बंगाल में ममता की चोट, प्रबंधक पी के,दलबदलू नेता और मुस्लिम वोट काम आ गया,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को मिली प्रचंड जीत ने यह साबित कर दिया है कि राज्य की जनता को अभी भी ममता पर ही भरोसा है और पीएम नरेंद्र मोदी के ‘असल परिवर्तन’ वाले नारों से उन्हें फर्क नहीं पड़ता। राज्य में टीएमसी के खाते में जहां 200 पार सीटें आई हैं तो वहीं बीजेपी को 100 से भी कम सीटों पर संतोष करना पड़ा है। वह भी तब जब बीजेपी ने बंगाल फतह करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। खुद पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल की कमान संभाली थी और ताबड़तोड़ रैलियां तक कीं।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन और आक्रामक चुनावी अभियान के बाद कई राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि राज्य में बीजेपी और टीएमसी के बीच कांटे की टक्कर होगी। हालांकि नतीजे सबके सामने हैं और टीएमसी की आंधी के आगे कोई भी पार्टी टिक नहीं सकी है। कांग्रेस-लेफ्ट का तो सूपड़ा ही साफ हो गया है। दीदी की इस प्रचंड जीत के पीछे भी कुछ कारण हैं। ये वही कारण हैं जिन्हें भांपने में बीजेपी चूक गई और नतीजा उनकी अपेक्षा से एकदम उलट दिखा।
मुस्लिम वोटों का सीधे ममता के पक्ष में जाना
बीजेपी को उम्मीद थी कि अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट की वजह से मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा ममता के खाते में नहीं रहेगा। हालांकि, इससे उलट अल्पसंख्यक समुदाय ने एकजुट होकर ममता बनर्जी के लिए वोट दिया। बीजेपी के सत्ता में आने का अल्पसंख्यकों में इतना डर था कि उन्होंने इस कदर एक होकर मतदान किया जिससे लेफ्ट-कांग्रेस दोनों का ही बंगाल के राजनीतिक नक्शे से सफाया हो गया। ममता ने सफलतापूर्वक मुस्लिमों का वोट पाया।
यहां तक कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले मालदा और मुर्शीदाबाद (दोनों ही जिले अल्पसंख्यक समुदाय के दबदबे वाले हैं) में भी ममता को ही वोट पड़े। दूसरी तरफ हिंदू वोट तृणमूल और बीजेपी के बीच बंट गए।
बंगाली पहचान
तृणमूल ने अपना चुनावी अभियान बंगाली पहचान के इर्द-गिर्द ही रखा। टीएमसी ने न सिर्फ बीजेपी को ‘बाहरियों की पार्टी’ करार दिया बल्कि ऐसे नारे दिए जिनमें ममता को राज्य की बेटी बताया गया। ममता और टीएमसी दोनों ने ही जनता को विश्वास दिलाया कि वे ‘गैर-बंगालियों’ के खिलाफ नहीं हैं। हालांकि, यह प्रचार जरूर किया गया कि बीजेपी बंगाल की संस्कृति को बर्बाद कर देगी। इसके अलावा कोरोना से निपटने के लिए तृणमूल की ओर से केंद्र पर लगाए भेदभाव के आरोपों ने भी बंगाली लोगों का ममता पर भरोसा बढ़ाया।
ममता ने खुद को बताया पीड़ित
नंदीग्राम में पैर में चोट लगने के बाद ममता बनर्जी ने व्हीलचेयर पर बैठकर रैलियां और रोड शो किए। ये तस्वीरें उनके पक्ष में रहीं और उन्हें लोगों की हमदर्दी भी मिली।
फ्लॉप रहे दलबदलू
बीजेपी को उम्मीद थी की टीएमसी छोड़कर आए नेता ममता बनर्जी और तृणमूल के अन्य नेताओं की कमजोरियों को भुनाने में कामयाब होंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। राजीब बनर्जी, बैशाली डालमिया, रबींद्रनाथ भट्टाचार्य, प्रबीर घोषाल सहित टीएमसी के अन्य कई दिग्गज बीजेपी के लिए बोझ साबित हुए। बीजेपी ने ऐसे कई टीएमसी नेताओं को शामिल कर लिया जिनसे उनके क्षेत्र की जनता पहले से नाराज थी।
बधाई हो प्रशांत किशोर ।
जो कहा वह सिद्ध भी कर दिया.
2014 लोकसभा चुनाव के बाद आपको दरकिनार करने का भाजपा को कीमत चुकानी पड़ रही है । पश्चिम बंगाल के नतीजे देख कर एक बात समझ आगयी की कश्मीर से हिन्दुओ को भगाया गया हो, या केरल में हिन्दुओ पर हो रहे अत्याचार हो और मुस्लिम तुष्टिकरण हो और बंगाल में बार बार मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी और बंगाल में बढ़ता हुआ इस्लामिक जिहाद हो।
सबके ज़िमेदार सिर्फ हिन्दू खुद ही जिनको अपना पतन नही दिखता और अपने ही दुश्मनों को चुनाव में vote देते है।आने वाले कुछ सालों मे बंगाल की स्थिति दयनीय हो जाएगी हिन्दुओ को अभी अपना 1946 में हुआ कत्ले-आम याद नही है जो बंगाल में हुआ था।कुछ सालों जब बंगाल कश्मीर बनेगा तब सिर्फ हिन्दू विधवा विलाप ही करते हुए नजर आएंगे।क्योंकि हिन्दुओ से हत्यार उठाये नही जाते और अपने सही ,गलत को जाने बगैर ही चुनाव करते है सरकारों का।किसी भी मुस्लिम ने अपने बहुल्य क्षेत्रो से BJP को नही जिताया पर हिन्दू बहुल्य छेत्र से TMC जरूर जीत रही है।
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