सुकून का समंदर और शाश्वत विकास की आधारशिला है मातृभाषा: गणेश दत्त पाठक
सीवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा के दिवस पर परिचर्चा सह निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल’ कह कर प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बेहद दूरगामी संदेश दिए थे। भारत में सरकारी प्रयास तो निज भाषा की उन्नति के लिए उतने सार्थक नहीं रहे लेकिन तकनीकी क्रांति ने हिंदी ही नहीं भोजपुरी आदि भाषाओं के लिए भी प्रगति का जबरदस्त आधार मुहैया करा दिया है। 5 जी के दौर में तो हिंदी, भोजपुरी आदि भाषाओं के सौष्ठव में क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावनाएं जताई जा रही है।
लेकिन सच यह भी है कि मातृभाषा आत्मा के साथ संवाद कर जाती है, जो सुकून का समंदर बहा ले जाती है, आत्मा को अभिभूत कर जाती है। आज के जलवायु परिवर्तन के दौर में शाश्वत विकास की संकल्पना पर जोर दिया जा रहा है। शाश्वत विकास के संदर्भ में स्थानीय ज्ञान विशिष्ट महत्व रखते हैं। इस स्थानीय ज्ञान की सुलभता के संदर्भ में भी मातृभाषा का महत्व सर्वविदित रहा है। इसलिए आत्मिक विकास के साथ शाश्वत विकास के लक्ष्य को पाना है तो मातृभाषा के विकास के सार्थक प्रयास बेहद जरूरी हैं।
ये बातें सिवान के अयोध्यापुरी में स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा में शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर संस्थान में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों ने भी अपनी बातें रखीं। इस अवसर पर एक निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसके विजेता बबलू कुमार रहे।
इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि आनेवाले दिनों में जलवायु परिवर्तन की बड़ी चुनौती का सामना करना है। इस चुनौती से निबटने के लिए शाश्वत विकास की संकल्पना पर विशेष जोर दिया जा रहा है। शाश्वत विकास के संदर्भ में स्थानीय ज्ञान काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। इस स्थानीय ज्ञान के संदर्भ में मातृभाषा का महत्व बेहद प्रासंगिक है। आपदा प्रबंधन के संदर्भ में भी जनजातियों की प्रासंगिकता का आधार उनकी मातृभाषा ही है। अंडमान के जारवा आदि जनजाति मातृभाषा के ज्ञान तले ही सुनामी आदि आपदाओं की विभीषिका की चुनौती का सामना करते आ रहे हैं।
इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि मातृभाषा राष्ट्रीय संचेतना की प्रवाह बहाती है तो हमारी संस्कृति और संस्कारों की नैसर्गिक पहचान भी होती है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा लोक चेतना और मानवता के विकास की अभिलेखागार भी होती है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए अभ्यर्थी मोहन यादव ने कहा कि मातृभाषा सिर्फ संस्कृति की परिचायक ही नहीं होती है अपितु आर्थिक संपन्नता की आधार भी होती है।
अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने बताया कि आज हमारे समाज में जो स्थान चाउमीन को मिला, वह स्थान पोहा, जलेबी, पीठा को नहीं मिला। कारण सिर्फ यहीं हैं कि रसोई घर से मातृभाषा विलुप्त होती जा रही है। इसी कारण रसोई घर से पौष्टिकता और स्वाद भी दूर होते जा रहे हैं।
अभ्यर्थी मीना कुमारी ने कहा कि मातृभाषा अगर बदहाल है तो राष्ट्र की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।
अभ्यर्थी अनुराग दास ने कहा कि मातृभाषा के विकास में डिजिटल क्रांति बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है। इस अवसर पर निबंध लेखन प्रतियोगिता के विजेता बबलू कुमार को पुरस्कृत किया गया।
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