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स्मृति शेष : अनुभूति शांडिल्य 'तिस्ता' - श्रीनारद मीडिया

स्मृति शेष : अनुभूति शांडिल्य ‘तिस्ता’

 

स्मृति शेष : अनुभूति शांडिल्य ‘तिस्ता’

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

अइसना समय में जब भोजपुरी मतलब अश्लीलता के धारणा बन गइल होखे आ एकरा के आधार बना के भोजपुरी लोककला के नकार देवे के साजिश हो रहल होखे, ओइसना में अनुभूति शांडिल्य के पारंपरिक व्यासशैली में वीर कुँअर सिंह के लोकगाथा के प्रस्तुति सुखद ‘अनुभूति’ के प्रतीक बन गइल रही. भावपूर्ण नृत्य आ ओजपूर्ण गायन के अनूठा तालमेल एह ‘अनूभूति’ के विशिष्टता प्रदान करत रहे.

वइसे तऽ अनुभूति की उम्र महज तेरह साल रहे जब ऊ मैथिली- भोजपुरी अकादमी दिल्ली के सहयोग से आयोजित दादा देव ग्राउंड, द्वारका में आपन पहिला प्रस्तुति दिहले रहे. बाकि एतना काँच उमिर में एह बुचिया के लय, ताल, आरोह, अवरोह, भाव, मुद्रा आ रस के बेहतर समझ साफ-साफ महसूस होत रहे. एह के ओकर प्रस्तुति में महसूसल जा सकता रहे. मूलत: छपरा जिला के रिविलगंज बाजार के रहे वाली विद्यार्थी अनुभूति देश के बड़हन मंचन पऽआपन कला आ हुनर के जौहर देखवली आ आपन डंका बजवली.

हमके ऊ दिन याद बा जब दिल्ली में उनकर पहिला प्रस्तुति रहे. अपना एह बेटी पऽ छपरा केतना गर्वांवित महसूस करत रहे एकर अंदाजा अनूभूति के हेडमास्टर साहेब के एह टिप्पणी में झलकत बा- ‘बेटी, जा दिल्ली में भोजपुरी के जोत जगा आवऽ. हमार आशीर्वाद बा. टेस्ट परीक्षा के फिक्र मत करऽ. भोजपुरी के मान-मर्यादा स्थापित करे के एह परीक्षा में सफल होखऽ…’

दिल्ली में तीन दिन तक चलल ओह लोक-उत्सव में अनूभूति अपना प्रतिभा के प्रदर्शन बेहद कुशलता के साथ कइली.

दादा देव ग्राउंड, पालम में अनूभूति के प्रतिभा देख के वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय जी कहनी, ‘भोजपुरी माटी प्रतिभा के खान रहल बिया अनूभूति के देख के इ विश्वास अउर पुख्ता होत बा कि एह माटी में प्रतिभा आजो जन्म लेत बाड़ी स. अनूभूति बड़हन मँच के कलाकार बाड़ी. भोजपुरी संस्कृति के एह सबसे कम्र उम्र के संस्कृति-दूत खाति हमार आशीष बा…’

दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित एह ‘लोक-उत्सव’ में अनूभूति के प्रस्तुति के देख के इ कहीं से ना लागत रहे कि ई उनकर पहिला मंचीय प्रस्तुति हऽ. ओह घरी कला समीक्षक डॉ. धीरेंद्र मिश्र जी के कहनाम रहे,-
‘अनुभूति के रूप में भोजपुरी के ‘तीजनबाई’ मिल गइल बाड़ी. ऊ भोजपुरी में अपना तरह के अनूठा प्रयोग कइले बाड़ी. उनकर खनकत आवाज़ आ भावमय नृत्य सीधे-सीधे श्रोता-दर्शक के दिल में उतरे में सक्षम बा.

अद्भुत दृश्य! मनमोहक वीर रस, करूण रस आ कई गो राग के भाव गंगा। भाव, भावाभास, भावप्रबलता, भावसबलता के अद्भुत संयोग. सबसे आकर्षक रहल ‘अर्धनाराच छन्द’ के प्रयोग जवन आजकल देखे के नाहीं मिलेला. आदिकाल में एकर प्रयोग पृथ्विराजरासो में मिलेला. हमनी के समाज में विभिन्न लोकगायक आ कलाकार तमाम लोकशैलियन के सृजन कइलें. हजारन कलाकार तऽ आपन मय जिनगी एही में खपा दिहने. इतिहास आ परंपरा के आत्मसात करत एह विशिष्ट व्यास शैली में दक्षता हासिल कइल अनूभूति के लगन आ प्रयोगधर्मिता के प्रतिफल हऽ.

लोकधुनन के माहिर संगीत साधक पिता उदय नारायण सिंह से मिलल विरासत के अनूभूति विस्तार दिहली. अनुभूति अपना गाथा से एक साथ दू गो समानांतर युद्ध लड़त रहली. एक ओर तऽ ओह योद्धा (वीर कुँअर सिंह) के लड़ाई के इयाद दिलावत बिया जवना के कबो ऊ स्थान ना मिलल जवन मिले के चाहत रहे… अउर दोसरा ओर भोजपुरी के अस्मिता के युद्ध…

दरअसल भोजपुुरिया लोक परिदृश्य में अनुभूति जइसन नया कलाकार के ऊभरल बदलाव के वकालत करत रहे. एगो 13-14 साल के बच्ची, 80 साल के पुरनिया से राउर परिचय करावत बिया आ उहो ए तरे कि रउआ लागे लागत बा कि रउआ 1857 के दौर में चल गइनी.

अनूभूति के प्रस्तुति एह बात के भी तस्दीक करत रहे कि भोजपुरी लोककला के परिदृश्य में भोजपुरियापन अब लौटत बा. नया राह, नया दिशा, कुछ नया जमीन तलासत, कुछ पुरान विरासत के सहेजत अनूभूति जइसन कलाकार के सशक्त मौजूदगी सुखद रहे.

बाकि आजु के दिन करोड़ों भोजपुरियन के उम्मीद के तुड़ के इ कलाकार एह दुनिया के रंगमंच के अलविदा कह दिहले रहे . जब जब भी भोजपुरी कला के बात चली तऽ एह तिस्ता के योगदान के भी याद कइल जाई. भोजपुरिया मानस पऽ ओकर सदियन ले छाप साफ-साफ महसूस होत रही… लोर भरल आँखिन से श्रद्धांजलि

 

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