Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
भारतीय समाज व्यवस्था और उसका आर्थिक पक्ष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन - श्रीनारद मीडिया

भारतीय समाज व्यवस्था और उसका आर्थिक पक्ष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

भारतीय समाज व्यवस्था और उसका आर्थिक पक्ष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

जीविका आश्रम, इंद्राना,24-26 नवम्बर, 2023

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज, न केवल भारत देश में, बल्कि पूरे विश्व में, स्थानीय, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिक रूप से न्यायसंगत और शांतिपूर्ण जीवन जीने की कला को पुनर्जीवित करने की दिशा में कई प्रयास किये जा रहे हैं। नेक इरादों के साथ शुरू किये गए इन प्रयासों में अर्थ-शास्त्रीय पक्ष की अनदेखी करने पर यह सारे प्रयास ‘आम-जन’ केन्द्रित न होकर ‘अभिजात्य वर्ग’ केन्द्रित होते जा रहे हैं।

वर्तमान की विभिन्न संकल्पनाएँ, जैसे वित्तीय स्थिरता, सामाजिक उद्यमिता, राजस्व मॉडल आदि भी आधुनिक अर्थशास्त्र में ही पगी नजर आती हैं। इन संकल्पनाओं ने वैकल्पिक जीवनशैली में लगे लोगों को भी बुरी तरह से मोहित कर रखा है, और अपना स्वयं का एक मायाजाल, भ्रमजाल फैला रखा है, जिसमें लोगों को कोई दूसरा विकल्प दिखाई ही नहीं देता है।

यही कारण है कि आज बहुत से लोग समाज में आर्थिक संबंधों के प्रश्न पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। आर्थिक संबंधों के जिस वर्तमान प्रतिमान में हम खुद को पाते हैं, वह सार्थक कार्यों के लिए सक्रिय जगह उपलब्ध करने में असक्षम प्रतीत हो रही है। तथाकथित मुख्यधारा का वर्तमान आर्थिक ढांचा व्यक्ति, समाज, संस्कृति और प्रकृति, सभी के लिए समान रूप से विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर रहा है। इन मुद्दों पर चर्चा करके, एक साझे वैकल्पिक आर्थिक ढाँचे के विकास की महती आवश्यकता नजर आती है, जो न केवल एक साथ सभी की भलाई की दिशा में काम करे, बल्कि प्रकृति के साथ भी सामंजस्य बनाकर जीने को प्रेरित करे।

इस पृष्ठभूमि में भारतीय समाज व्यवस्था के आर्थिक पक्ष पर ‘भारतीय दृष्टि से चर्चा एवं विमर्श’ के लिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (IGNCA), नई दिल्ली के तत्वाधान में ‘भारतीय समाज व्यवस्था और आर्थिक पक्ष’ विषय पर तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 24 नवंबर, शुक्रवार से 26 नवंबर, रविवार तक जीविका आश्रम, इंद्राणा में की गई। इसमें देश भर से अलग-अलग आर्थिक प्रयोग में कार्य कर रहे लोग और आर्थिक, सांस्कृतिक तथा स्थानीय मुद्दों गहरी पकड़ रखने वाले अग्रणी दिग्गजों ने अपनी बात रखी।

संगोष्ठी के दौरान विभिन्न सत्रों में विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई जिसमें आधुनिक अर्थव्यवस्था और उसके गुण-दोष, अर्थव्यवस्था की वैकल्पिक संकल्पनाएं, अर्थव्यवस्था का शास्त्रीय पक्ष, जाति आधारित अर्थव्यवस्था, गुरूजी रविंद्र शर्मा की दृष्टि में अर्थव्यवस्था, वर्तमान में चल रहे विभिन्न वैकल्पिक प्रयोगों पर चर्चा आदि प्रमुख हैं।

देश भर से लगभग 30 वक्ताओं के अतिरिक्त 50 से अधिक प्रतिभागी भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने और उसके बारे में कुछ सीखने के उद्देश्य के साथ संगोष्ठी का हिस्सा बने।

संगोष्ठी के विषय, चर्चा सत्र, वक्ता गण, आदि के साथ-साथ संगोष्ठी के स्थान और प्रारूप को बड़े ध्यान से चुना गया था ताकि यह विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों में होने वाले सेमिनार, व्याख्यानों, आदि की तरह बौद्धिक मात्र ना रहे और संगोष्ठी की स्थानीयता तथा मौलिकता बनी रहे।

