माता शबरी ने अपने सत्कर्मों से एक जीवन में ही द्विज यानी दूसरे जन्म को प्राप्त कर लिया
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सीवान के रामदेव नगर में प्रो.रामचन्द्र सिंह के निवास पर माता शबरी पर चर्चा हुई । माता शबरी रामचरित मानस के अरण्य कांड की सबसे प्रमुख चरित्र है। एक व्यक्तित्व, जो सामाजिक समरसता की प्रतीक बनीं। एक श्रद्धा की ज्योत, जो आस्था के परिणाम की पहचान बनीं। एक भक्त की कहानी, जो भगवान की प्रसन्नता की गवाह बनीं। एक भोली भीलनी, जिसकी श्रद्धा भावना ने रघुनंदन को रिझा लिया। एक जाति से शुद्र महिला, जिसने कर्म से द्विज होने यानी अपने सत्कर्मों के आधार पर दूसरे जन्म प्राप्त कर लेने की संकल्पना को सुप्रतिष्ठित किया।
एक भावना में खोई श्रद्धालु, जिसने भगवान के स्वाद का ख्याल रखते हुए जूठे बेर का भोग लगा दिया। एक थकी हारी वृद्धा, जिसने भगवान के लिए पुष्प पथ को तैयार करने में शारीरिक सक्षमता की बेडियों को तोड़ डाला। एक अबोध महिला, जिसने अध्यात्म के जटिल रहस्यों को सूक्ष्मता, सरलता और सहजता से समझा डाला। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम और माता शबरी के मिलन दिवस के प्रसंग में रविवार संध्या में सीवान के रामदेव नगर में प्रोफेसर रामचंद्र सुरासरिया जी के आवास पर विचार संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
विचार, विश्लेषण और काव्य की त्रिवेणी बहती रही और उपस्थित श्रोताओं ने माता शबरी की कहानी ही नहीं सुनी अपितु माता शबरी के प्रेम और श्रद्धा को संजीदगी से अंगीकार भी किया। प्रोफेसर रविंद्रनाथ पाठक ने जहां माता शबरी के प्रेम और श्रद्धा के भाव को सनातन संस्कृति का श्रृंगार बताया तो वहीं प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया ने कर्म के सिद्धांत को सुप्रतिष्ठित् करते हुए बताया कि माता शबरी का जन्म कहने को तो शूद्र परिवार में हुआ था लेकिन माता शबरी ने अपने सत्कर्मों से द्विज यानी दूसरे जन्म की अवस्थिति को प्राप्त कर लिया। कटिहार से आए श्री अरविंद जी ने कहा कि माता शबरी ने प्रेम और श्रद्धा के भाव से आध्यात्मिकता की जो सरिता बहाई, वह सनातन परंपरा का महान संदेश बन गया। आज हमारे समाज में समरसता ही माता शबरी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।
शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने विचार गोष्ठी में कहा कि हम आधुनिकता और उपभोक्तावाद के दौर में अपने सनातनी मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। यदि हम माता शबरी की कहानी को पढ़ें और भावी पीढ़ी को पढ़ाएं तो श्रद्धा, प्रेम, समरसता के मूल्य हमारे जीवन में बने रहेंगे और हम एक सुखद जीवन व्यतीत कर पाएंगे। श्री नारद मीडिया के संपादक सह महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी राजेश पांडेय ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति की सरलता, सहजता और व्यापकता की पहचान थी माता शबरी।
इस अवसर पर श्री सुरेंद्र तिवारी जी ने वाग्देवी की स्वर आराधना की और अधिवक्ता संजय जी ने ओजस्वी काव्यात्मक अंदाज में माता शबरी को नमन किया। इस अवसर पर अधिवक्ता विजय पांडेय, अधिवक्ता अक्षयवर पांडेय, प्रोफेसर चंद्रदेव चौधरी, प्रोफेसर रामदास प्रसाद, प्रोफेसर नरहरि, प्रभात रंजन, अवधेश श्रीवास्तव आदि
मौजूद रहे।
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