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चुनाव का राष्ट्र’शास्त्र’……

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

12वीं पास करते हीं हमारे बच्चे मतदाता बनकर देश का भाग्य तय करने वाले नागरिकों की कतार में आ जाते हैं। आठवीं कक्षा से हीं बच्चों को देश की राजनीतिक व्यवस्था का आधारभूत एवं वास्तविक ज्ञान देने की आवश्यकता है। यह ज्ञान एनसीईआरटी एवं राज्य की पाठ्यसामग्री के सैद्धान्तिक पक्ष से अलग व्यावहारिक स्थिति पर केन्द्रित हो।

जैसे…..जागरूक मतदाता के रूप में तैयार करते हुए बच्चों को चुनावी राजनीति के इतिहास, इसका मनोविज्ञान, परिणाम एवं दूरगामी प्रभाव की एक सामान्य जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है।

…. राष्ट्र के विभाजन की रूपरेखा उत्तरप्रदेश एवं बिहार में हीं बनी। विभाजन की त्रासदी के बारे में बिहार-यूपी के बच्चों को शायद हीं जानकारी हो। अगर जानकारी होगी भी तो ….अनुभव नहीं हीं होगा।

पूज्य मातृभूमि का विभाजन अपनी अलग मज़हबी पहचान के लिए हुआ। भीषण रक्तपात, नरसंहार एवं सामूहिक बलात्कार में एक अनुमान के मुताबिक चालीस लाख भारतीयों की मौतें हुईं। करीब एक करोड़ लोगों से उनका घर, ज़मीन सबकुछ छीन कर मार भगाया गया। उनको बड़ी फ़ख्र था- लाहौर की साझी संस्कृति पर। लेकिन बंटवारे की मज़हबी आग ने गै़र-मज़हबियों को तत्काल पहचान लिया और उनके सारे सपने फूंक डाले।

अफसोस ……कि इतने बड़े नरसंहार एवं मातृभूमि के विभाजन के वास्तुकार 1946 के प्रांतीय चुनावों से विजयी जनप्रतिनिधि थे। चुनाव जीतते हीं जनप्रतिनिधि सबका हो जाता है-मत, सम्प्रदाय, भाषा एवं पूजा-पद्धति से उपर उठकर।

…..लेकिन,

1946 वाली विभाजनकारी सोच आज भी भारतीय चुनावी एजेंडे में कहीं न कहीं खुलेआम दीख रही है। पूजा-पद्धति के नाम पर 1990 में कश्मीरियों का नरसंहार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हीं हुआ। शासन व्यवस्था से महत्वपूर्ण है कि उस व्यवस्था को संचालित करने वाला किस दार्शनिक सोच एवं लक्ष्य को लेकर चल रहा है, यह समझने एवं बच्चों को आदर्श मतदाता के रूप में समझाने की आवश्यकता है।

चुनाव जीत कर सरकार बनाना एवं चुनाव हार कर भी राष्ट्र को विभाजन के मुहाने ले जाने के लिए फिर से संगठित होने का प्रण करना दोनों अलग-अलग बाते हैं। बड़े चुनाव जीतकर अपनी सरकार के होने का दंभ पालना एवं सरकार न होते हुए भी एमपी, एमएलए बनकर अपने लोगों को मजबूत करना, गैर-मजहबियों को पलायन करने पर मजबूर करना, दंगा करने के लिए बारिकी से तैयारी करना ….दोनों हीं अपनी-अपनी प्रवृत्तियां हैं।

भारतराष्ट्र के भावी मतदाताओं को इन खतरों से आगाह करना देश के हर उस नागरिक का कर्तव्य है जो राष्ट्र को अखंड देखना चाहता है।

…..और ….अंत में…….

जीते हुए जनप्रतिनिधियों को बधाई देते हुए यह आग्रह है कि आप सभी जाति-धर्म से उपर उठकर हर उस मतदाता, नागरिक को हर तरह से मजबूत करें (खासकर रोज़गार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य) जो आपके साथ नि:स्वार्थ भाव से मात्र इसलिए खड़ा है …..ताकि देश बचा रहे, राष्ट्र अखंड रहे …….

और सुरक्षित रहे……

राजधर्म …..राष्ट्रधर्म।

ताकि…..भारत एक रहे ……श्रेष्ठ रहे।

आप सभी लोकतंत्र का विजय उत्सव मनाते हुए एक प्रण लें…..जो कभी श्रीराम ने लिया था-

“निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह ….”।

वयम् राष्ट्रेजागृयाम!

आभार–पुष्पेंद्र पाठक

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