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इतिहास के पन्नों से नागा शांति समझौता. - श्रीनारद मीडिया

इतिहास के पन्नों से नागा शांति समझौता.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंग्रेज़ प्रशासकों ने 1866 में एक नवीन कूटनीति के तहत पर्वतीय क्षेत्र को एक अलग ज़िला बनाकर वहां सामाजिक विकास और शिक्षा के प्रचार के बहाने से चर्च के मिशनरियों ने लोगों के बीच काम करते हुए उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। अंग्रेजो ने नागों को ईसाइयत के प्रति संतुष्ट रखने के लिए हर तरह के प्रयास किये। धीरे-धीरे ईसाई मिशनरी इसमें सफल हुई और उनके प्रति नागाओं में अत्यंत आदर एवं कृतज्ञता का भाव देखा गया। परिणामस्वरूप नागा जन-समुदाय में भारत के प्रति अलगाववाद तथा उग्रता का बहुत ही गहन बीजारोपण हो गया।

1881 में नागा हिल्स आधिकारिक रूप से गुलाम भारत का हिस्सा बन गए थे। लेकिन अंग्रेज़ों के दावे को नागाओं ने कभी माना नहीं, बड़ी लड़ाइयां छिट-पुट झड़पों में बदलीं, लेकिन बंद नहीं हुईं। 1918 में नागा क्लब बना, जिसने 1929 में आए साइमन कमीशन से कहा कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाए। हम पुराने वक्त में जैसे रहते आए थे, वैसे ही रहना चाहते हैं।

नागालैंड ने आजादी के लिए जनमत संग्रह करा लिया

जनमत संग्रह का जिक्र जब भी होता है तो कश्मीर और जवाहर लाल नेहरू का जिक्र भी जरूर होता है। लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब नागालैंड ने अपनी आजादी के लिए रैफरेंडम करा लिया था। भारत की आजादी के वक्त जब पूरे मुल्क का ध्यान अलग होकर बने पाकिस्तान पर था। लेकिन उत्तर पूर्व के कई राज्य अलग होने पर अड़े थे। 1951 में नगा गुटों ने तो एक जनमत संग्रह भी करवा लिया था।

नगा नेशनल काउंसिल यानी एनएनसी के नेता अंगामी जापू इसको लेकर सबसे ज्यादा मुखर थे। कहा जाता है कि इसमें 99 फीसदी वोट अलग मुल्क की हिमाकत करते नजर आए थे। रायशुमारी में हिन्दुस्तान से अलग मुल्क बने रहने की चाह रखने की बात सामने आई जिसे भारत सरकार ने मानने से इनकार कर दिया। कहा गया कि आधिकारिक तौर पर नगा इलाके असम का हिस्सा हैं।

नागा फेडरेल गवर्मेंट की स्थापना

एनएनसी के नेता अंगामी जापू भारत सरकार के इस कदम को मानने को तैयार नहीं दिखे और 22 मार्च 1965 में एक अलग फेडरल सरकार की  स्थापना कर डाली। ये नागाओं की अंडरग्राउंड सरकार थी। इसके साथ ही इसके पास नागा फेडरल आर्मी मतलब एक तरह से अलग से हथियारबंद सेना भी थी। हालात खराब होते देख भारतीय सेना मैदान में उतरी और माहौल भांप फिजो नागालैंड से खिसकते बने। उन्होंने भागकर पूर्वी पाकिस्तान वर्तामन के बांग्लादेश में शरण ली।

चीन और पूर्वी पाकिस्तान (अद्यतन बांग्लादेश) ने भारत में अशांति और अस्थिरता उत्पन्न करने के उद्देश्य से इन नागा विद्रोहियों को आर्थिक सहयोग दिया। फ़िजो की अध्यक्षता ने अन्यायपूर्ण हिंसा से इतर एक जन समुदाय ऐसा भी था जो न तो हिंसा चाहता था और न ही भारत का एक और हिस्सा। उन्होंने डॉ. इमकोंगलिवा की अध्यक्षता में प्रथम सम्मलेन (नगा पीपुल्स कन्वेंशन), 1957 में किया गया जिसमे नागा-हितों का चिंतन करते हुए उनके स्वर्णिम भविष्य की योजना बनाई। जिसमें शुरू में 21 लोग सम्मिलित थे।

