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विधायक जी! राजनीति सेवा है, विलासिता नहीं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोक निर्माण राज्य मंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय अपने चुनाव क्षेत्र में चित्रकूट से राजापुर तक 35 किलोमीटर सड़क पांच वर्ष के कार्यकाल में नहीं बनवा सके। …वह चुनाव हार गए। बलिया में है स्टेशन रोड। वर्षों से इस अत्यंत व्यस्त मार्ग पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे थे कि सड़क तो दिखनी ही बंद हो चुकी थी। लोग चलते और गिरते। कल्पना करें कि गड्ढे इतने विशाल थे कि उनमें फंसकर तिपहिया तक पलट जाते। ऐसे उपेक्षित क्षेत्र के प्रतिनिधि थे संसदीय कार्य राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल। बाद में सड़क थोड़ी बहुत बनी भी, पर जब चुनाव आया तो विधायक जी को उनका क्षेत्र बदलकर बैरिया भेजा गया। …वह वहां भी चुनाव हार गए।

पूरे पांच वर्ष विधायकों की कथित उपेक्षा बहुत चर्चा में रही। बहुत सुनाई पड़ा कि विधायकों को काम नहीं करने दिया जा रहा, कि उनकी सुनी नहीं जा रही, कि डीएम उनकी सिफारिशों को टोकरी में डाल देते हैं, कि थाने के सिपाही भी उन्हें महत्व नहीं देते, कि उनकी एफआईआर नहीं लिखी जाती, कि शासन में उनकी पूछ नहीं होती, कि पार्टी उनकी बातों पर बहुत ध्यान नहीं देती। विधायकों की ये शिकायतें दल निरपेक्ष थीं। पार्टियों से ऊपर।

कोई नागरिक जब विधायक के पास आता तो यही वे उससे दोहरा देते। अपनी विवशता बताते। अपनी प्राथमिकताएं गिनाकर सहयोग का वादा करते, लेकिन नतीजा हर बार ढाक के तीन पात और नागरिक बेचारा वही ठन ठन गोपाल। पांच साल यह क्रम निर्बाध चला। पांच साल जनता नामक यह निरीह प्राणी हताश हैरान परेशान होता रहा। पांच साल वह अपने प्रतिनिधि की गाड़ी एक से अनेक होते देखता रहा।

उन गाडिय़ों की पदोन्नति देखता रहा। पांच साल वह प्रतिनिधि के बारे में विविध चर्चाएं सुनता रहा। पांच साल वह देखता रहा कि उसके सामान्य आग्रह को भी विधायक जी टाल देते हैं, परंतु उनके अपने कोई काम कभी नहीं रुकते। पांच साल यह नागरिक चकित होता रहा कि यदि विधायक जी इतने ही लाचार हैं तो वह खुद कैसे समृद्धि की सीढिय़ां चढ़ते जा रहे हैं। पांच साल वह नागरिक अपने विधायक से मिल रही उपेक्षा में डूबता उतराता रहा।

फिर पांच साल पूरे हुए और वह नागरिक वोटर में तब्दील हुआ। उन पांच वर्षों के बदले अब उसके पास केवल एक क्षण था। तब उसने अपना तीसरा नेत्र खोला। उसके ऐसा करते ही विधायक जी के भाग्य का निर्णय हो गया। जो हारता है, वह जाति-धर्म, प्रशासन या ऐसे ही और बहाने खोजता है, पर यह कभी नहीं कहता कि उसे अपने क्षेत्र से गायब रहने का दंड मिला है।

इसलिए नए विधायक जी, समझें कि जनता की अपेक्षाएं बहुत थोड़ी होती हैं, कि खनन और ठेके उसकी रुचि के विषय नहीं होते, कि तबादला-तैनाती में उसकी दिलचस्पी नहीं होती, कि आपकी समृद्धि से वह कभी ईष्र्या नहीं करता, कि उसकी मांगें बहुत सीमित होती हैं, कि वह आपका थोड़ा सा समय चाहता है, कि वह आपका ध्यान चाहता है। आप में से अधिकतर ने जब राजनीति आरंभ की थी, तब से समय बदला है।

कृपया ध्यान रखें कि यह 2022 है और चुनाव व समाज के मुद्दे अब बदल चुके हैं या तेजी से बदल रहे हैं। बस, एक चीज जो नहीं बदली और कभी बदलनी भी नहीं, वह है दो मीठे बोल। इसलिए जहां से चुनकर आए हैं, वहां की सड़क, पानी, शिक्षा, ट्रैफिक और पार्क आदि की चिंता आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। कोई काम करना चाहे तो उसे कभी कोई बाधा नहीं आ सकती। अपनी विधायक निधि आप सही जगह लगाना चाहते हैं तो मुख्य सचिव भी आपको नहीं रोक सकते। आपको जनता ने अपने लिए सदन में भेजा है, आपके लिए नहीं। आपसे अपेक्षा उसका अधिकार है और उसे पूरा करना आपका कर्तव्य।  राजनीति सेवा है, विलासिता नहीं।

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