भारत को एक करने की राह में बाधा था माउंटबेटन प्लान,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत पर अंग्रेजों ने लगभग दो सौ साल तक शासन किया. अंग्रेजों का शासन भारत में चरणबद्ध तरीके से शुरू हुआ था और इसकी शुरुआत 1757 के प्लासी के युद्ध से हुई थी. इस युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी और बंगाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिपत्य स्थापित हो गया था. 1757 का यह युद्ध भारत में अंग्रेजी शासन की शुरुआत थी,
वहीं भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की योजना 1947 में भारत की आजादी का एक तरह से जयघोष थी. भारत में दो धर्म के लोग बहुंसख्यक थे 1. हिंदू और 2. मुसलमान. दोनों धर्म के लोगों के लिए अलग-अलग देश भारत और पाकिस्तान बनाने की घोषणा हुई. माउंटबेटन प्लान ने भारत को दो देशों में बांट दिया, जिसे स्वीकार करना उस वक्त की परिस्थति के अनुसार कांग्रेस की मजबूरी भी थी.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने माउंटबेटन प्लान को रेडियो पर स्वीकार भी किया था, लेकिन उस वक्त वे बहुत भावुक थे और इसे भविष्य के लिए बेहतर योजना बताकर ग्रहण कर लिया था. माउंटबेटन योजना के अनुसार देश के बंटवारे को तो भारत ने स्वीकार कर लिया, लेकिन 565 देसी रियासतों की आजादी को स्वीकार करना मुश्किल था क्योंकि यह योजना भारत को बिखेर रही थी और भारत की एकता की राह में बहुत बड़ी बाधा भी थी.
क्या था लैप्स ऑफ पैरामाउंसी ?
4 जून 1947 को जब लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी की तारीख घोषित की, तो उन्होंने यह भी बताया कि भारत में जो 565 रियासते हैं, जो राजाओं और निजामों के अधीन हैं, उन्हें भी अंग्रेज आजाद कर देंगे. उनकी यह घोषणा उस संधि का अंत थी, जो इन रियासतों और अंग्रेजों के बीच हुई थी. इसी संधि के तहत अंग्रेजों ने इन देसी रियासतों पर अपना कब्जा जमाया था. संधि खत्म होने की घोषणा के साथ ही ये रियासतें खुद को एक आजाद मुल्क के रूप में देखने का भ्रम पाल रही थीं. वे भारत सरकार के साथ ना जाकर अपना अलग अस्तित्व बनाना चाह रही थीं. उस वक्त यह स्थिति भारत सरकार के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि जिन्ना इस बात का फायदा उठा रहे थे और इस कोशिश में थे कि आजाद रियासतों को पाकिस्तान की ओर कर लिया जाए, ताकि भारत का केंद्रीय नेतृत्व कभी मजबूत ना हो पाए.
देसी रियासतों का अड़ियल रवैया?
लॉर्ड माउंटबेटन की योजना सामने आते ही देसी रियासतों का अड़ियल रवैया भी सामने आ गया. दक्षिण भारत के त्रावणकोर रियासत ने 11 जून 1947 को खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया और उसके बाद हैदराबाद ने भी यह घोषणा कर दी थी कि 15 अगस्त के बाद वह एक संप्रभु राष्ट्र होगा. हैदराबाद और त्रावणकोर की इस घोषणा के बाद भारत का दक्षिण भारत से संपर्क टूट रहा था और यह स्थिति कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है के कॉन्सेप्ट को भंग कर रही थी.
देसी रियासतों के अड़ियल रवैये को देखते हुए लॉर्ड माउंटबेटन के सहयोगी वीपी मेनन ने उन्हें समझाया कि अगर भारत में देसी रियासतों का स्वतंत्र अस्तित्व रहेगा तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा. आजादी की घोषणा के बाद से ही देश में सांप्रदायिक हिंसा फैल चुकी थी और हजारों लोग मारे जा चुके थे.
उस वक्त वीपी मेनन ने उन्हें समझाया कि अगर आप देसी रियासतों को भारत के साथ कर दें तो आपकी छवि भारत में अच्छी बनेगी और भविष्य में भी आपको सम्मान से याद किया जाएगा. इस घटना क जिक्र वीपी मेनन ने अपनी किताब The Story of the Integration of the Indian States में किया है. उन्होंने अपनी किताब में यह बताया है कि चूंकि माउंटबेटन एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें अपनी छवि की बहुत चिंता थी इसलिए वे मेनन की बातों से प्रभावित हुए.
देसी रियासतों के मसले पर लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत का दिया साथ
वीपी मेनन के समझाने के बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने आज के संसद भवन में देसी रियासतों के राजाओं को यह समझाया कि वे भारत के साथ जाएं, यह उनके भविष्य के लिए बेहतर होगा. हालांकि लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत का नाम लेकर कोई बात नहीं कही, लेकिन उन्होंने इशारों में यह बात स्पष्ट कर दी थी. उन्होंने भौगोलिक स्थिति और तमाम अन्य चीजों का जिक्र करते हुए यह कहा था कि देसी रियासतों का भारत के साथ जाना बेहतर होगा. लॉर्ड माउंटबेटन का यह वक्तव्य भारत के लिए बहुत मददगार साबित हुआ.
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