शारदीय नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की हुई पूजा अर्चना
श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सिवान बिहार :
सिवान जिला मुख्यालय सहित सभी प्रखण्ड मुख्यालयों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में शारदीय नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा षोडशोपचार से हुई।
मां कात्यायनी ऋषि कात्यायन की तपस्या के फलस्वरूप उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई थीं।
मां कात्यायनी की पूजा विधि-विधान से करने से सहजता, धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
** प्रिय भोग- मां कात्यायनी को शहद का भोग प्रिय है। ऐसे में पूजा के समय मां कात्यायनी को पान, शहद का भोग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से भक्त का व्यक्तित्व निखरता है।
मां कात्यायनी को गेंदे का फूल प्रिय है।
मां को जयाफल बहुत पसंद है।
शीघ्र विवाह हेतु नवरात्र के छठे दिन शाम के समय गोधूलि वेला में मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना करें और
उन्हें हल्दी की 3 गांठ पीले फूल चढ़ाएं। फूल अर्पित करते समय इस मंत्र का 108 बार जाप करें। ‘ऊं कात्यायनी महामये महायोगिन्यधीश्वरी।
मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के पूजन अर्चन के साथ नौ दिनों का उपवास रखकर श्रद्धालु देवी आराधना कर रहे हैं।
शहर सहित प्रखण्ड मुख्यालयों के ग्रामीण क्षेत्रों में सप्तमी तिथि को मां का पट खुलेगा । इसको लेकर पंडाल व मूर्ति का अंतिम रूप देने का कार्य समाप्ति की ओर हैं। वही पूजन अर्चन करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ने लगीं हैं।
## इस आलोक में ब्राह्मणों ने बताया कि :-
09 अक्टूबर बुधवार को सप्तमी तिथि और मूल नक्षत्र है। इस दिन मां का आंख खुलेगा।
माता कात्यानी सुनहले और चमकीले वर्ण वाली, चार भुजाओं वाली और रत्नाभूषणों से अलंकृत
माता सिंह पर सवार रहती हैं।
इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है।
मां कात्यायनी साधक को दैवीय शक्तियों से पूर्ण करती हैं।
साधक इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त कर लेता है।
उसके रोग, शोक, संताप, भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इनकी निरंतर उपासना में रहने वाला परम पद प्राप्त कर लेता है।
शास्त्रों में वर्णन है कि
महिषासुर से लड़ते हुए देवी मां जब थक गई थीं तो उन्होंने शहद लगे पान का सेवन किया था।