सेवा, संवाद व सहकार का संगम महाकुंभ-2025

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भारतीयता के भावना की विराट अभिव्यक्ति है महाकुंभ

✍️  राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महाकुंभ मस्तिष्क में, विचार में, अमृत भरने वाला है। महाकुंभ सुंदर, विराट, विहंगम, अलौकिक नयनाभिराम है, जो अपनी प्रासंगिकता धरा पर प्रकट कर रहा हैं। अगला संपूर्ण महाकुंभ 2169 ईस्वी में लगेगा क्योंकि पिछला महाकुंभ 144 वर्ष पहले 1881 में भरा था। कुंभ मेला किसी भी उद्देश्य के लिए विश्व के किसी भी कोने में मनुष्य का लगने वाला सबसे बड़ा जमावड़ा है, इससे बड़ी समुदायिकता कहीं नहीं होती, कभी नहीं होती, किसी उद्देश्य के लिए नहीं होती।

जल भरने के पात्र को हम कुंभ कहते है। देवताओं एवं असुरों का संगम हमारी लोक चेतना में विद्यमान है। वेद कहते हैं कि आकाश कुंभ है, काल कुंभ है, समय कुंभ है। मनुष्य में सनातन आकांक्षा अमृत की ही है। ज्ञानी को कैद किया जा सकता है ज्ञान को नहीं। शरीर रहते हुए हम अमर हो जाएं इस हेतु समुद्र मथा गया, परन्तु दुख दूर नहीं हुए। व्यक्ति भी द्वंद युक्त रहता है क्योंकि एक शरीर में बने रहना सुख नहीं है, दु:ख ही है। भारत के ऋषियों की चेतना ने एक दूसरी अमृत का अनुसंधान किया और कहा कि हम जनमानस को ऐसी अमृत देंगे जिसमें शरीर हजार बार भी आए व जाए, इससे अमरता भंग नहीं होगी एवं यह जो मृत्युंजय का शोक है वह भी नहीं होगी।
सूर्योदय से सूर्यास्त पर्यंत जो जगत है उसे पर शासन हो जाए और कभी न समाप्त होने वाली संपत्ति भी प्राप्त हो जाए, तब भी मृत्यु तो तय है। दो प्रकार के अमृत मृत्यु लोक में हमारे सामने आए है। एक वह जो समुद्र मथ कर पाया गया है दूसरा वह तत्वज्ञान है जिसे पाकर व्यक्ति अमर हो जाता है। बार-बार शरीर के नष्ट होने पर भी अमृत नष्ट नहीं होती यह हमें महाकुंभ से प्राप्त हुआ है।

वह जलधारा जिसकी पानी में ध्वनि होती और वह हजार धनुष तक अनवरत बहती रहती है वह नदी है। नदियों के संगम पर भारत के तत्व मीमांसा की जो चेतना प्रकट हुई वह मनुष्य के सर्वोत्तम ज्ञान वैभव को प्रस्तुत करने का केंद्र है, यही कारण है कि प्रयागराज में महाकुंभ का अवसर प्राप्त होता है। गंगा संस्कृति प्रवाह की जलधारा है। प्रयाग में ही महर्षि भारद्वाज ने यज्वल्लभ से राम कथा कराया था।

हमारे समाज में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अतिरेक है। इससे मानव मन भ्रमित होकर मंथन करता है। यह युवाओं में विशेष रुप से विद्यमान है। मन के मंथन से उसे सकारात्मक रूप से चिंतन, एकाग्रता, आत्मविश्वास, धर्मपरायणता, सहनशीलता, करुणा, उदारता, अहिंसा, अनुशासन एवं स्वाभिमान की प्राप्ति होती है। इन्हीं गुण से मनुष्य का मन नर से नारायण की यात्रा तय करता है।

यह महाकुंभ हमारे मन का कुंभ है। यह अमरत्व का मेला भी है जिसे हम मनुष्य 144 वर्ष के बाद इसका आचमन कर रहे है। तन एवं मन की पवित्रता का यह महाकुंभ हमें स्वच्छ जीवन का संदेश देने के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी परलक्षित करता है। हमें उत्तरदायित्व का निर्वहन करना सीखाता है।

विज्ञान एवं तर्क की धरा संगम पर स्नान भेद बताती है। परन्तु श्रद्धा, आस्था, विश्वास वहां से आरंभ होती जहां से विज्ञान एवं‌ तर्क अपने अस्तित्व से भटकने लगते है। महाकुंभ भारतीय वांग्मय का दर्शन है,इसे आत्मसात करने के लिए आपको प्रयागराज जाना होगा।

यहां के बयार में श्रद्धा, धर्म, परम्परा, आस्था, विश्वास, विज्ञान एवं वितर्क माला की भांति एक साथ अवतरित होते है। संगम पर आकर हम शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों की गूढ़ शास्त्रिय रहस्यों के साथ औघड़ के विभिन्न भंगिमाओं से अवगत होते है।कांटों पर शवासन में पड़े हठयोगी की लीला हमें विस्मित करती है। अभेद रुपी सनातन के प्रांगण में जीव व ब्रम्ह का भेद मिट जाता है। यात्रा के कष्ट की प्रतिकूलताएं कुंभ को साकारात्मक बनाती है।
समाज के आरोप-प्रत्यारोप व प्रतिस्पर्धा से तुष्ट यह महाकुंभ विलक्षण है।

सम्पूर्ण तत्वों से मिलकर सृष्टि बनती है। सृष्टि में चेतन ही चराचर है। कुंभ का सारतत्व यह है कि जब हम अपनी ही छोटे से क्षेत्र में गुजर बसर करने लग जाते हैं तो यह सोचते हैं कि मैं जो कर रहा हूॅं, जो मेरे क्षेत्र में हो रहा है, मैं जो सोच रहा हूं एवं मेरी परंपरा में जो चल रहा है वही पहला और अंतिम सत्य है, सुंदर है, सबसे बढ़कर है। जब संचार की व्यवस्था नहीं थी तब इस प्रकार के आयोजन व्यक्ति के लिए आश्चर्यचकित करने वाला होता था। पूरे राष्ट्र का संवाद होता था।

आज भी कुंभ में रूप-रंग, जाति-वर्ण, उच्च-नीच का भेद मिट जाता है। इसमें विचारों एवं संस्कृति का खुला आदान-प्रदान होता है। इससे प्रत्येक व्यक्ति में उदारता आती है। सबसे बड़ा संदेश हमें यह मिलता है कि हम जैसे अपने जीवन को व्यतित कर रहे हैं वही एकमात्र मार्ग नहीं है, उनमें से कुछ मार्गों को हम ढूंढने हेतु कुंभ जैसे स्थलों पर आते है, ताकि हमारा जीवन और सरस, सरल व सुंदर हो।

 

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