खटमल से भी रोमांस पैदा करके गए महाकवि नीरज.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जो बात परेशानी वाली हो, उसमें रोमांस निकालने के बारे में कोई सोच नहीं सकता, लेकिन महाकवि गोपाल दास नीरज ने अपने शब्दों से यह चमत्कार कर दिखाया। हम बात कर रहे हैं कि 1973 में आई विजय आनंद की फिल्म ‘छुपा रुस्तम’ के उस सुपर-डुपर हिट गीत-धीरे से जाना खटियन में, हो खटमल…, के बारे में। जिसे पढ़कर फिल्म के संगीतकार एसडी बर्मन ने नीरज को डांट तक दिया।
हालांकि, कुछ रद्दोबदल करके इस गीत को फिल्म में रखा। किशोर कुमार की आवाज में इस गीत ने धमाल मचा दिया। यह गीत लोगों की जुबां पर चढ़ गया। ऐसे ही थे गीत ऋषि पद्मभूषण गोपाल दास नीरज। उनकी 97वीं जन्मतिथि की पूर्व संध्या में तमाम साहित्यकारों व कवियों ने उनसे जुड़ीं यादें साझा की है।
बातों बातों में खटमल का जिक्र करते थे नीरज जी
वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रेम कुमार ने बताया कि कई बार बातों-बातों में वे खटमलों के परेशान करने का जिक्र करने लगते थे। एक बार उनसे मिला तो बताने लगे कि देवानंद अभिनीत फिल्म के लिए खटमल पर एक रोमांटिक गीत लिखा है। मैं चौंक गया, लेकिन आश्वस्त था कि महान गीतकार ने फिर कोई चमत्कार कर दिया है। गीत सुना तो उनकी प्रतिभा का और ज्यादा कायल हो गया।
नीरज ने बताया कि एसडी बर्मन इस गीत की धुन बनाने को तैयार नहीं। लेकिन, देवानंद साहब को नीरज की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था। उन्होंने एसडी बर्मन से बात की। देवानंद के बड़े भाई फिल्म निर्माता विजय आनंद भी गीत को रखने पर सहमत थे। अंत: यह गीत फिल्म में रखा गया और हिट रहा।
आटो रिक्शा में लिखा था गीत
नीरज के पुत्र शशांक प्रभाकर बताते हैं कि महाकवि का फिल्मों के लिए गीत लेखन कुछ लोग सात-आठ साल की बताते हैं, लेकिन वे 2003 तक सक्रिय रहे थे। उनके शब्दों में चमत्कार था। 1998 में आई विक्रम भट्ट की सुपरहिट फिल्म ‘फरेब’ के लिए भी उन्होंने टाइटल सांग लिखा था। जिसके बोल थे-‘आंखों से दिल में उतरकर तू मेरी धड़कन में है।’ उस समय मैं और पितादी मुंबई में बुआ के यहां रहते थे।
रोजाना आटो से फिल्म की शूटिंग देखने जाते थे। इसी दौरान वे गुनगुनाते हुए मुझसे लिखवाते रहते। कई दिनों के गीत को पूरा करके हम संगीतकार जतिन ललित को सौंपने जा रहे थे। गाने के मध्य एक लाइन है…तेरी खनक मेरे कंगन में है, पहले कंगन की जगह चूड़ी शब्द था, लेकिन उससे चमत्कार पैदा नहीं हो रहा था। अचानक आटो में कंगन शब्द याद आया तो और तुरंत लिखवा दिया। गीत सुपरहिट रहा। 2003 में अन्नू मलिक के लिए ‘दिल से ना जाना दूर लिखा’, लेकिन यह फिल्म डिब्बा से बाहर नहीं आई।
इनका कहना है
महाकवि नीरज काफी स्वाभिमानी भी थे। समय के पाबंद भी। एक बार लखनऊ में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से मिलने पहुंचे। सुबह 11 बजे का समय तय था। वे आधा घंटा पहले पहुंच गए। लेकिन, मुलायम सिंह 12 बजे तक भी अंदर से नहीं आए। नीरज मुझे लेकर गोमती नगर स्थित अपनी कोठी पर आ गए। मुलायम सिंह की काल आई, लेकिन वे नहीं गए। स्पष्ट कहा कि अब कल आएंगे।
