मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र पर खेल-खेल में नौनिहालों को मिल रही है बेहतर शिक्षा
• पोषण वाटिका से दूर होगा कुपोषण
• दीवार पर ज्ञानवर्धक फोटो व कुछ नारे लिखवाए गए
• किसी प्ले स्कूल से कम नहीं है हरिहरपुर का मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र
• स्वच्छता का रखा जाता है विशेष ख्याल
श्रीनारद मीडिया, गोपालगंज (बिहार )
‘रंगीन चित्रों से सजी दीवारें, यूनिफ़ॉर्म पहने पढ़ते बच्चे एवं झूले से खेलते कुछ बच्चे’ अगर आप इसे किसी प्ले स्कूल का दृश्य समझ रहे हैं तो यह आपकी भूल है.प्ले स्कूल जैसी सुविधाओं से लैस यह गोपालगंज जिले के सदर प्रखंड के हरिपुर का मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र है. शहरी क्षेत्र में पाए जाने वाले किसी भी आधुनिक प्ले स्कूल की तर्ज पर बना यह केंद्र आपको भी अपनी तरफ़ खींच लेगा. यह सत्य है कि शिक्षा की बुनियाद सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता से मजबूत नहीं होती है. लेकिन बात यदि बच्चों की शिक्षा की हो तो शिक्षण संस्थान में बाल सुलभ सुविधाओं की मौजूदगी बच्चों में आकर्षण पैदा करता है जो बाद में उनकी शिक्षा की नींव तैयार करती है. आधुनिक स्कूलों के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान ने आंगनबाड़ी केंद्र जैसे सरकारी इकाईयों के सामने चुनौतियाँ पेश की है. लेकिन आंगनबाड़ी केन्द्रों के आदर्श बनने की राह ने फिर से आंगनबाड़ी केन्द्रों की महत्ता एवं उपयोगिता को जीवंत किया है.
बच्चों में रूचि बढ़ाने की पहल:
सदर प्रखंड के हरिहरपुर ग्राम पंचायत के दक्षिण टोला में बने मॉडल आंगनबाड़ी केन्द्र में चित्रों के माध्यम से शिक्षा को मनोरंजक और रूचिकर बनाकर बच्चों को अक्षर ज्ञान देने जैसे नवाचारों का प्रयोग किया गया है। इसलिए यह केंद्र सिर्फ एक सरकारी भवन नहीं बल्कि बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। इस केंद्र की दीवारों पर ज्ञानवर्धक फोटो व कुछ नारे लिखवाए गए हैं। यही नहीं यहां आने वाले बच्चों के लिए खिलौने भी उपलब्ध कराए गए हैं। ताकि छोटे-छोटे बच्चे यहां खेल-खेल में भी पढ़ना-लिखना सीख सकते हैं। बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा और अच्छा शैक्षणिक वातावरण मिल रहा है। इससे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो रहा है जो उनकी बौद्धिक योग्यता को बढ़ा कर उनके लिए बेहतर शिक्षा की राह आसान कर रही है.
कलाकृतियों से नन्हे बच्चों को हो रहा अक्षर बोध:
इस मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चों को बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसके लिए नवीन आधुनिक पद्धतियों को अपनाकर बच्चों को सरलतम तरीके से शिक्षा देने की पहल की गयी है। बच्चों को उनकी स्थानीय बोली और भाषा में कविता, कहानी और गीतों के माध्यम से भी सिखाया जा रहा है। आंगनबाड़ी भवन की दीवार, छत, फर्श और बाहरी स्थलों में बनाए गए कलाकृतियों से नन्हे बच्चों को अक्षर बोध, रंगों को पहचानना, चित्रों के माध्यम से जानवरों के नाम को जानना, प्रारंभिक स्तर पर अंकों का ज्ञान के साथ छोटी-छोटी जानकारी बोलने, समझने में मदद मिलती है। आंगनबाड़ी की छत पर सौर मंडल, फर्श पर अक्षर और अंक, दीवारों पर अंग्रेजी और हिन्दी के अक्षरों के साथ जानवरों के चित्र बच्चों को खूब लुभाते हैं। नवीनतम तकनीक के इस प्रयोग से इस क्षेत्र शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिल रही है।
स्तनपान व टीकाकरण कक्ष:
इस केंद्र की आंगनबाड़ी सेविका प्रमिला देवी कहती हैं, अब इस केंद्र में बच्चों के बैठने, पढ़ने, पोषाहार बनाने व खिलाने की व्यवस्था रहती है। साथ ही इस केंद्र में अब प्रसव पूर्व गर्भवती माताओं की जांच एवं टीकाकरण आदि कार्य भी किया जा रहा है। यहाँ स्तनपान कक्ष भी बनाया गया है, जहां प्रसूता को बच्चों को स्तनपान के उद्देश्य, आवश्यकता व तरीकों की जानकारी दी जाती है।
प्राईवेट स्कूल में गए बच्चे भी आंगनबाड़ी केन्द्र वापस आने लगे:
प्रमिला देवी बताती हैं – पहले परिजन अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र पर भेजने के बजाय किसी प्राइवेट स्कूल में भेजते थे। इसके बाद उन्होंने सामुदायिक बैठक आयोजित की, जिसमें उन्होंने आंगनबाड़ी केंद्र पर मिलने वाली सुविधाओं के बारे में विस्तार से समझाया। इसके अलावा परिजनों ने अपनी आँखों से देखा कि आंगनबाड़ी केन्द्र में बच्चों को क्या-क्या सुविधाएं मिल रही हैं। इससे उनकी सोच में काफ़ी बदलाव आए. वही परिजन जो आंगनबाड़ी केंद्र पर सुविधाओं की कमी का हवाला देकर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल भेजते थे, अब वह अपने बच्चों को इस आंगनबाड़ी केंद्र में भेजने लगे हैं.
पोषण वाटिका से दूर होग कुपोषण:
सदर प्रखंड के हरिहरपुर दक्षिण टोला मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 24 पर सेविका के द्वारा पोषण वाटिका भी लगाया गया है, जिसमें सहजन, अमरूद, आंवला, पपीता आम एवं अनार आदि पौधों को रोपित किया गया है। इससे केंद्र पर आने वाले बच्चों के पोषाहार में विविधता के साथ उन्हें दिए जाने वाले दैनिक भोजन की थाली में सूक्ष्म पोषक तत्वों का समावेश होना शुरू हो गया है.
स्वच्छता का विशेष ख्याल:
इस मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र पर स्वच्छता का विशेष रूप से ख्याल रखा जाता है। इसके लिए दो शौचालय का निर्माण किया गया है। शुद्ध पेयजल के लिए चापाकल लगाया गया है। साथ ही नियमित रूप से पूरे केंद्र की सफाई की जाती है, ताकि स्वच्छ वातावरण में बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करायी जा सके।
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