प्रसिद्घ संत रविदास की जयंती पर कोटि-कोटि नमन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संत रविदास का जीवन तो एक प्रेणना था ही जिसके चलते वे एक जूते गांठने वाले से संत की श्रेणी में पहुंच गए। उनका ये विकास उनके दोहों में भी दिखता है। उनकी कही हुई बातें आज और अधिक प्रासंगिक है।

रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
वे कहते हैं कि सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नही बन जाता है बल्कि इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

उनका कहना है कि जिस प्रकार केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है और पूरा पेड़ खत्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तब तक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

वे कहते हैं कि हमे हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

अर्थात राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
अतः समाज में समानता, बंधुता, एकता और धर्मनिरपेक्षता बनाये रखने के लिए रैदास की पंक्तियाँ आज भी मार्गदर्शन करती है।

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