महाकुंभ हमारी संस्कृति की मीमांसा है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जीवन की सबसे स्नेहिल स्मृतियों में बाबा मेरी उंगली पकड़े दिखते हैं। पहली बार उनकी उंगली थामे गाँव के स्कूल जाना! पहली बार उनकी उंगली थाम कर बाजार जाना। पहली बात उनकी ही उंगली थाम कर मेला जाना।
पहली लग्जरी ( क्रिकेट बैट, फुटबॉल, बैडमिंटन) उन्होंने दिलाई। यहां तक कि पहला अपराध (टेंथ क्लास में स्कूल से भाग कर वीडियो हॉल में अमिताभ के बेटे की पहली फिल्म रिफ्यूजी देखना) भी उनको चुपके से बता कर किये थे। मुझे लगता है, यह भारत के हर उस बच्चे की कहानी है, जिसके बचपन के हिस्से में बाबा आये हों।
बच्चे को लेकर जितनी साध बाबा-ईया (दादा दादी) को होती है, उतनी माँ बाबूजी को नहीं हो सकती। उनके कंधे पर दायित्वों का बोझ ही इतना अधिक होता है कि इस ओर ध्यान ही नहीं जाता। बच्चों के लिए उनकी योजनाओं में पढ़ाई होती है, बड़े कॉलेज में एडमिशन के सपने होते हैं, अच्छी नौकरी की उम्मीद होती है, सुख सुविधाओं की चिंता होती है। पर दादा दादी इसके चक्कर में नहीं होते… उनकी योजनाओं में मेला होता है, खिलौने होते हैं, यात्राएं होती हैं, स्नेह होता है…
दुनिया कितनी भी बदले, भारत के बच्चों के लिए बाबा के कंधे से अधिक आनन्ददायक सवारी कोई नहीं। और शायद बुजुर्गों के लिए भी अपने नाती पोतों को कंधे पर बैठा कर घुमाने से अधिक संतोषजनक काम दूसरा नहीं होता।
बाबा ईया का प्रेम निःस्वार्थ होता है। वे जानते हैं कि इस बच्चे के वयस्क होने से पूर्व ही उन्हें निकल जाना होगा, सो वे उससे कोई इच्छा पालते ही नहीं। बस जीवन के अंतिम वर्षों में, निकल जाने से पूर्व वे अपना समूचा प्रेम उड़ेल देना चाहते हैं।
यदि आप गाँव देहात के हैं तो बूढ़ों से अपने पोतों के लिए यह कहते खूब सुना होगा कि “यही न हमको लकड़ी देगा! एक लकड़ी रख देगा तो तर जाएंगे…” यह कहते कहते वे मुस्कुरा उठते हैं। अपनी मृत्यु की इतनी प्रसन्न भाव से चर्चा करने का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता कहीं। हालांकि मोह उन्हें उस लकड़ी का भी नहीं होता, बस वे इस हिसाबी दुनिया के सामने अपने समर्पण को जस्टिफाई कर रहे होते हैं।
इस तस्वीर में कुछ विशेष नहीं है। भारत के हर बाबा की तरह यह बाबा भी अपने पोते को गङ्गा नहवाने लाए हैं। बस उनके बहाने हम सब को अपने बाबा की याद आती है, उस प्रेम की याद आती है जो हमको अपने बाबा से मिला था। वही प्रेम इस तस्वीर को विशेष बना देता है।
आभार-सर्वेश, गोपालगंज, बिहार
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