नाटो का सिद्धांत है आल फार वन, वन फार आल.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नाटो की वजह से पहले ही यूक्रेन के साथ रूस के रिश्‍ते खतरनाक मोड़ पर हैं और अब फिनलैंड और स्‍वीडन भी उसी राह पर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। रूस की तरफ से इन दोनों ही देशों को चेतावनी दी गई है, लेकिन इसका सही पता इस वर्ष जून में होने वाले नाटो सम्‍मेलन के आसपास चलेगा। इसी के आसपास ये साफ हो जाएगा कि इन दोनों ने नाटो की सदस्‍यता लेने पर क्‍या फैसला किया है। रूस ने दोनों ही देशों को इसके प्रति आगाह किया है। लेकिन यदि इन देशों ने ऐसा कोई कदम उठाया तो विवाद होना भी तय है।

बहरहाल, दोनों ही देशों का मानना है कि बदलते दौर में संप्रभुता और देश की सुरक्षा के लिए ये जरूरी हो गया है।आपको बता दें कि नाटो का कलेक्टिव डिफेंस का सिद्धांत है। इसका अर्थ है किसी एक सदस्‍य पर हमला मतलब सभी पर हमला। नाटो प्रमुख स्टोल्टेनबर्ग का कहना है कि आल फार वन, वन फार आल। उनके मुताबिक ये नाटो के सदस्‍य देशों के लिए उनकी सुरक्षा की गारंटी भी है, जो विश्‍व के बदलते घटनाक्रम में नाटो के सदस्‍य बनने को आकर्षक मान रही है। मौजूदा समय में कोई देश अकेला रहकर बर्बादी के कगार पर नहीं जाना चाहता है। इसका एक उदाहरण यूक्रेन है।

बता दें कि अब तक स्वीडन और फिनलैंड की नीति तटस्‍थ रही है। रूस से फिनलैंड की करीब 1,300 किमी. की सीमा मिलती है।  कभी ये रूस के ही अधिकार क्षेत्र में था। 1939 में दोनों के बीच जंग भी हो चुकी है। इस जंग का अंत 1940 में हुई एक संधि से हुआ था। 1948 में दोनों देशों के बीच ट्रीटी आफ फ्रेंडशिप, कोआपरेशन एंड म्युचुअल असिस्टेंस हुई थी। इसमें फिनलैंड ने तटस्‍थ बने रहने पर सहमति जताई थी। यही वजह थी कि वो अब तक नाटो का सदस्‍य नहीं बन सका था। 1992 में फिनलैंड से पुरानी संधियां खत्‍म हो गई और दोनों के बीच रिश्‍तों को मधुर रखने के लिए समझौता किया गया था। 1995 में फिनलैंड और स्‍वीडन ने यूरोपीयन यूनियन की सदस्यता ली थी।

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