संगोष्ठी की पृष्ठभूमि को समझने के लिए इसके आयोजन स्थल जीविका आश्रम को समझना महत्वपूर्ण होगा। जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर बसे इंद्राणा गांव का यह आश्रमनुमा घर, गांव की संस्कृति को सहेजने और संवारने में जुटा है। गांव में शहर बसाने वाली सोच के विपरीत इस आश्रम को साढ़े तीन एकड़ में ग्रामीण संस्कृति के मॉडल में बदला गया है।

आश्रम में आनंद से जीवन बिताने के तमाम साधन ग्रामीण और पारंपरिक तरीकों से उपलब्ध हैं। यह आश्रम व्यक्तिगत पारिवारिक और सामाजिक जीवन में वैकल्पिक भारतीय ग्रामीण जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं पर बृहद प्रयोगधर्मी पहल है। यही वजह है कि दूर-दूर से युवा, बुद्धिजीवी यहां ग्रामीण जीवनशैली से रूबरु होने और अपने जीवन में उतारने के तौर-तरीकों को समझने पहुंचते हैं।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में भा. प्र. से. का सेवानिवृत्त अधिकारी और लक्ष्यभेदी फाउंडेशन के संस्थापक श्री वेद प्रकाश शर्मा, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कलाकार एवं आंध्रा विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष श्री सुधाकर रेड्डी, मितान ट्रस्ट के प्रबंध निदेशक श्री गोपी कृष्णा एवं जीविका आश्रम के संचालक आशीष गुप्ता उपस्थित थे। अतिथियों द्वारा कारीगर यंत्र की विधिवत पूजा और उसके बारे में विस्तृत जानकारी देने के बाद संगोष्ठी का औपचारिक शुभारंभ किया गया।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में आशीष गुप्ता जी ने संगोष्ठी की पृष्ठभूमि रखते हुए आज के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरत और प्रासंगिकता के बारे में बताया। इसके बाद संगोष्ठी में शामिल हुए सारे प्रतिभागियों और वक्ताओं ने अपना परिचय दिया और संगोष्ठी तथा गुरुजी रविंद्र शर्मा जी के विचारों के साथ अपने संबंध के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। तत्पश्चात वेद प्रकाश शर्मा जी तथा सुधाकर रेड्डी जी ने अपने अनुभव साझा किया और भारतीय दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने की जरूरत पर जोर दिया।

दूसरे सत्र का विषय ‘आधुनिक अर्थव्यवस्था और उसका गुण दोष’ था। इस सत्र में वक्ता के रूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्राध्यापक वी. सुजाता, अर्थशास्त्री और ‘पृथ्वी मंथन’ किताब के लेखक असीम श्रीवास्तव, ओरोविल के ‘सस्टेनेबल लाइवलीहुड्स इंस्टीट्यूट’ के निदेशक और सह संस्थापक राम सुब्रमण्यम और भारतीय प्रबंधन संस्थान काशीपुर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष संदीप सिंह ने अपनी बातें रखी।

प्रथम दिन का समापन ‘तुलसी विवाह’ के साथ हुआ। कार्यक्रम के दौरान स्थानीयता और सांस्कृतिक पक्ष को बनाए रखने के लिए आसपास के स्थानीय कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इसके तहत इंद्राना के नजदीकी गांव मुड़ारी यादव समाज के लोगों के द्वारा उनका अपना परम्परागत अहीर नृत्य प्रस्तुत किया गया। उत्तर भारत के गांवों में दिवाली के दिनों में यादव समाज के लोगों द्वारा घर-घर जाकर दिवारी गाई जाती है। पिछले कुछ सालों से शहरीकरण के प्रभाव में आकर यह नृत्य और गायन विलुप्त होता जा रहा है।

संगोष्ठी के दूसरे दिन तीन सत्रों में चर्चाएं हुई। पहले सत्र का विषय ‘अर्थव्यवस्था का शास्त्रीय पक्ष’ था, जिसमें आईआईएम, काशीपुर के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के अध्यक्ष संदीप सिंह जिनका ‘भारतीय तरीके की व्यवसाय’ पर काफी अनुभव है, आर्ट ऑफ़ लिविंग, बैंगलुरु के वरिष्ठ प्रशिक्षक एवं भारतीय अनुसंधान केंद्र के संस्थापक श्री प्रशांत जी, और भारतीय दर्शन और व्याकरण के विद्वान ब्रह्मचारी श्री साहेबराव शास्त्री ने अपनी बातें रखी और शास्त्रों के हिसाब से अर्थव्यवस्था के विभिन्न आयाम को सरल ढंग से समझाया।

