2021 में बिहार की प्रमुख राजनीतिक घटनाएं.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार की सियासत ने वर्ष 2021 में कई रंग देखे। कभी नीम-नीम कभी शहद-शहद का सिलसिला चलता रहा। सत्ता पक्ष और विपक्ष में तकरार के साथ नेताओं की कहासुनी में मर्यादाएं भी टूटजी दिखीं। वर्ष की शुरुआत राजनीतिक इतिहास में काला पन्ना जोड़ गया। विधानसभा में हंगामा के बाद विधायकों की पिटाई की घटना राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में रही। कोरोना से विधायकों व विधान पार्षदों की मौत हुई।
लंबे समय बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर आए। बेटे लालू के बेटे तेजस्वी यादव की चर्चित शादी हुई। यह साल रामविलास पासवान की पार्टी और परिवार में बिखराव का साक्षी बना। विधानसभा में वंदे मातरम गाने से एआइएमआइएम के विधायकों के इंकार, पूर्व सीएम मांझी की बयानबाजी, सरकार गिराने की धमकी समेत कई ऐसी घटनाएं हुईं जो सियासत को हर दिन नया रंग देती रही। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, जातिगत जनगणना, शराबबंदी जैसे मुद्दे भी उछलते रहे। हम आपको बिहार की प्रमुख सियासी घटनाओं से रूबरू करवाते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समाज सुधार यात्रा भी चर्चा का विषय बनी रही।
(बिहार विधानसभा में विपक्षी दलों ने किया था हंगामा। फाइल फोटो)
विधानसभा में मंगलवार को हुआ था अमंगल
विधानसभा की कार्रवाही चल रही थी। दिन था 23 मार्च 2021। यह विधानसभा के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज हो गया। दरअसल बिहार सशस्त्र पुलिस विधेयक को सदन में पेश होने से रोकने को लेकर राजद समेत सभी विपक्षी दल आमादा थे। राजद ने भ्रष्टाचार, विधि व्यवस्था, बेरोजगारी के मुद्दे पर विधानसभा घेराव किया। तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव समेत कई कार्यकर्ता डाकबंगाला चौराहे पर पहुंच गए। वहां पुलिस ने रोका तो हंगामा हो गया। इसके बाद तेजस्वी व तेजप्रताप को हिरासत में ले लिया गया। गांधी मैदान थाने लाने के बाद उन्हें छोड़ा गया। इधर सदन में भी हंगामा चल रहा था।
इस कारण सदन की कार्रवाही तीन बार स्थगित की गई। चौथे बार जब कार्रवाही शुरू हुई तो स्पीकर को उनके चैंबर में ही बंधक बना लिया गया। इसके बाद पटना के डीएम-एसएसपी भारी संख्या में पुलिस बल के साथ पहुंचे। इसके बाद धक्का-मुक्की शुरू हो गई। इसके बाद पुलिस ने विधायकों को खींच-खींचकर बाहर निकाला। महिला विधायकों को भी जबरन हटाया गया। इस दौरान कई विधायकों की पिटाई भी की गई। इसके बाद विधेयक को पारित किया गया। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि उनपर जानलेवा हमला किया गया।
(पटना आने पर पुराने अंदाज में दिखे लालू। चलाई अपनी पहली जीप। फाइल फोटो)
तीन वर्ष बाद जेल से बाहर आए राजद प्रमुख लालू प्रसाद
चारा घोटाला के मामले में जेल में सजा काट रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव तीन वर्षों बाद 29 अप्रैल को जेल से बाहर आए। वे पुलिस अभिरक्षा में दिल्ली एम्स में इलाजरत थे। इसके बाद वे अपनी पुत्री और राज्यसभा सांसद डा. मीसा भारती के आवास पर शिफ्ट हो गए। लालू प्रसाद को 17 अप्रैल को ही जमानत मिल गई थी लेकिन वे रिहा हुए 12 दिनों बाद। तबियत में सुधार होने के बाद वे 24 अक्टूबर को पटना लौटे। उनका भव्य स्वागत किया गया। इसके बाद वे विधानसभा उपचुनाव के प्रचार में भी गए। समर्थक उन्हें देखकर उत्साहित थे।
हालांकि, सेहत का असर उनपर साफ दिख रहा था। चुनाव परिणाम भी उनके पक्ष में नहींं रहा। इसके बाद वे फिर दिल्ली लौट गए। लालू प्रसाद के पटना आने से लेकर लौटने तक बयानबाजी, परिवार में विवाद भी हुआ। लालू प्रसाद ने अलग हो चुके कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास को भकचोन्हर दास कह दिया था। इसपर खूब बवाल मचा। इधर तेजप्रताप यादव अलग मूड में थे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ बिगुल फूंक चुके तेजप्रताप ने खूब हंगामा किया। हालांकि समय के साथ मामला शांत हो गया।
(चिराग पासवान के खिलाफ पार्टी में बगावत)
बिखर गया रामविलास पासवान का बंगला
दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी 2021 के जून महीने में 13 तारीख को बिखर गई। 28 नवंबर 2000 में इसका गठन किया गया था। स्व पासवान के पुत्र जमुई के सांसद चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने एनडीए में रहकर भी जदयू को काफी नुकसान पहुंचाया। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी के पांच सांसदों ने बगावत कर दी। इसमें उनके चचेरे भाई प्रिंसराज, महबूब अली कैसर, वीणा देवी और चंदन सिंह शामिल थे।
खुद को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान की तमाम कोशिशों के बावजूद पशुपति कुमार पारस केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए। इसके बाद मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा। चुनाव आयोग ने पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान की लोजपा के नाम बदल दिए। बंगला को फ्रीज कर दिया गया। पारस की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और चुनाव चिह्न सिलाई मशीन दिया गया। वहीं चिराग की पार्टी का नाम लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और चुनाव चिह्न हेलीकाप्टर कर दिया गया।
