महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में आ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की जयंती मनाई गई.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हिंदी विभाग, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के तत्वावधान में हिंदी साहित्य के प्रखर आलोचक आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की जयंती के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक अवदान’ विषयक परिचर्चा की अध्यक्षता प्रो.राजेंद्र सिंह(अध्यक्ष, मानविकी एवं भाषा संकाय) ने की। प्रो.प्रसूनदत्त सिंह(अध्यक्ष,संस्कृत विभाग) कार्यक्रम के मुख्यअतिथि थे।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.राजेंद्र सिंह ने कहा कि,आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ‘आलोचना के कबीर’ हैं। हिंदी एकडमिया में कबीर को स्थापित करने का श्रेय द्विवेदी जी को ही जाता है। द्विवेदी जी ने अपने रचनाकर्म से हिंदी आलोचना को समृद्ध किया है। मुख्यअतिथि प्रो.प्रसूनदत्त सिंह ने कहा कि साहित्य विपुल भंडार है। इसके साथ जीना और-और जानने-समझने की प्यास का बढ़ना है। आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की भाषा हिंदी-संस्कृत की ‘सेतु बंध’ है।
हिंदी विभाग के सह-आचार्य डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने द्विवेदी जी से जुड़े संस्मरण साझा किए।। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी रचना और आलोचना, दोनों में ही शीर्षस्थ हैं। द्विवेदी जी ने रचनाकर्म के साथ-साथ ही ‘गुरु-शिष्य’ परंपरा को विस्तार दिया है।
संस्कृत विभाग के सह-आचार्य डॉ. अनिल प्रताप गिरी ने कहा कि, द्विवेदी जी ने अपनी रचनाशीलता से संस्कृत और हिंदी, दोनों ही भाषा-साहित्य को समृद्ध किया है।
‘कबीर’ पुस्तक अपने ढंग की अनूठी पुस्तक है जिसे पढ़ते हुए द्विवेदी जी के भाषा वैविध्य को हम देखते हैं।डॉ. बबलू पाल(सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग) ने कहा कि,आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध जीवन से जुड़ते हैं। अपने उपन्यासों के माध्यम से द्विवेदी जी ने भाषा को और-और समृद्ध किया है।
हिंदी विभाग के शोधार्थी नित्यानंद सागर, विकास गिरी, मुकेश कुमार ने भी अपने विचार रखे। स्वागत हिंदी विभाग की शोधार्थी रश्मि सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन सुनंदा गराईं ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन मनीष कुमार भारती ने किया।
आभार-रश्मि सिंह
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