मुख्तार अंसारी:32 साल में 302 के 18 केस
मुख्तार अंसारी की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक हत्या के 18 केस दर्ज
टाडा, गैंगस्टर ऐक्ट, एनएसए और मकोका के तहत भी मुकदमे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी को वर्ष 2002 के चुनाव में सियासी गढ़ को ढहाकर भाजपा से विधायक चुने गए भाजपा विधायक कृष्णानंद राय, ब्लाक प्रमुख मुहम्मदाबाद श्यामा शंकर राय, अखिलेश राय, शेषनाथ पटेल, चालक मुन्ना यादव व उनके गनर बलिया के हल्दी नवासी निर्भय नारायण उपाध्याय की उस समय कोटवानारायनपुर-लट्ठूडीह मार्ग पर बसनियां गांव की क्षतिग्रस्त पुलिया के बाद एके-47 से करीब पांच सौ राउंड गोलियां चलाकर हत्या कर दी गई थी, जब वह सियाड़ी गांव में क्रिकेट प्रतियोगिता का उदघाटन कर जगदीशपुर लौट रहे थे।
उनके साथ गाड़ी में बैठने वालों की भी जान चली गई थी। आक्रोशित लोगों ने शवों को उठाने नहीं दिया था। पुलिस-प्रशासन को बैक होना पड़ा था। सरकार भी बैकफुट पर आ गई थी। इस दौरान रात में दो लोग गाड़ी से पहुंचे थे। उन्होंने कृष्णानंद राय के परिवारीजन से मुलाकात कर ढांढस बंधाया था। इसके बाद भीड़ ने शवों को उठाने दिया था। तब चर्चा थी कि कार से आए और कोई नहीं बल्कि माफिया ब्रजेश सिंह व त्रिभुवन सिंह थे।
इसको लेकर पूरा जनपद ही नहीं प्रदेश सुलग उठा था। भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने हत्याकांड की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर वाराणसी के जिला मुख्यालय पर एक दिसंबर से धरना-प्रदर्शन किया। पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी गाजीपुर पहुंचे थे। वहां हुई सभा में लालकृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन सपा सरकार को लेकर घेराबंदी की थी। भाजपा ने विधायक की हत्या को लेकर सपा सरकार को घेरा था। अटल बिहारी वाजपेयी 14 दिसंबर को वाराणसी पहुंचकर राजनाथ सिंह का धरना समाप्त कराया था। यूपी में बढ़ते अपराध के खिलाफ भाजपा की ‘न्याय यात्रा’ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था।
यूपी के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल के अपराध जगत में खौफ का पर्याय माना जाता रहा है। 1996 से मुख्तार का मऊ विधानसभा सीट पर कब्जा है। कभी निर्दलीय तो कभी एसपी का साथ तो कभी बीएसपी, पार्टियां बदलने के बावजूद मुख्तार का सियासी रसूख कायम रहा।
इस गोलीबारी में विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। मृतकों के शरीर से कुल 67 गोलियां बरामद हुई थीं। इस वारदात से पूरा पूर्वांचल दहल उठा था। वारदात के बाद मृतकों के परिजनों की आंखों से आक्रोश के साथ अपनों के जाने का दर्द भी आंसू बनकर सालों बहते रहे।
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