– रामसिंह, पूर्व पीए नीरज।
नुमाइश में पहली बार नीरज पुरस्कार, एक प्रशासनिक अधिकारी को दे दिया गया। मैंने इसका विरोध किया था। खबर फैली की मैं नीरज के खिलाफ बोल रहा हूं। इससे मैं डर गया कि नीरज अब मुझसे नाराज हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नीरज का मेरे पास फोन आया। बताया कि पुरस्कार सात सदस्यीय समिति का है, मेरा नहीं। इससे पता चलता है कि नीरज मन में कोई बात नहीं रखते थे।
– अशोक अंजुम, वरिष्ठ कवि।
1972 में डीएस कालेज में काव्य गोष्ठी के लिए निमंत्रण देने नीरज के आवास पर पहुंचा था। उन्होंने साफ कहा कि जिस कालेज को छोड़ आया हूं, उसमें नहीं जाऊंगा। हमनें आग्रह किया कि कैसे भी हालात रहे हों, उसमें हमें किस बात की सजा दे रहे। कुछ देर बात वे शांत हो गए और काव्य गोष्ठी में आने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। आकर काव्य पाठ भी किया। वे क्रुद्ध होने के बाद प्रसन्न क्षण भर में हो जाते थे।
– डा.वेद प्रकाश अमिताभ, वरिष्ठ साहित्यकार।
गोपाल दास नीरज सभी धर्मों को बराबर सम्मान देते थे। वे सच्चे धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे। मंचों पर शायरों से बड़ी आत्मीयता से मिलते थे। आमंत्रित शायरों में कोई आने से रह जाए तो उसके बारे में जरूर पूछते थे कि राहत इंदौरी नहीं, नवाज देवबंदी नहीं आए। नीरज के लिए मेरे दिल में हमेशा सम्मान रहेगा।
‘जनकपुरी’ में पसरा सन्नाटा, नहीं संजो पाए यादें
महाकवि का निधन होने के बाद उनकी यादों को संजोने के लिए प्रशंसकों व स्वजन ने काफी योजनाएं बनाईं। नीरज-शहरयार पार्क में नीरज की प्रतिमा स्थापित करने, नुमाइश गेस्ट हाउस के एक कमरे में संग्रहालय की स्थापना करने, चौराहा व मार्ग का नामकरण नीरज के नाम से करने, हस्तलिखित कृतियों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की योजना बनाई गई। प्रतिमा तो स्थापित हो गई।
लेकिन अन्य कार्य नहीं हो पाए। जनकपुरी स्थित नीरज का वह आवास, जहां पर कभी बड़ी-बड़ी हस्तियों का आना-जाना होता था, उनके बाद सूना हो गया। कोठी के जिस हिस्से में वे रहते थे, वो पूर्ण रूप से बंद हो चुका है। नीरज के बड़े बेटे मिलन प्रभात गुंजन हरिद्वार में रहते थे। दूसरे शशांक प्रभाकर आगरा में। उनका भी अब यहां आना-जाना कम हो गया है। पुत्र मिलन प्रभात गुंजन ने बताया कि संग्रहालय के लिए डीएस कालेज प्रबंधन को महाकवि की तस्वीरें, पुस्तकें, पत्र, डायरी व अन्य सामान दे दिया है। कोरोना संक्रमण काल की वजह से योजनाएं मूर्त रूप नहीं ले पाई हैं। स्थिति सामान्य हो तो फिर जुटेंगे।
छह को होगा आयोजन
गुंजन ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की वजह से चार जनवरी को केपी इंटर कालेज में होने वाला कार्यक्रम अब छह जनवरी को होगा। हालांकि, कोरोना संक्रमण की वजह से कार्यक्रम का स्वरूप छोटा रहेगा। कोरोना संक्रमण की वजह से मैं भी नहीं आ पाऊंगा। महाकवि के सभी प्रशंसकों का उनके स्नेह के लिए आभार व्यक्त करता हूं। तीन जनवरी को लखनऊ में कई कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
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