नागा पीपुल्स कन्वेंशन और राज्य का गठन

प्रथम नागा पीपुल्स कन्वेंशन के प्रयासों के परिणामस्वरूप तत्कालीन भारत सरकार ने भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में संशोधन और नागा हिल्स तुएनसांग क्षेत्र नाम से असम से अलग एक प्रशासनिक इकाई बनाई। डॉ. इम्कोन्ग्लिबा एओ और 7 अन्य सदस्यों के नेतृत्व में एक संपर्क समिति का गठन किया। यह कार्य बहुत ही जोखिम भरा था जिसमें कुछ सफलता के साथ-साथ कई लोगों की शहादत भी हुई । इसके बाद अक्टूबर 1959 में तृतीय नागा पीपुल्स कन्वेंशन हुआ और राजनीतिक समाधान के लिए एक मसौदा समिति का गठन किया गया जिसने 16 सूत्री प्रस्ताव तैयार कर भारत सरकार को सौंपा।

इस प्रस्ताव में नागा हिल्स तुएनसांग क्षेत्र (NHTA) के रूप में जाने वाले प्रदेश को भारतीय संघ में नगालैंड के नाम से जानने की परिकल्पना की गई तथा सरकार को आश्वासन दिया कि सभी नागा जनसमुदाय अपनी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार देश के विकास में अपनी भूमिका पूरी तरह से निभाएँगे। शान्ति प्रिय इन सम्मेलनों के कठिन और लंबे संघर्षों के परिणामस्वरूप 1960 में पंडित नेहरू और नागा नेताओं के बीच बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ी और नागालैंड को राज्य बनाने की कवायद शुरू की गई।

शांतिपूर्ण और विकसित नागालैंड का सपना देखने वाले डॉ. इम्कोन्ग्लिबा एओ की विद्रोही विभाजनकारी नागाओं ने 22 अगस्त 1961 को मुकोचुंग में हत्या कर दी। अंततः 1962 में संसद में नागालैंड एक्ट पास हुआ और 1 दिसंबर 1963 को नागालैंड भारत का 16वां राज्य बन गया।

नागा शांति प्रक्रिया

वर्षों की बातचीत के बाद, 1976 में नागालैंड के भूमिगत समूहों के साथ शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन इसे कई शीर्ष एनएनसी नेताओं ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह नागा संप्रभुता के मुद्दे को संबोधित नहीं करता है और नागाओं को भारतीय संविधान को स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है। पांच साल बाद, इसाक चिशी स्वू, थुइंगलेंग मुइवा और एस एस खापलांग एनएनसी से अलग हो गए और सशस्त्र संघर्ष जारी रखने के लिए एनएससीएन का गठन किया।

1988 में, एनएससीएन फिर से इसाक और मुइवा के नेतृत्व में एनएससीएन (आईएम) और खापलांग के नेतृत्व में एनएससीएन (के) में विभाजित हो गया। NSCN (IM) में उखरूल, मणिपुर (जिससे मुइवा संबंधित है) की तंगखुल जनजाति और नागालैंड की सेमा जनजाति (जिससे इसाक का जन्म हुआ) का प्रभुत्व है। 1997 में NSCN (IM) ने भारत सरकार के साथ युद्धविराम में प्रवेश किया जिसने अंतिम समाधान की आशा को जन्म दिया।

सरकार ने आईबी के पूर्व अधिकारी मिश्रा को बातचीत के लिए नया सूत्रधार नियुक्त किया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और रियो के मुइवा और अन्य से मिलने के बाद मिश्रा ने इस सप्ताह आईएम के कुछ प्रतिनिधियों से मुलाकात की। सूत्रों का कहना है कि मिश्रा, जिन्हें औपचारिक रूप से नया वार्ताकार नियुक्त किया जा सकता है, एक शांति के साथ कार्य करने के लिए जाने जाते हैं, और जनवरी 2020 से नागा समूहों से बात कर रहे हैं।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि एनएससीएन (आईएम) के बिना कोई समझौता नहीं हो सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में काफी प्रभाव माना जाता है। एनएनपीजी के सूत्रों ने कहा है कि वे मिश्रा के साथ काम करने के खिलाफ नहीं हैं; हालाँकि, उन्होंने उनकी भूमिका की “अस्पष्टता” की ओर इशारा किया है, उनका तर्क है, 31 अक्टूबर, 2019 को वार्ता के समापन के बाद, “अब एक वार्ताकार की आवश्यकता नहीं है।

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