मुस्लिम भारत में सबसे कम बहुविवाह करने वाला समुदाय-कुरैशी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने देश में ‘हिंदुत्व समूहों’ द्वारा मुसलमानों की लगातार की जा रही खराब छवि पर चिंता जताई और कहा कि अब समय आ गया है कि इस मिथक को तोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि इस्लाम परिवार नियोजन का विरोध नहीं करता। मुस्लिम भारत में सबसे कम बहुविवाह करने वाला समुदाय है।
कुरैशी ने प्रकाशित नई पुस्तक में कहा- मुसलमानों को खलनायक के तौर पर दिखाया जा रहा
हाल में प्रकाशित अपनी नई पुस्तक ‘द पापुलेशन मिथ : इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पालिटिक्स इन इंडिया’ के बारे में बात करते हुए जुलाई 2010 से 2012 जून तक देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे कुरैशी ने कहा कि मुसलमानों को खलनायक के तौर पर दिखाया जा रहा है। कुरैशी ने कहा कि यदि कोई सौ बार झूठ बोले तो वह सच बन जाता है। मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार बहुत हो गया है। इस बात को चुनौती देने का समय आ गया है।
कुरैशी ने कहा – कुरान ने परिवार नियोजन को प्रतिबंधित नहीं किया
उन्होंने कहा कि इस्लामी न्यायशास्त्र को पढ़ें, तो पता चलता है कि कुरान ने परिवार नियोजन को कहीं भी प्रतिबंधित नहीं किया है। इस्लाम मां और बच्चे के स्वास्थ्य और उचित लालन-पालन पर जोर देता है। यह सच है कि भारत में हिंदू-मुस्लिम प्रजनन संबंधी अंतर बना हुआ है, लेकिन इसका मुख्य कारण साक्षरता, आय और सेवाओं तक पहुंच जैसे मामलों में मुसलमानों का पिछड़ा होना है।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा- मुसलमानों में बहुविवाह का चलन सबसे कम
बहुविवाह -जैसे मिथक पर कुरैशी ने कहा कि दुष्प्रचार किया गया कि मुसलमान चार महिलाओं से विवाह करते हैं ताकि अपनी जनसंख्या बढ़ा सकें, यह निराधार है। 1931 से 1960 तक की जनगणना से पुष्टि होती है कि सभी समुदायों में बहुविवाह कम हुआ है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भी मुसलमानों में बहुविवाह का चलन सबसे कम है।
कुरैशी ने कहा- मुस्लिम महिलाओं को 14 सदी पहले ही पुरुषों के बराबर दर्जा मिला था
महिलाओं के साथ बुरे बर्ताव के बारे में उन्होंने कहा कि इस्लाम ने 14 सदी पहले ही महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर दर्जा दे दिया था। मुस्लिम महिलाओं को 1,400 साल पहले ही संपत्ति के अधिकार मिल गए थे, जबकि शेष दुनिया में 20वीं सदी के बाद मिले।
कुरैशी ने कहा- यदि मुसलमान वोट बैंक होते तो राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होते
उन्होंने मुसलमानों को वोट बैंक बताने की निंदा करते हुए कहा कि यदि वे वोट बैंक होते तो राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होते। बंगाल और केरल में वे 30 फीसद हैं और उत्तर प्रदेश तथा बिहार में 20 फीसद, लेकिन सत्ता में भागेदारी बहुत कम है। वे एक साथ वोट नहीं करते, बंट जाते हैं।.