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आधुनिक काल की मीरा, महादेवी वर्मा ! - श्रीनारद मीडिया
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आधुनिक काल की मीरा, महादेवी वर्मा !

आधुनिक काल की मीरा, महादेवी वर्मा !

महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा बचपन से ही चित्रकला, संगीतकला और काव्यकला की ओर उन्मुख महादेवी विद्यार्थी जीवन से ही काव्य प्रतिष्ठा पाने लगी थीं। वह बाद के वर्षों में लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।

इनकी विद्यालय में इनकी मित्र मोहन कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इनको बहुत प्रभावित किया और इन को आगे बढ़ने में इनका बहन की तरह साथ दिया।

‘निराला वैशिष्ट्य’ की स्वामिनी महादेवी वर्मा छायावाद की चौथी स्तंभ भी कही जाती हैं। प्रणय एवं वेदनानुभूति, जड़ चेतन का एकात्म्य भाव, सौंदर्यानुभूति, मूल्य चेतना, रहस्यात्मकता उनकी मुख्य काव्य-वस्तु है। वह प्रधानतः गीति कवयित्री हैं जिनके काव्य में परंपरा और मौलिकता का अद्वितीय समन्वय नज़र आता है। शब्द-निरूपण, वर्ण-विन्यास, नाद-सौंदर्य और उक्ति-सौंदर्य-सभी दृष्टियों से वह भाषा पर सहज अधिकार रखती हैं।

उन्होंने अपने काव्य में प्रतीकात्मक संकेत-भाषा का प्रयोग किया है जिसमें छायावादी प्रतीकों के साथ ही मौलिक प्रतीकों का भी कुशल प्रयोग हुआ है। उनका वर्ण-परिज्ञान उनके बिंब-विधान की प्रमुख विशेषता है। चाक्षुष, श्रव्य, स्पर्शिक बिंबों में उनकी विशेष रुचि रही है। अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत के साम्य गुणों का चित्रण वह बख़ूबी करती हैं। रूपक, अन्योक्ति, समासोक्ति तथा उपमा उनके प्रिय अलंकार हैं। उनके संबंध में कहा गया है कि छायावाद ने उन्हें जन्म दिया था और उन्होंने छायावाद को जीवन दिया।

उन्होंने कविताओं के साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी योगदान किया है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में किया गया है। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है।

वह साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया।

कविता संग्रह

महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह है जिनमे निहार 1930 में, रश्मि 1932 में, सांध्यगीत 1936 में, दीपशिखा 1942 में सप्तपर्णा को अनूदित है 1959 में प्रथम आयाम 1974 मेंं अग्निरेखा 1990 में प्रकाशित हुए।

काव्य संकलन

देवी वर्मा जी के 10 से ज्यादा काव्य संकलन प्रकाशित हुए जिनमें से निम्न है।

आत्मिका, निरन्तरा, परिक्रमा, सन्धिनी 1965 में यामा 1936 में गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका और हिमालय उल्लेखनीय है।

रेखाचित्र

महादेवी वर्मा के प्रमुख रेखा चित्रों में अतीत के चलचित्र 1941 में और स्मृति की रेखाएं 1943 में श्रृंखला की कड़ियां और मेरा परिवार उल्लेखनीय है।

संस्मरण

महादेवी वर्मा ने 1956 में पद का साथी और 1972 में मेरा परिवार स्मृति चित्रण 1973 में और संस्मरण 1983 में उल्लेखनीय संस्मरण लिखे।

निबंध संग्रह

महादेवी वर्मा के प्रमुख निबंध संग्रह में श्रृंखला की कड़ियां 1942 में प्रकाशित हुई और विवेचनात्मक गद 1942 साहित्यकार की आस्था और अन्य निबंध 1962 संकल्प ता 1969 और भारतीय संस्कृति के स्वर उल्लेखनीय है।

  • क्षणदा महादेवी वर्मा का एकमात्र ललित निबंध ग्रंथ है।
  • Mahadevi वर्मा के प्रमुख कहानी संग्रह में गिल्लू प्रमुख है।
  • इनका संभाषण नामक भाषण संग्रह 1974 में प्रकाशित हुआ।

महादेवी वर्मा के कविता संग्रह

देवी वर्मा के प्रमुख कविता संग्रह में ठाकुरजी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला प्रमुख है।

महादेवी वर्मा जी को

  • पदम भूषण पुरस्कार
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • साहित्य अकादमी अनुदान पुरस्कार
  • सेकसरिया पुरस्कार
  • मरणोपरांत पद्म विभूषण पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया था.

आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने वाली महादेवी जी ने अपना जीवन एक सन्यासी की तरह व्यतीत किया था. सन 11 सितम्बर 1987 ई . में इलाहाबाद उत्तर – प्रदेश में महादेवी वर्मा जी का निधन हो गया था.

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