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समावेशी समाज की संकल्पना के अग्रदूत थे महर्षि वाल्मीकि:गणेश दत्त पाठक

समावेशी समाज की संकल्पना के अग्रदूत थे महर्षि वाल्मीकि:गणेश दत्त पाठक

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हर व्यक्ति के प्रति सम्मानजनक व्यवहार ही हो सकती है महर्षि वाल्मीकि के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि

अयोध्यापुरी में पाठक विचार मंच द्वारा महर्षि वाल्मिकी जयंती पर आयोजित किया गया विचार गोष्ठी

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

सनातन परंपरा के सार्वभौमिक ग्रंथ रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी के संदेश, जो उन्होंने समाज को दिए, आज के उपभोक्तावादी समाज में बेहद प्रासंगिक दिखते हैं। समाज के हर व्यक्ति के प्रति सम्मानजनक और समान व्यवहार ही महर्षि वाल्मिकी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। बहुत जरूरी है कि महर्षि वाल्मीकि के संदेश को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाए और उस पर हर व्यक्ति द्वारा अमल किया जाए तो सामाजिक समरसता के क्षेत्र में अच्छी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। यह बातें शिक्षाविद् गणेश दत्त पाठक ने अयोध्यापुरी में पाठक विचार मंच द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में कही। विचार गोष्ठी में प्रांजल पांडेय, सौरभ सिन्हा, आकृति गुप्ता, अनुभव सिंह, रागिनी यादव, हरेंद्र दास आदि उपस्थित रहे।

विचार गोष्ठी में श्री पाठक ने कहा कि महर्षि वाल्मिकी के सदियों पुराने संदेश आज भी सकारात्मकता, संचेतना का प्रसार सिर्फ देश में नहीं दुनिया में करते दिखाई देते हैं। रामायण के माध्यम से उन्होंने समाज को विविधता में एकता का संदेश दिया। उन्होंने रिश्तों में विश्वास और श्रद्धा के महत्व को सुप्रतिष्ठित किया। हर व्यक्ति के प्रति दया और प्रेम की भावना के विकास पर बल दिया। उन्होंने अपनी शिक्षा से सामाजिक न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।

रागिनी गुप्ता ने कहा कि आज हम उपभोक्तावादी समाज में जी रहे हैं। मानवीय मूल्यों के प्रति हमारी श्रद्धा कम होती जा रही है। ऐसे में महर्षि वाल्मिकी ने रामायण के माध्यम से प्रेम, त्याग, तप, अनुशासन, ईमानदारी, दया, धर्म जैसे आदर्शों को समाज में प्रतिस्थापित कर मानव मूल्यों को प्रतिष्ठित करने में अपार योगदान दिया।

अनुभव सिंह ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने मनुष्य की इच्छाशक्ति को विशेष महत्व प्रदान किया। उनका मानना था कि मानव की इच्छाशक्ति यदि मजबूत हो तो वह कोई भी काम बेहद आसानी से कर सकता है। महर्षि वाल्मिकी ने जोर देकर कहा कि इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना सकती है। उन्होंने यहां तक कहा कि प्रण को तोड़ने से पुण्य भी नष्ट हो जाते हैं।

आकृति गुप्ता ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि अहंकार को मनुष्य का बहुत बड़ा दुश्मन मानते थे। अंहकार सोने के हार को भी मिट्टी बना देता है। महर्षि वाल्मिकी ने बताया कि मन कभी भी इच्छित वस्तु प्राप्त होने के बाद भी संतुष्ट नहीं हो पाता है।

हरेंद्र दास ने कहा कि महर्षि वाल्मिकी ने बताया कि माता पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा दूसरा कोई धर्म नहीं हो सकता। सेवा के लिए उपयोग किया बल हमेशा टीका रहता है।

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