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महात्मा गांधी जी का हिंदी के विकास में अतुलनीय योगदान रहा है। - श्रीनारद मीडिया

महात्मा गांधी जी का हिंदी के विकास में अतुलनीय योगदान रहा है।

महात्मा गांधी जी का हिंदी के विकास में अतुलनीय योगदान रहा है।

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 गांधी जी की आज पुण्यतिथि है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गाँधी का चिंतन-दर्शन, राष्ट्र नवनिर्माण एवं स्वराज की कल्पना का प्रत्यक्ष/परोक्ष प्रभाव हिन्दी साहित्य पर है। विश्व साहित्य भी इससे अछूता नहीं है।महात्मा गांधी जी को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और ‘राष्ट्रपिता’ माना जाता है। वे भले ही गुजराती भाषी थे, लेकिन हिंदी के विकास में उनका योगदान अतुलनीय रहा है।

स्वतंत्रता-आंदोलन में आने से पहले गांधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया और पाया कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को जोड़ सकती है। हिंदी के लेखकों-कवियों के साथ भी गांधी जी के रिश्ते बहुत सघन रहे। महाकवि निराला का किस्सा तो प्रसिद्ध है कि जब गांधीजी ने कहा कि हिंदी में कोई टैगोर नहीं है, तो निराला भड़क गए और उन्होंने गांधी जी से प्रतिवाद किया।

गांधीजी ने अपनी भूल स्वीकार भी की। ऐसा ही पांडेय बेचन शर्मा उग्र जी के साथ हुआ। उनकी पुस्तक चाकलेट पर जब बनारसी दास चतुर्वेदी ने अश्लीलता का आरोप लगाया और उसे घासलेटी साहित्य कहा, तो मामला गांधी जी तक पहुँचा। गांधी जी ने पुस्तक पढ़ी और उग्रजी को उस आरोप से बरी करते हुए कृति को समाज के हित में बताया। उस पर उन्होंने अपने पत्र ‘हरिजन’ में लेख भी लिखा।

हिंदी लेखकों पर गांधी जी का क्या प्रभाव रहा, यह समझने के लिए उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की रचनाएँ पढ़ी जानी चाहिए। प्रेमचंद ने माना कि उनका हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ना गांधी जी के कारण ही संभव हुआ। गांधी जी जो हिंदी लिखते और बोलते थे, उसे वे हिंदी नहीं, बल्कि हिंदुस्तानी कहते थे। यह उस समय की संस्कृतनिष्ठ हिंदी से अलग थी। यह सहज-सरल हिंदी थी, जिसे गांधी जी ने एक संपर्कभाषा के रूप में प्रयोग किया। उनका यह वाक्य बहुत प्रसिद्ध है कि ‘राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।’

गांधी जी ने हिंदी में दो अखबार निकाले-‘नवजीवन’ और ‘हरिजन सेवक’। अपने ज्यादातर पत्रों का जवाब भी गांधी जी हिंदी में ही देना पसंद करते थे। हिंदी अगर राजभाषा बन सकी, तो उसमें गांधी जी का बड़ा योगदान था।

बापू ! तुमने होम दिया जिसके निमित्त अपने को,
अर्पित सारी भक्ति हमारी उस पवित्र सपने को।
क्षमा, शान्ति, निर्भीक प्रेम को शतशः प्यार हमारा,
उगा गये तुम बीज, सींचने का अधिकार हमारा।
निखिल विश्व के शान्ति-यज्ञ में निर्भय हमीं लगेंगे,
आयेगा आकाश हाथ में, सारी रात जगेंगे।

~रामधारी सिंह “दिनकर”

 

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