Breaking

ऊर्जा-दक्ष दीवारों के लिए निर्माण एवं तोड़-फोड़ वाले कचरे के इस्तेमाल से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटें विकसित की गईं

ऊर्जा-दक्ष दीवारों के लिए निर्माण एवं तोड़-फोड़ वाले कचरे के इस्तेमाल से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटें विकसित की गईं
श्रीनारद मीडिया‚ सेंट्रल डेस्कः

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow


अनुसंधानकर्ताओं ने निर्माण व तोड़-फोड़ (सीएंडडी) वाले कचरे तथा क्षार-सक्रिय बाइंडरों के इस्तेमाल से ऊर्जा-दक्ष दीवारों के लिए सामग्रियों के उत्पादन हेतु एक प्रौद्योगिकी विकसित की है। इन्हें कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटें कहते हैं, जिसके लिए उच्च तापमान वाले दहन की आवश्यकता नहीं होती है और पोर्टलैंड सीमेंट जैसी उच्च-ऊर्जा वाली सामग्री के उपयोग से भी बचा जा सकता है। इस प्रौद्योगिकी से निर्माण एवं तोड़-फोड़ वाले कचरे में कमी होने के कारण निपटान से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान होगा।

परंपरागत रूप से, भवन में मिट्टी की जली हुई ईंटों, कंक्रीट ब्लॉकों, मिट्टी के खोखले ब्लॉकों, फ्लाई ऐश ईंटों, हल्के ब्लॉकों आदि से निर्मित दीवारें होती हैं। इनके उत्पादन के दौरान ऊर्जा की खपत होती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन होता है और खनन वाले कच्चे माल की खपत होती है तथा इसके फलस्वरूप कमजोर निर्माण होता है। चिनाई इकाइयों का निर्माण या तो दहन की प्रक्रिया द्वारा अथवा पोर्टलैंड सीमेंट जैसे उच्च-ऊर्जा/सन्निहित कार्बन बाइंडरों का उपयोग करके किया जाता है। भारत में ईंटों और ब्लॉकों की वार्षिक खपत लगभग 900 मिलियन टन है। निर्माण उद्योग भारी मात्रा में (70-100 मिलियन टन प्रति वर्ष) सीएंडडी कचरे उत्पन्न करता है। टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, चिनाई वाली इकाइयों का निर्माण करते समय दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है- खनन कच्चे माल के संसाधनों का संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना।

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने फ्लाई ऐश और फर्नेस स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय ईंटों/ब्लॉकों के उत्पादन के लिए एक तकनीक विकसित की। अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने फ्लाई ऐश और ग्राउंड स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय प्रक्रिया के माध्यम से निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे (सीडीडब्ल्यू) से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों को विकसित किया और उनकी चिनाई की थर्मल, संरचनात्मक और मजबूती से संबंधित विशेषताएं बताई। सीडीडब्ल्यू की भौतिक-रासायनिक और संघनन विशेषताओं का पता लगाने के बाद, सामग्री का मनोनुकूल मिश्रण अनुपात प्राप्त किया गया। इसके बाद कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों के लिए उत्पादन प्रक्रिया विकसित की गई। मनोनुकूल बाइंडर अनुपात के आधार पर, संपीड़ित ईंटों का निर्माण किया गया। इंजीनियरिंग से जुड़ी विशेषताओं के लिए ईंटों की जांच की गई।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से वित्तपोषण के बल पर भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर द्वारा किए गए इस खोज का प्रमुख लाभार्थी सामान्य रूप से निर्माण उद्योग और विशेष रूप से भवन क्षेत्र है। यह प्रौद्योगिकी सीएंडडी कचरे से जुड़ी निपटान समस्याओं को भी कम करेगी।

आईआईएससी बैंगलोर के प्रो. बी वी वेंकटरामा रेड्डी का कहना है, “एक स्टार्ट-अप पंजीकृत किया गया है, जो आईआईएससी की तकनीकी मदद से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों और ब्लॉकों के निर्माण के लिए 6-9 महीनों के भीतर काम करने लगेगा। स्टार्ट-अप इकाई प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और भारत भर में ऐसी वाणिज्यिक इकाइयों की स्थापना के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रसार इकाई के रूप में कार्य करेगी।”

अधिक जानकारी के लिए, प्रो. बी वी वेंकटरामा रेड्डी, आईआईएससी बैंगलोर से संपर्क करें ([email protected])

यह भी पढ़े

वाराणसी में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना मायके से पैसे नहीं लाने पर पति ने पत्नी का सिर मुंडवाया

वाराणसी में झमा झम बारिश से धान और गन्ने को रामबाण औषधि,सब्जियों को नुकसान

वाराणसी कमिश्नरेट में चरित्र प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नई व्यवस्था लागू

Leave a Reply

error: Content is protected !!