दूसरे सत्र का विषय ‘अर्थव्यवस्था की वैकल्पिक संकल्पनाएं’ था, जिसमें अर्थशास्त्री और ‘पृथ्वी मंथन’ किताब के लेखक असीम श्रीवास्तव, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक वी. सुजाता, इरमा आणंद के ग्रामीण प्रबंधन विशेषज्ञ जीवी कृष्णगोपाल, औरोविल, पुदुचेरी के ‘सस्टेनेबल लाइवलीहुड्स इंस्टीट्यूट’ से पधारे राम सुब्रमण्यम ने अपनी बातें रखी। उन्होंने बताया कि कैसे मुख्यधारा में ‘एकत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली’ मुद्रा आधारित अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त विकल्प हमारे सामने उपलब्ध हैं।

तीसरे सत्र में ‘जातियों में निहित भारत की अर्थव्यवस्था’ विषय चर्चा हुई। इस सत्र में गांधीवादी विचारक और शिक्षाविद शिवदत्त मिश्रा, राष्ट्रीय कारीगर पंचायत और भारतीय ज्ञान विज्ञान जत्था से जुड़े प्रभाकर पुसदकर, आंध्र प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद से सेवानिवृत्त पीवी सुब्बाराव, घूमन्तु चरवाहे समाज के साथ लंबे समय तक काम करने वाले गोपी कृष्णा ने अपने अनुभव साझा किया और जाति के इतिहास की विभिन्न परतों को खोला। इस दौरान भारत की जाति व्यवस्था के दुष्प्रचार पर भी नजर डाला गया। इस चर्चा मैं इंद्राणा गांव के ही कुम्हार दासु चाचा और बर्मन समाज के मछुआरे सुंदर बर्मन ने भी हिस्सा लिया और अपनी बातें रखी।

सायंकाल के सांस्कृतिक सत्र में जबलपुर के महिलाओं के जानकी बैंड ने साहित्य रचनाओं पर अपनी प्रस्तुति दी। जानकी बैंड महिलाओं का एक विशिष्ट बैंड है, जो हिंदी की भूली बिसरी कविताओं और लोकगीतों तथा जनजाति संगीत का मंचीय प्रदर्शन करता है। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए ग्राम वासी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए।

संगोष्ठी के तृतीय एवं आखिरी दिन की शुरुआत गुरुजी स्व. श्री रवीन्द्र शर्मा जी की बातचीतों पर आधारित पुस्तक शृंखला ‘भारत गाथा’ के प्रथम खंड ‘भिक्षावृत्ति’ के लोकार्पण के साथ हुई। दिन के पहला सत्र का विषय ‘गुरूजी रविन्द्र शर्मा की दृष्टि और भारतीय अर्थव्यवस्था’ था। इस सत्र में सुधाकर रेड्डी जी जो हस्तशिल्प और हथकरघा के प्रसिद्ध कलाकार और आंध्र विश्वविद्यालय विशाखापट्टनम में प्राध्यापक हैं,

गुजरात में रहकर बच्चों को विभिन्न तरह की हस्तकलाएं सिखाने वाले अहमदाबाद के आशुतोष जानी, जीविका आश्रम के संचालक आशीष गुप्ता, और पशु आधारित आजीविका के क्षेत्र में लंबे समय तक काम करने वाले बेलगाम के गोपी कृष्णा ने अपने अनुभव साझा किये। इन सभी को गुरु जी के लम्बे सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त हुआ है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनकी समझ बनी है।

तृतीय दिन का दूसरा सत्र ‘वैकल्पिक अर्थव्यवस्था पर चल रहे विभिन्न प्रयोग’ पर था। इसमें इंद्राणा ग्राम के बर्रा धाम के अभय जी, जीविका आश्रम, इंद्राणा के आर्यमान, गणेश वंदना परिवार, अहमदाबाद की स्नेहा जानी, अनंत मंडली, भोपाल की पियुली, अहिंसक अर्थव्यवस्था नेटवर्क, चेन्नई की बेनिशा ने लोगों को अपनी संस्था और अपने काम की अर्थव्यवस्था के पक्ष के बारे में बताया, जो मुख्य धारा की अर्थव्यवस्था से कई मायनो में अलग है।

तीसरे और अंतिम सत्र में विधिवत समापन के साथ ‘संगोष्ठी के बाद के सूत्रों’ पर चर्चा की गई। इसमें सारे प्रतिभागियों और वक्ताओं ने इस बारे में बताया कि हम कैसे व्यक्तिगत पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के निर्माण में अपना सहयोग दे सकते हैं । लोगों ने इस संगोष्ठी पर बहुत सकारात्मक सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दी। उन्होंने कहा कि जिस परिवर्तन की राह पर हम साथ में चल रहे हैं, इस समय हमें इस तरह के संगोष्ठी की मिलन की सख्त जरूरत है। सभी सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का सफल समापन हुआ।

Leave a Reply

error: Content is protected !!