(विधानसभा उपचुनाव में दोनों सीटों पर जदयू की जीत। फाइल फोटो)
जदयू ने कायम रखी अपनी बादशाहत
कोरोना ने जदयू के दो विधायकों डा. मेवालाल चौधरी और शशिभूषण हजारी को छीन लिया। उनके निधन से रिक्त हुई तारापुर और कुशेश्वरस्थान सीटों पर 30 अक्टूबर को उपचुनाव हुआ। इस चुनाव से पहले कांग्रेस और राजद के रास्ते अलग हो गए। इस बिखराव का सीधा फायदा एनडीए को मिला। जदयू, राजद के अलावा कांग्रेस और पप्पू यादव की पार्टी जाप ने भी उम्मीदवार खड़े किए। चुनाव प्रचार में सीएम नीतीश कुमार, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद समेत कई दिग्गजों ने शिरकत की।
हर तरफ से पूरी ताकत झोंक दी गई। तेजस्वी लोगों से कहते रहे कि ये दो सीट जीत गए तो फिर सरकार बना लेंगे। लेकिन लंबे समय बाद जनता के बीच पहुंचना भी राजद सुप्रीमो के पक्ष में नहीं रहा। आखिरकार दोनों सीटों पर जदयू के उम्मीदवारों की जीत हुई।
(तेजस्वी यादव की शादी को लेकर रहा सस्पेंस। फाइल फोटो)
तेजस्वी की शादी पर अंत समय तक रहा सस्पेंस
बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की शादी वर्ष की चर्चित घटनाओं में से एक रही। दिल्ली में नौ दिसंबर को तेजस्वी ने अपनी स्कूल फ्रेंड रेचल गोडिन्हो के साथ शादी की। इसमें करीबी लोग ही शामिल हुए। पार्टी नेताओं तक को इसका पता नहीं था कि कब शादी है और दुल्हन कौन है। हालांकि तेजस्वी जब दुल्हन के साथ पटना आए तो उन्होंने गुपचुप शादी को लेकर सारी बातें स्पष्ट कर दीं।
लेकिन इस दौरान मामा व पूर्व सांसद साधु यादव की नाराजगी को लेकर खूब चर्चा हुई। साधु यादव ने लालू परिवार को जमकर निशाने पर रखा। इसके बाद उनके भांजे तेजप्रताप यादव और भांजी रोहिणी आचार्य ने तेवर दिखाए। परिवार का झगड़ा सड़क तक आ गया। लेकिन जल्द ही इसका पटाक्षेप भी हो गया।
(कन्हैया कुमार ने ज्वाइन की कांग्रेस। फाइल फोटो)
वाम दल को छोड़ कन्हैया ने थाम लिया हाथ
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से चर्चा में आए बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले कन्हैया कुमार ने वामपंथी दल से अपनी राजनीति की शुरुआत की। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ वे लोकसभा चुनाव में भी उतरे थे। लेकिन समय के साथ वामदल से उनका मोहभंग हो गया। भगत सिंह की जयंती के मौके पर 28 सितंबर को कन्हैया कुमार ने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।
कन्हैया की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी ज्वाइन कराई। इस अवसर पर कन्हैया ने कहा कि कांग्रेस नहीं बचेगी तो देश भी नहीं बचेगा। लोकतंत्र को बचाने के लिए वे कांग्रेस में शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा कि वैचारिक संघर्ष को कांग्रेस ही नेतृत्व दे सकती है। कन्हैया के इस परिवर्तन की चर्चा भी खूब होती रही।
एआएमआइएम विधायकों ने नहीं गाया वंदे मातरम
विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत इस बार राष्ट्रगाण जन, गन मन से हुई। तीन दिसंबर को समापन पर राष्ट्रगीत गाया गया। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी के विधायकों ने सदन में इसे गाने से इंकार कर दिया। अख्तरुल इमान का कहना था कि संविधान में इसकी चर्चा नहीं है। जबरन हमपर कुछ थोपा नहीं जा सकता। इसके बाद भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने कहा कि ये लोग तालिबानी मानसिकता वाले हैं। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी सियासत गरमाती रही। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी एआइएमआइएम के विधायक के बयान से बवाल हुआ।
(जीतन राम मांझी के बयान से बढ़ी सियासी सरगर्मी।)
मांझी के बयान ने मचा दिया घमासान
वर्ष खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ गुजर रहा था। दिसंबर महीने की ठंड परवान चढ़ ही रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री और हम के नेता जीतन राम मांझी के बयान से राजनीति गरमा गई। उन्होंने ब्राह्मणों और सत्यनारायण पूजा को लेकर ऐसी बातें कह दीं कि बवाल मच गया। उनके बयान के बाद कई संगठनों ने उनपर मुकदमा कर दिया। भाजपा के एक नेता ने उनका जीभ काटने पर 11 लाख इनाम की घोषणा कर दी।
हालांकि पार्टी ने उस नेता को बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन मामला यहींं नहीं थमा। बिहार सरकार के मंत्री नीरज कुमार बबलू ने पूर्व सीएम पर उम्र का असर बता उन्हें राजनीति से संंन्यास की नसीहत दे दी। इसके बाद मांझी की पार्टी ने समर्थन वापसी तक की धमकी दे दी। हालांकि मांझी पहली बार कोई विवादास्पद बयान दे रहे थे ऐसी बात नहीं थी। पूर्व में वे भगवान श्रीराम के अस्तित्व को नकार चुके थे। शराबबंदी कानून पर भी सरकार को नसीहतें दे डाली थीं।
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