नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य से संबंधित सुधार एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए मनाया जाता है राष्ट्रीय नवजात शिशु सप्ताह:

नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य से संबंधित सुधार एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए मनाया जाता है राष्ट्रीय नवजात शिशु सप्ताह:

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नवजात शिशुओं की उचित देखभाल को लेकर चलाया जाता है जागरूकता अभियान: सिविल सर्जन
98.3 प्रतिशत बच्चे को जन्म के एक घण्टे के अंदर पिलाया जाता है मां का पहला दूध: डॉ प्रेम प्रकाश
स्तनपान कराने वाले बच्चों में संक्रमण की शिकायत कम: डीआईओ

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया,(बिहार):

नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य से संबंधित होने वाली प्रमुख चुनौतियों एवं उनसे बचाव के लिए प्रत्येक वर्ष 15 से 21 नवंबर के बीच पूरे देश में राष्ट्रीय नवजात शिशु सप्ताह मनाया जाता है।इस सप्ताह का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में नवजात स्वास्थ्य के महत्व को सुदृढ़ करना एवं नवजात अवधि में शिशुओं के लिए स्वास्थ्य से संबंधित देखभाल की स्थिति में सुधार करने के बाद शिशु मृत्युदर को कम करना होता है। नवजात शिशुओं की ज़िंदगी के पहले 28 दिन (नवजात चरण) बहुत कमजोर होते हैं। जिस कारण नवजात चरण में बाल मृत्यु दर सबसे अधिक होती है। यह चरण बच्चे के स्वास्थ्य की नींव को मजबूत करता है।

 

नवजात शिशुओं की उचित देखभाल को लेकर चलाया जाता है जागरूकता अभियान: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ मोहम्मद साबिर ने बताया कि नवजात शिशुओं में मृत्यु दर को कम करने और लोगों को नवजात शिशुओं की उचित देखभाल करने के लिए जागरूकता अभियान एवं प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 15 से 21 नवंबर तक नवजात देखभाल सप्ताह मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष अलग-अलग थीम के साथ कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैं। इस वर्ष 2022 में इस सप्ताह की थीम “शहरी क्षेत्र में नवजात शिशुओं की होम केयर” है। उनके बच्चे का जन्म हर इंसान के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक माना गया है। जन्म के बाद बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से होना चाहिए और उसे किसी भी बीमारी या संक्रमण के चंगुल से बचाना चाहिए। इसके लिए बेहद जरूरी है कि उसकी देखभाल को लेकर विशेष ध्यान रखा जाए।

98.3 प्रतिशत बच्चे को जन्म के एक घण्टे के अंदर पिलाया जाता है मां का पहला दूध: डॉ प्रेम प्रकाश
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल के शिशु रोग विभाग के  अध्यक्ष डॉ प्रेम प्रकाश ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 05 (NHFS-5) के अनुसार पूरे बिहार में वर्ष 2019-20 के दौरान जन्म के बाद लेकिन एक घण्टे के अंदर मां का पहला गाढ़ा दूध पिलाने  का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में 35.1 तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 30.5 है लेकिन वर्तमान समय की बात की जाए तो यह 98.3 प्रतिशत हो गया है। नवजात शिशुओं को जन्म के बाद लगातार छः महीने तक केवल मां का ही दूध पिलाना चाहिए।

स्तनपान कराने वाले बच्चों में संक्रमण की शिकायत कम: डीआईओ
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ विनय मोहन ने बताया कि नवजात शिशु मृत्यु की रोकथाम एवं कमी लाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में डब्ल्यूएचओ के द्वारा पूरे विश्व में नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर विशेष रूप से कार्य योजना तैयार की गयी थी । एक मजबूत प्रतिरक्षा विकसित करने के लिए एक बच्चे को स्तनपान कराने की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। स्तनपान कराने वाले बच्चे को एलर्जी, सर्दी, खांसी एवं ब्रोन्कियल समस्याओं से बचाया जा सकता है। जिस बच्चे को स्तनपान कराया गया है, उसे कैंसर, मधुमेह या मोटापा होने की संभावना बहुत कम होती हैं। यदि आपका नवजात शिशु दूध पीने या भोज्य पदार्थ को खाने में रुचि नहीं लेता है तो यह चिंता का कारण बन सकता है।

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