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सार्थक संवाद ही किसी समस्या का हल है-प्रो.जी.गोपाल रेड्डी.

सार्थक संवाद ही किसी समस्या का हल है-प्रो.जी.गोपाल रेड्डी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘मानवाधिकार दिवस’ के अवसर पर ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव समिति’ महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के तत्ववाधन में “मानवाधिकार की चुनौतियाँ और हमारा समय” विषयक वेब संगोष्ठी का आयोजन आभासीय मंच द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी ने की।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रति-कुलपति प्रो.जी. गोपाल रेड्डी ने कहा कि मानवाधिकार का हनन हमारे देश में ही हुआ है इसे संवाद के रूप में उठाना चाहिए,अपने देश में मानवाधिकार की स्थिति पर गौर करे तो हम पाते है कि कश्मीर मे इसका घोर हनन कश्मीरी पंडितों के समुदाय में हुआ है।लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करना सबसे बड़ा कदम है।


महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है इसमें देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर सार्थक संवाद होती रहती है। आज का मानवाधिकार दिवस यह सुनिश्चित करता है कि सबको अपने अनुसार स्वतंत्र रहने संवाद करने और विचारों को रखने की आजादी है।हालांकी हमारे पड़ोस के देशों में अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार होते रहते हैं।एक बानगी के तौर पर आप बांग्लादेश को ले सकते है, जहां की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने जब हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया तो उन्हें अपने देश से निर्वासित होकर भारत में शरण लेनी पड़ी है। हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि मानव अधिकार के लिए जो लोग प्रयासरत हैं जिन लोगों ने इसे स्थापित करने के लिए कार्य किया है उन्हें समाज हमेशा सम्मानित करता है। इसमें हंसराज मेहता जी का नाम लिया जाता है जिन्होंने अपने कार्य से लोगों में एक जीवंतता प्रदान की है।

हमारा विस्थापन नहीं निर्वासन हुआ है– डॉ. अग्नि शेखर।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कवि, लेखक, विचारक और पनुन कश्मीर के संस्थापक डॉ. अग्नि शेखर ने कहा कि कश्मीर हम सभी भारतीयों का इसे हमे अपने संवाद का विषय बनाना चाहिए। आज हमारी यह समस्या क्यों है दरअसल हम स्पष्ट होकर इस समस्या पर बात नहीं करते, जबकि काराकोरम से लेकर कन्याकुमारी तक हम भारतीय हैं। कश्मीर भारतीय संस्कृति, दर्शन, सभ्यता का पालना रहा है।इसे हम मुकुट, स्वर्ग, सिरमौर नाम देते रहे हैं।जबकि साहित्य में आचार्य वामन, डंडी, भामह यहां से ही रहे हैं। कश्मीर की भाषा ऋग्वेद से भी प्राचीन है,दरअसल हमने अपने इतिहास से इसे भुला दिया है। आज हम कश्मीरी पंडित अपने वजूद के लिए बत्तीस वर्षों से आवाज लगा रहे हैं,सच ही मोतीलाल साखी जी ने कहा है कि हम इस लोकतंत्र के नए अछूत हैं। वही हिंदी साहित्य के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह जी ने कहा है “वह क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा” और सभी हमारे विषय पर चुप है। जबकि हम सभी भारतीयों को अपने कश्मीर पर गर्व करना चाहिए हमारी संस्कृति 5000 वर्ष पुरानी है कश्मीर का अपना संवत सप्त ऋषि संवत है इससे पता चलता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी है आज भारत के कई स्थानों पर कश्मीर बन गया है इसे हम अच्छी तरह समझ सकते हैं। अपने ही देश में मानवाधिकार इस तरह से भेदभाव क्यों करते हैं यह समझ में नहीं आता है। बहरहाल वर्तमान सरकार द्वारा 370 को समाप्त करना युगांतकारी निर्णय था।
हम कश्मीरियों की यह मांग है कि भारत सरकार संसद में 1989 के नरसंहार पर एक बिल लाए ताकि इस समस्या के बारे में पूरे देश का ध्यान आकृष्ट हो, इस पर संवाद किया जाए। सबसे पहले हम अपने कुटुम्ब को बचाएं फिर विश्व की तरफ देखेंगे।

हिंदू दर्शन से विश्व दर्शन की भावना आती है–डाॅ अमित सिंह।

संगोष्ठी में वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. अमित सिंह ने कहा कि देश के प्रत्येक कोने में मानवाधिकार का हनन हो रहा है इसे गंभीरता से लेना चाहिए। 1948 में मानवाधिकार का गठन विश्व स्तर पर हुआ जबकि हमारे देश में मानवाधिकार आयोग का गठन 1993 में हुआ और एक खास तरह के ढांचे में वामपंथी, दलित व मुस्लिम के विमर्श को लेकर काम करता रहा। कश्मीर इसके एजेंडे में रहा ही नहीं, इस वजह से वहां की समस्या विकराल होती गई और इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ऐसा नहीं है कि इस तरह के मानवाधिकार का हनन अन्य देशों में नहीं हो रहा है, बांग्लादेश अफगानिस्तान सीरिया में भी इस तरह के अत्याचार हो रहे हैं। इस समस्या को समझने के लिए भारतीय मानव अधिकार और पाश्चात्य मानव अधिकार के अंतर को समझना होगा और उसके अनुसार काम करना होगा। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम, प्राणियों में सद्भावना हो, राजा का सुख प्रजा के सुख पर काम करती है।यही कारण है कि हमारा हिंदू दर्शन सत्य,सनातन है और इस दर्शन में विश्व उसकी सारी समस्याओं का निदान सुनिश्चित है।


संगोष्ठी का विषय प्रवेश व स्वागत भाषण डॉ. पवनेश कुमार(अधिष्ठाता, वाणिज्य एवं प्रबंधन संकाय) ने करते हुए सभी वक्ताओं का हार्दिक स्वागत किया। आभासी संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग के सह-आचार्य डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने किया। वक्ताओं का परिचय शोधार्थी मनीष कुमार भारती और राजेश पाण्डेय ने कराया जबकी प्रति कुलपति एव॔ सभी सम्मानित वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन भौतिक विभाग के आचार्य डॉक्टर संतोष कुमार त्रिपाठी ने किए।

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