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केंद्र के विरुद्ध ममता बनर्जी का हल्ला बोल. - श्रीनारद मीडिया

केंद्र के विरुद्ध ममता बनर्जी का हल्ला बोल.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों और शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया गया है कि उनमें टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो, लेकिन बंगाल में चाहे 34 वर्षो तक सत्तारूढ़ रहे वामपंथी हो या फिर पिछले करीब 11 वर्षो से सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस की सरकार, दोनों इसका मजाक बनाती रही हैं। पिछले आठ वर्षो में मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के साथ टकराव और विवाद में पूर्व की सभी राज्य सरकारों को पीछे छोड़ दिया है।

देखा जाए तो ममता का केंद्र से टकराव का सीधा कारण राजनीतिक स्वार्थ है। पिछले वर्ष तीसरी बार सत्ता में आने के बाद मई में ही पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक में खुद न तो ममता शामिल हुईं और न ही तत्कालीन मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय को शामिल होने दिया, जिसे लेकर टकराव इतना बढ़ा कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। फिर पेगासस जासूसी और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र 15 से बढ़ाकर 50 किलोमीटर करने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

बीएसएफ प्रकरण पर तो राज्य के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप और संघीय ढांचे का हवाला देकर बंगाल विधानसभा में प्रस्ताव तक पारित कर दिया। अब आइएएस कैडर नियम, 1954 में संशोधन के प्रस्ताव के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। इसमें दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में बंगाल की नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आधारित झांकी शामिल नहीं करने और इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को वार मेमोरियल में ले जाने का मुद्दा भी जुड़ गया है। यही नहीं, शनिवार को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर के जिलाधिकारियों के साथ बैठक की तो उसमें बंगाल के जिलाधिकारियों को शामिल नहीं होने दिया गया। ऐसा लग रहा है कि केंद्र से टकराव को ममता चरम पर ले जाने को आतुर हैं।

आइएएस कैडर नियम में संशोधन प्रस्ताव को लेकर ममता इतनी खफा हैं कि वह संशोधन प्रस्ताव वापस लेने की मांग करते हुए एक सप्ताह के भीतर प्रधानमंत्री को दो पत्र लिख चुकी हैं। उनका तर्क है कि आइएएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के नियमों में बदलाव से राज्य का प्रशासन प्रभावित होगा, क्योंकि संशोधित प्रस्ताव पूर्व की तुलना में अधिक कठोर है और संघीय राजनीति की नींव और भारत की संवैधानिक योजना की बुनियादी संरचना के खिलाफ है।

अगर केंद्र आइएएस अधिकारियों के कैडर नियम में संशोधन का प्रस्ताव लाया है तो उसके पीछे कहीं न कहीं ममता की शह पर बंगाल में तैनात आइएएस और आइपीएस अधिकारियों का केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का नहीं मानना प्रमुख कारण माना जा रहा है। जिस संघीय व्यवस्था की ममता दुहाई दे रही हैं, उसे क्या वह मान रही हैं? यह एक बड़ा प्रश्न है।

दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह की परेड के लिए ममता सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आधारित झांकी का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन केंद्र ने उसे खारिज कर दिया। इसे भी ममता ने मुद्दा बना दिया और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। उनकी चिट्ठी पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का जवाब भी आया। इसमें राजनाथ सिंह ने लिखा कि चूंकि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग की झांकी पहले से ही नेताजी पर आधारित है, इसलिए इस झांकी को परेड में शामिल नहीं किया गया है।

केंद्र से झांकी खारिज होने के बाद ममता सरकार ने 26 जनवरी को उसी झांकी को कोलकाता में प्रदर्शित करने का फैसला किया है। रविवार को नेताजी की जन्म जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के माध्यम से भी ममता बनर्जी केंद्र सरकार पर हमला करना नहीं भूलीं। इस अवसर पर उन्होंने कहा, ‘इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने से केंद्र सरकार की जिम्मेदारियां खत्म नहीं होंगी।’

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने रविवार को इंडिया गेट पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया। ममता ने यहां भी यह कहते हुए श्रेय लेने की कोशिश की कि प्रतिमा हमारे दबाव के कारण बन रही है। ममता ने कहा, ‘नेताजी के निधन की तारीख अभी भी अज्ञात है। हम अभी भी नहीं जानते कि नेताजी के साथ क्या हुआ था। यह अभी भी एक रहस्य है। इस सरकार ने कहा था कि नेताजी की फाइलों को सार्वजनिक कर देंगे।

हमारे पास नेताजी की फाइलें डिजिटल और अवर्गीकृत हैं।’ ममता ने आगे कहा, ‘वार मेमोरियल को लेकर राजनीति हो रही है। शहीदों में कोई भेदभाव नहीं होता है। इतिहास को मिटाया जा रहा है। अमर जवान ज्योति को बुझाकर नेताजी की मूर्ति को सम्मान नहीं दिया जा सकता है। लोग स्वतंत्र रूप से बोलने से भयभीत हैं। इतिहास मिटाया जा रहा है।’

यह पहली बार नहीं है, जब ममता इस तरह से बोल रही हैं। केंद्र में चाहे मनमोहन सिंह की सरकार रही या फिर नरेन्द्र मोदी की, पिछले लगभग एक दशक से ममता टकराव की राह पर हैं। यही नहीं, संसद के आगामी बजट सत्र के दौरान भी वह अपने सांसदों को आइएएस कैडर नियम में संशोधन के मुद्दे पर पूरी तरह से मुखर होने के निर्देश दे सकती हैं।

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