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मुस्लिम धर्मगुरुओं ने वक्फ विधेयक का किया समर्थन - श्रीनारद मीडिया

मुस्लिम धर्मगुरुओं ने वक्फ विधेयक का किया समर्थन

मुस्लिम धर्मगुरुओं ने वक्फ विधेयक का किया समर्थन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 शिक्षाविदों और मुस्लिम धर्मगुरुओं के एक समूह ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति की बैठक में गुरुवार को मसौदा कानून का समर्थन किया। बैठक में शामिल कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएं खोलने के लिए भी किया जाना चाहिए।
बैठक में शामिल राजस्थान वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद अबुबकर नकवी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (लखनऊ) के पूर्व कुलपति माहरुख मिर्जा और मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के मौलाना रजा हुसैन ने विधेयक का समर्थन किया। इन लोगों ने भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष अपने विचार रखे।

‘भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अच्छा कदम’

सूत्रों ने बताया कि नकवी ने विधेयक को प्रगतिशील बताया और कहा कि इससे देश के विकास को बढ़ावा मिलेगा तथा मौजूदा वक्फ कानून कमियों से भरा है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून में गरीब बच्चों और विधवाओं के लिए अच्छे प्रविधान हैं। रजा हुसैन ने कहा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए विधेयक एक अच्छा कदम है। उन्होंने कहा कि अगर नया कानून समुदाय और देश की प्रगति को बढ़ावा देता है, तो इसका स्वागत है।

हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया जाए जिसके लिए वे बनाई गई हैं। सूत्रों ने कहा कि कुछ विपक्षी सांसदों ने विधेयक के समर्थन में समिति के सामने पेश हुए लोगों द्वारा दिए गए बयान पर सवाल उठाया। सरकार ने वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन से संबंधित विधेयक आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया था, जिसे सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक एवं चर्चा के बाद संयुक्त समिति को भेजने का फैसला हुआ था।
वक्फ संशोधन बिल पर बनी जेपीसी की बैठक आज समाप्त हो गई। संयुक्त संसदीय समिति ने सोमवार को सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया। इसके अलावा विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए हर बदलाव को अस्वीकार कर दिया। दरअसल, यह विधेयक पिछले वर्ष अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था और इसमें देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन के तरीके में 44 विवादास्पद परिवर्तन करने का प्रावधान है। जेपीसी की बैठक में इस बिल में कई महत्वपूर्ण बदलावों को मंजूरी मिली है।

बिल में इन मुख्य बदलावों को मिली मंजूरी

  • इस बिल में पहले प्रावधान था कि राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में दो गैर मुस्लिम सदस्य अनिवार्य होंगे। इसमें बदलाव किया गया है। अब पदेन सदस्यों को इससे अलग कर दिया गया है। जिसका मतलब है कि वक्फ परिषदें, चाहे राज्य स्तर पर हों या अखिल भारतीय स्तर पर, कम से कम दो और संभवतः अधिक सदस्य होंगे जो इस्लाम धर्म से नहीं होंगे।
  • वहीं, एक अन्य संशोधन के अनुसार अब कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं इसका फैसला राज्य सरकार की ओर से नामित अधिकारी करेगा। मूल मसौदे में यह निर्णय जिला कलेक्टर पर छोड़ा गया था।
  • एक और अन्य संशोधन के अनुसार कानून पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा। शर्त ये है कि वक्फ संपत्ति पंजीकृत हो यानी जो वक्फ संपत्तियां रजिस्टर्ड है उनपर असर नही पड़ेगा। हालांकि, जो पहले से रजिस्टर्ड नहीं है उनके फैसले भविष्य में तय मानकों के अनुरूप होगा। (लेकिन, कांग्रेस नेता और जेपीसी सदस्य इमरान मसूद ने इसको लेकर कहा कि 90 प्रतिशत वक्फ संपत्तियां वास्तव में पंजीकृत नहीं हैं )

ये बदलाव भी पारित हुए

एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इन तीन परिवर्तनों के अलावा 11 अन्य परिवर्तन सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित किए गए थे, जिनमें लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या और अपराजिता सारंगी शामिल थे।

अन्य 11 बदलावों में से एक परिवर्तन को तेजस्वी सूर्या ने समिति के सामने रखा। जो यह निर्दिष्ट करता है कि भूमि दान करने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यह दिखाना या प्रदर्शित करना होगा कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है और यह भी स्वीकार करना होगा कि ऐसी संपत्ति के समर्पण में कोई साजिश शामिल नहीं है।

क्या बोले बीजेपी सांसद?

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि गरीब मुसलमान को हक दिलाने तथा कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक की राजनीति के कारण हिन्दू समाज को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साज़िश को बेनक़ाब कर आज संसद की संयुक्त समिति ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित किया । अब यह क़ानून बनेगा।

रिपोर्ट्स की मानें तो 14 बदलावों को स्वीकार करने की पुष्टि के लिए मतदान 29 जनवरी को होगा। माना जा रहा है कि जेपीसी की अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी तक प्रस्तुत की जा सकती है। वक्फ बिल पर बनी समिति को पहले 29 नवंबर 2024 तक रिपोर्ट पेश करने की डेडलाइन दी गई थी। हालांकि, बाद में इस समय सीमा को बढ़ा कर 13 फरवरी कर दिया गया। खास बात है कि 13 फरवरी बजट सत्र का आखिरी दिन भी है।

जेपीसी की बैठक में कई बार हुआ हंगामा

उल्लेखनीय है कि जेपीसी की बैठक में कई बार जोरदार हंगामे की भेंट चढ़ी। कुछ दिनों पहले हुई बैठक में जगदंबिका पाल ने टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी पर उन्हें गाली देने का आरोप लगाया। इसके बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के प्रस्ताव पर 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया था।
वहीं, पिछले साल 22 अक्टूबर को बैठक के दौरान कई नेताओं के बीच मारपीट की नौबत आ गई थी। झड़प के दौरान कल्याण बनर्जी ने वहां रखी कांच की पानी की बोतल उठाकर मेज पर मारी और गलती से खुद को चोटिल कर लिया था।

 

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