सांसदी जाना ऐसा नुकसान नहीं जिसकी भरपाई न हो सके,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राहुल गांधी को सांसदी वापस नहीं मिली। सूरत सेशन कोर्ट के जज रॉबिन पॉल मोगेरा ने गुरुवार को उनकी याचिका एक शब्द में खारिज कर दी। राहुल ने मानहानि केस में दोषी ठहराए जाने पर रोक लगाने की मांग की थी।

जज ने राहुल गांधी की दलीलों को खारिज कर दिया। जज ने कहा कि सांसदी जाना कन्विक्शन पर रोक लगाने का आधार नहीं। इससे ऐसा नुकसान नहीं हुआ जिसकी भरपाई न हो सके।

राहुल गांधी का कहना है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज करा सकते थे, क्योंकि ‘मोदी’ नाम से कोई एक समूह नहीं। पूर्णेश मोदी की याचिका अमान्य है,इस पर जज साहब का कहना था कि राहुल गांधी ने आम जनता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ अपमानजनक टिप्पणी की थी और मोदी सरनेम वाले लोगों की तुलना चोरों से की थी। इसलिए मोदी सरनेम वाले शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाया गया।

इसके अलावा शिकायतकर्ता पूर्व मंत्री हैं और सार्वजिनक जीवन में शामिल हैं। मानहानि भरी इस तरह की टिप्पणी से निश्चित ही उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है और उन्हें समाज में पीड़ा झेलनी पड़ती है। इन वजहों से मैं शिकायत पर सुनवाई को लेकर उठाई आपत्तियों से सहमत नहीं हूं।

अपने दलील में राहुल गांधी  कहना है कि पूर्णेश मोदी का नाम नहीं लिया, ऐसे में उनकी मानहानि का सवाल नहीं उठता,इस पर जज साहब का कहना था की इस मामले में मोदी उपनाम वाले लोगों की तुलना चोरों से करने से निश्चित रूप से शिकायतकर्ता को मानसिक पीड़ा हुई होगी। उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान होगा, क्योंकि वो सामाजिक रूप से सक्रिय हैं और हमेशा आम लोगों से उनका मिलना-जुलना रहता है।

भाषण देते समय राहुल गांधी न केवल सांसद थे बल्कि देश की दूसरी बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष भी थे। उनके कद को देखते हुए उन्हें अपने शब्दों को लेकर ज्यादा सावधान रहना चाहिए था। उनके शब्दों का व्यापक असर लोगों के दिमाग पर पड़ता है।

वही राहुल गांधी का कहना है कि ट्रायल कोर्ट में मेरे साथ अन्याय हुआ, मुझे अधिकतम सजा सुनाई गई, इस पर जज साहब का कहना था की सुनवाई के रिकॉर्ड से जाहिर है कि राहुल गांधी को गवाहों से जिरह करने का पूरा मौका दिया गया और इसलिए मैं इस बात से सहमत नहीं कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई से वंचित किया गया।

जहां तक अधिकतम सजा सुनाए जाने की बात है तो मजिस्ट्रेट ने उतनी सजा सुनाई, कानून में जिसकी इजाजत है। राहुल गांधी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, वो सार्वजनिक जीवन बिताने वाले सांसद थे। उनके बोले किसी भी शब्द का आम जनता के मन पर बड़ा असर होगा। ऐसे लोगों से उच्च स्तर की नैतिकता की उम्मीद की जाती है।

जबकी राहुल गांधी का कहना है कि अधिकतम सजा सुनाए जाने से मैं संसद सदस्य नहीं रहा, निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पा रहा,इस पर जज साहब का कहना था की ‘मैं मानता हूं कि संसद सदस्य न रहना या अयोग्य हो जाना राहुल गांधी के लिए ऐसा नुकसान नहीं जिसकी भरपाई न हो सके।’

(जज मोगेरा ने इसके लिए गुजरात हाईकोर्ट के नारनभाई भीकाभाई कछाड़िया बनाम गुजरात राज्य के केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने की वजह से नौकरी जाना या अयोग्य ठहराया जाना, उस मामले में दोषी ठहराए जाने पर रोक लगाने का आधार नहीं हो सकता )

राहुल गांधी का कहना है कि अवमानना के ऐसे मामलों में दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील होने पर उस पर फौरन रोक लगा देनी चाहिए, इस पर जज साहब का कहना था की अदालतों के तमाम पुराने फैसलों में कहा गया कि CrPC की धारा 389(1) के तहत दोषसिद्धि (कन्विक्शन) को सस्पेंड करने या उस पर रोक लगाने की शक्तियों को बेहद सावधानी और सोच समझकर इस्तेमाल करने की जरूरत है।

अगर इस शक्ति का इस्तेमाल यूं ही या मशीन बनकर किया जाएगा तो जनता के मन में न्याय व्यवस्था को लेकर गलत धारणा बनेगी। ऐसे आदेश से न्यायपालिका से जनता का विश्वास हिल जाएगा। मेरा मानना है कि राहुल गांधी अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने के पक्ष में मजबूत केस नहीं बना पाए हैं।

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