply

error: Content is protected !!