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हिंदी साहित्य को संवेदना के स्वर से सुसज्जित करती रहीं संन्यासिन कवयित्री महादेवी वर्मा: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

हिंदी साहित्य को संवेदना के स्वर से सुसज्जित करती रहीं संन्यासिन कवयित्री महादेवी वर्मा: गणेश दत्त पाठक

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सीवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान में छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंती पर श्रद्धासुमन किया गया अर्पित

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

‘मैं नीर भरी दुख की बदली ‘ का मार्मिक उद्घोष करतीं संन्यासिन कवयित्री महादेवी वर्मा ने हिंदी साहित्य में करुणा और संवेदना की सरिता बहाने में अप्रतिम योगदान दिया। साहित्य में जब संवेदना से सुसज्जित शब्द पिरोए जाते हैं तो रचना का सौंदर्य लालित्य आत्मा से संवाद करता दिखता है। शायद इसी कारण निराला ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ कहा तो ‘आधुनिक मीरा’ की उपाधि भी महादेवी वर्मा को मिली।

यद्यपि महादेवी वर्मा छायावादी कवयित्री थी। लेकिन उन्होंने अपनी साहित्य साधना के करुणामयी उपागम से छायावाद को नवीन मूल्यों और नई चेतना से सुसज्जित किया। स्त्री विमर्श के संदर्भ में महादेवी वर्मा की सक्रियता का आधार नारी शिक्षा पर जोर रहा। महादेवी वर्मा ने मानवीय पीड़ा और वेदना को अपने शब्दों से ऐसा पिरोया कि मन भीग जाता है और अजीब सी तरलता और चेतना छा जाती है।

महादेवी वर्मा का काव्य कौशल माधुर्य और मार्दव प्राजंलता का बयार बहाता दिखता है। ये बातें सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर महान कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने शनिवार को कही।

इस अवसर पर संस्थान में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों ने महादेवी वर्मा के कविताओं का पाठ भी किया। इस अवसर पर रागिनी कुमारी, मोहन यादव, मीरा कुमारी, दिव्या तिवारी, आशुतोष पांडेय, राजीव रंजन, इकबाल अंसारी, अमित कुमार आदि उपस्थित थे।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के तले कराह रही मानवता को महादेवी वर्मा की लेखनी ने विशेष राहत पहुंचाई। उनकी लेखनी ने पीड़ा के हर आयाम को शब्दों से सींचा। उनकी रचनाओं ने नारी सशक्तिकरण को सशक्त आवाज दिया। श्री पाठक ने कहा कि महादेवी वर्मा की रचनाएं व्यथा को प्रतिबिंबित करती हैं। विषाद को संदर्भित करती हैं। लेकिन त्याग और संयम के संदेश भी देती हैं। यहीं त्याग और संयम आज के उपभोक्तावादी युग में भी बेहद प्रासंगिक है।

 

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