खिलते हैं 500 से अधिक फूल और बदल जाता है घाटी का रंग,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए एक जून को खुलेगी। इस बार फूलों की घाटी की पैदल दूरी दो किमी कम हुई है। विश्व धरोहर फूलों की घाटी में 500 से अधिक फूल खिलते हैं। खास बात तो यह है कि फूलों की घाटी में हर 15 दिनों में अलग प्रजाति के फूल खिलने से घाटी का रंग भी बदल जाता है।
घांघरिया से फूलों की घाटी जाने वाला पैदल मार्ग वर्ष 2013 में आपदा से बामंणधौड़ में टूट गया था। तब इस मार्ग को खड़ी चढ़ाई में बनाकर यहां की दूरी दो किमी अधिक हो गई थी।
दो किमी कम हुई पैदल दूरी
इस बार फिर से पुराने पैदल मार्ग से ही रास्ता बना दिया गया है। जिससे दो किमी कम पैदल चलकर फूलों की घाटी में पहुंचा जा सकता है। फूलों की घाटी में जाने के लिए शुल्क जमा करने के बाद दोपहर तक ही इजाजत है।
दो बजे के बाद लौटना होता है यहां से
पर्यटकों को दो बजे बाद यहां से लौट कर बैस कैंप घाघरिया में पहुंचना जरूरी है। यही फूलों की घाटी का भी बैस कैँप है।
यूनेस्को ने घोषित किया है विश्व धरोहर
उत्तराखंड के चमोली जिले में फूलों की घाटी को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की ये घाटी न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है घाटी
फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है।
पर्वतारोही फ्रेक स्माइथ की खोज
गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन कमिश्नर एटकिंसन ने अपनी किताब हिमालयन गजेटियर में 1931 में इसको नैसर्गिक फूलों की घाटी बताया। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वतारोहण से वापस लौट रहे थे तो रास्ता भटक जाने से वे फूलों की घाटी पहुंचे।
वैली आफ फ्लावर्स नामक किताब लिखी
फूलों से खिली इस सुरम्य घाटी को देख मंत्रमुग्ध हो गए। 1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की ओर से फिर इस घाटी में आए और तीन माह तक यहां रहे। उन्होंने वैली आफ फ्लावर्स नामक किताब लिखी तो विश्व ने इस अनाम घाटी को जाना ।
पांच सौ प्रजाति से अधिक फूल
फूलों की घाटी में 500 प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पापी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्मकमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहां खिले रहते हैं।
अगस्त सितंबर में फूलों से लगकद रहती है घाटी
घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का है संसार बसता है। घाटी में जून से अक्टूबर तक फूलों की महक फैली रहती है। फूलों की घाटी अगस्त सितंबर में तो फूलों से लगकद रहती है।
कैसे पहुंचे और कब आएं फूलों की घाटी
फूलों की घाटी पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाइवे से गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। यहां से तीन किमी सड़क मार्ग से पुलना और 11 किमी की दूरी पैदल चलकर हेमकुंड यात्रा के बैस कैंप घांघरिया पहुंचा जा सकता है।
यहां फूलों तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। फूलों की घाटी में जाने के लिए पर्यटक को बैस कैंप घांघरिया से ही अपने साथ जरूरी खाने का सामान भी ले जाना पड़ता है। क्योंकि वहां पर दुकाने नहीं है।
एक जून से 31 अक्तूबर तक खुली रहती घाटी
फूलों की घाटी एक जून से 31 अक्तूबर तक खुली रहती है। यहां पर तितलियों का भी संसार है। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिम तेंदुएं भी रहते है।
इस बार बर्फ का भी होगा दीदार
इस साल सर्दियों में हुई रिकार्ड बर्फबारी से जून में खुलने वाली फूलों की घाटी में पर्यटकों को बर्फ देखने को मिल सकती है। घाटी में बामणधौड़ सहित कई जगहों पर हिमखंडों के भी मौजूद होने की संभावना हैं। यहां आने वाले सैलानी इस बार जरूर बर्फ का दीदार कर सकेंगे।
हेमकुंड व लक्ष्मण मंदिर के भी करें दर्शन
फूलों की घाटी जाने वाले पर्यटक बैस कैंप घाघरिया से हेमकुंड की यात्रा भी कर सकते हैं। यहां से पांच किमी चढ़ाई चढ़कर हेमकुंड, लक्ष्मण मंदिर विराजमान है। यहां पर पवित्र हेमकुंड सरोवर भी है। हेमकुंड सिक्खों को सबसे उंचाई पर स्थिति तीर्थ स्थान हैं।
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