पाकिस्तान में मलाला की तस्वीर वाली किताबें जब्त, महत्वपूर्ण शख्सियत नहीं मानता

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क :

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में प्रशासन ने एक स्कूल की उन किताबों को जब्त किया है, जिनमें नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई को महत्वपूर्ण शख्सियतों की सूची में शामिल दर्शाया गया था. इस कदम के पीछे ब्रिटेन में रह रही कार्यकर्ता के इस्लाम पर विवादास्पद बयानों के कारण पाकिस्तान की नाराजगी को माना जा रहा है. मलाला सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली शख्सियत हैं. मलाला सोमवार को 24 साल की हो गई. उन्हें उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के प्रांत खैबर पख्तूनख्वा की स्वात घाटी में महिलाओं और बच्चों की शिक्षा तथा मानवाधिकारों की वकालत करने के लिए जाना जाता है.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान नामक संगठन ने इस क्षेत्र में कई बार लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई करने पर पाबंदियां लगाई हैं. पाकिस्तान निजी स्कूल संघ ने मलाला पर एक वृत्तचित्र पेश किया जिसमें इस्लाम, विवाह और पश्चिमी एजेंडा पर उनके विचारों को शामिल किया गया था. डॉन अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक, उसी दिन पंजाब पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक बोर्ड ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित कक्षा 7 की सामाजिक अध्ययन की पुस्तकें जब्त कर ली. इन पुस्तकों में 1965 भारत-पाक युद्ध में मारे गए सैन्य अधिकारी मेजर अजीज भट्टी और अन्य शख्सियतों के साथ मलाला का चित्र भी प्रकाशित किया गया था.

किताब की पृष्ठ संख्या 33 पर पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना, शायर अल्लामा इकबाल, शिक्षाविद सर सैयद अहमद खान, पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान और अब्दुल सत्तार एधि की तस्वीरें भी प्रकाशित की गई थीं. सूत्रों के हवाले से खबर में कहा गया था कि किताबों को पहले ही स्कूलों में वितरित किया जा चुका था और पीटीसीबी, पुलिस तथा अन्य एजेंसियां किताबों की प्रतियां जब्त करने के लिए दुकानों पर छापा मार रही हैं.

अधिकारियों ने लाहौर स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के कार्यालय पर छापा मारा और किताबों की पूरी खेप जब्त कर ली. उन्होंने प्रकाशकों को एक पत्र भी दिया जिसमें लिखा था कि किताब को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है. खबर के अनुसार, प्रकाशक ने बताया कि किताब को समीक्षा के लिए 2019 में पीटीसीबी को सौंपा गया था लेकिन उसे प्रकाशन की मंजूरी नहीं मिली थी. प्रकाशक ने कहा कि अनापत्ति प्रमाण पत्र मिले बिना ही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने इसे छापा.

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