भारत में गांधी के बाद कई ‘गांधी’ आए और आएंगे, लेकिन शास्त्री जी एक हीं रहे

भारत में गांधी के बाद कई ‘गांधी’ आए और आएंगे, लेकिन शास्त्री जी एक हीं रहे

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

समय बड़ा हीं क्रूर होता है। इतिहास में दर्ज व्यक्ति की नाप तौल बदलती परिस्थिति में करता रहता है। कार्य एवं भूमिका को परत दर परत उघाड़ता है। जब देश, समाज एवं संस्कृति पर हमले हो रहे हों उस समय शीर्ष नेतृत्व का निर्णय एवं जागरूक लोगों की प्रतिक्रिया का लेखा-जोखा समय करता है। यहीं वर्षों से स्थापित छवि कभी कई प्रश्नों के घेरे में आ जाती है तो और दृढ़ भी होती है। अपने उत्थान काल के सौ वर्ष के भीतर हीं लेनिन एवं स्टालिन की मूर्तियों, विचारों को रूस से वैसे हीं नष्ट किया गया जैसे पंद्रह वर्ष पहले इराक से सद्दाम हुसैन को एवं लीबिया से गद्दाफी को। अरब स्प्रिंग स्थापित छवियों के विरूद्ध आम जनता का विद्रोह है।

बहरहाल ….

पाकिस्तानी तानाशाह अयूब खान ने जब 1965 में भारत पर हमले किए तो इसे सोमनाथ पर महमूद गजनवी का 18वां हमला करार दिया। भारत अभी 1962 की हार से उबरा नहीं था। अकाल, गरीबी, विश्व महाशक्तियों की कपट लीला, भारत पर चौतरफा दबाव …..इन सबके बीच भारत के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का पलटवार अत्यंत साहसिक कदम था। पाकिस्तान के पास हथियारों की नई खेप थी। अमरीका का पूरा समर्थन था। सोवियत यूनियन कभी इधर, कभी उधर हो रहा था। ….

…..लेकिन अयूब खान की गजनी फौज के खिलाफ भारत एक था। आतंकियों को माकूल जवाब दिया हमारी सेना ने। हाजीपीर के बाद अब लाहौर की तरफ भारत की सेना मुड़ गयी थी। पेटेंट टैंक की कब्र खोद दिया भारतीय जांबाजों ने। शास्त्री जी की एक अपील पर पूरा भारत एक समय का खाना बंद कर दिया ताकि सेना के लिए सीमा पर रसद की कमी न हो।
जय जवान …जय किसान भारत के आत्मसम्मान का मंत्र बन गया। गरीबी में भी त्याग एवं गरिमा के साथ एक राष्ट्र कैसे खड़ा हो सकता है, यह शास्त्री जी ने दिखाया।

वैसे,

इसके पहले गांधी जी ने चम्पारण आंदोलन के साथ भारत की आम जनता की शक्ति को निखारा और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति उनके मन में बैठे डर को निकाला। ब्रिटेन से पहले डर से आजादी दिलाई लेकिन मात्र पांच साल के बाद हीं खिलाफत जैसे सांप्रदायिक आंदोलन का समर्थन कर भारत की आजादी का रूख हीं मोड़ दिया। अब भारत में ब्रिटेन से आजादी के साथ हीं भारत को बांटने वाली शक्तियां मजबूत होकर उभरीं। मोपला नरसंहार के समय गांधी जी की चुप्पी से एनी बेसेंट भी व्यथित हों गईं थीं।
हत्या एवं नरसंहार के द्वारा देश तोड़ने, कब्जाने का खेल मोपला से शुरू होकर डायरेक्ट एकशन डे, सिंध, बलूचिस्तान, लाहौर, बंगलादेश होते हुए 1990 के कश्मीर तक चला। आज भी छिट-फुट चल रहा है। समय ने हमें सिखाया कि मोहनदास करमचंद्र गांधी का दर्शन तभी कारगर तरीके से लागू हो सकता है जब शास्त्री सरीखे साहसी नेता हमारे बीच हों।

वैसे,

भारत में गांधी के बाद कई ‘गांधी’ आए या आईं और आगे भी आएंगे। लेकिन शास्त्री जी एक हीं रहे।

वैसे …आज कालरात्रि देवी की पूजा है, जो असुरों को नष्ट करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकतीं हैं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!