प्रकृति विविधता को संपोषित करती है, तुलना नहीं करें अपना सर्वश्रेष्ठ दें आयुर्वेद पेशेवर: डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

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दयानंद आयुर्वेदिक पीजी मेडिकल कॉलेज में बीएएमएस के नव नामांकित छात्रों के ट्रांसिशनल करिकुलम के तहत संवाद का आयोजन

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

आयुर्वेद समग्र और सकारात्मक दृष्टिकोण से युक्त एक बेहद प्राचीन चिकित्सा पद्धति रही है। तीव्र गति से हो रहे तकनीकी परिवर्तन के दौर में आयुर्वेद पेशेवर के लिए रचनात्मकता को तरजीह देना अनिवार्य है। प्रकृति विविधता को संपोषित करती है इसलिए कभी किसी से अपनी तुलना नहीं करें अपितु अपना सर्वेश्रेष्ठ देने का प्रयास करें। अभी नई शिक्षा नीति के दौर में प्रत्येक आयुर्वेद पेशेवर को नवीन और क्रिएटिव आईडिया विकसित करने का भरपूर जतन करना चाहिए क्योंकि वर्तमान समय नवाचार और नवोन्मेष का है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में आयुर्वेद पेशेवर के लिए तमाम अवसर उपलब्ध हो रहे हैं तो आवश्यकता सावधानी और संजीदगी की भी है। ये बातें दयानंद आयुर्वेदिक पीजी मेडिकल कॉलेज में भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली द्वारा निर्देशित बीएएमएस के नव नामांकित छात्रों का ट्रांसिशनल करिकुलम में मुख्य वक्ता के रूप मे संबोधित करते हुए शिक्षाविद् डॉक्टर गणेश दत्त पाठक ने कही। वे ‘ वर्तमान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में आयुर्वेद पेशेवर के लिए चुनौतियां और अवसर’ विषय पर संबोधन दे रहे थे। गौरतलब है कि दयानंद आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में ट्रांजिशनल करिकुलम के दौरान देश के प्रतिष्ठित प्रोफेसर्, शिक्षाविद्, आयुर्वेदाचार्य और आयुष विभाग के वरिष्ठ अधिकारी छात्रों को मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।

परिचर्चा सत्र की शुरुआत में डॉक्टर पुष्कर राय ने विषय प्रवेश कराया। प्राचार्य प्रोफेसर(डॉक्टर) सुधांशु शेखर त्रिपाठी ने मुख्य वक्ता डॉक्टर गणेश दत्त पाठक को अंगवस्त्र और मोमेंटो देकर स्वागत किया। इस अवसर पर प्राचार्य प्रोफेसर सुधांशु शेखर त्रिपाठी ने कहा कि एआई जनित अवसर और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में आयुर्वेद के विद्यार्थियों को बेहद संजीदगी से विचार करना चाहिए।

मुख्य वक्ता के तौर पर संबोधन देते हुए शिक्षाविद् डॉक्टर गणेश दत्त पाठक ने कहा कि आयुर्वेद के छात्रों को सबसे पहले इस बेहद प्राचीन और शाश्वत चिकित्सा पद्धति के महत्व को समझना चाहिए और उसके प्रति श्रद्धा भाव को जागृत करना चाहिए। वर्तमान में एआई का अनुप्रयोग हर चिकित्सा पद्धति में हो रहा है। आयुर्वेद में मशीन लर्निंग, नेचुरल लैंगुएज प्रोसेसिंग, डाटा एनालिटिक्स, स्पेक्ट्रोस्कॉपी आदि एआई की तकनीकें प्रमाणिकता, गुणवत्ता के सत्यापन, उत्पाद निर्माण में स्थिरता, नकली आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्माण को रोकने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

रोग निदान में एआई के माध्यम से विशाल आंकड़ों का संधारण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है। जड़ी बूटियों के विशाल आंकड़ों को प्रसंस्कृत करने, जड़ी बूटियों की कृषि दक्षता में सुधार, व्यापक अनुसंधान गतिविधियों में भी ए आई का सहयोग मिल सकता है। उन्होंने कहा कि बेहतर सटीकता, स्थिरता, समय और संसाधन की बचत, बढ़ी हुई उत्पाद सुरक्षा, उत्पाद नवाचार अनुकूलन के संदर्भ में भी एआई महत्वपूर्ण है। एआई पुरातन ग्रंथों में उपलब्ध विशाल डाटा और वर्तमान आयुर्वेदिक अनुसंधान के तथ्यों के बड़ी सामग्री का प्रभावी विश्लेषण आसानी से करने में सक्षम है। साथ ही, उन्होंने आगाह किया कि एआई के दौर में सावधानी और सतर्कता भी बेहद जरूरी है। उन्होंने प्राचार्य महोदय से निवेदन किया कि एआई विशेषज्ञों के साथ संवाद के आयोजन से आयुर्वेद के छात्रों के क्षमता निर्माण पर बेहद सकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे तकनीकी सत्र नियमित अंतराल पर मेडिकल कॉलेज में होने चाहिए।

मुख्य वक्ता डॉक्टर गणेश दत्त पाठक ने इस अवसर पर तकरीबन एक घंटे के संबोधन में आयुर्वेद के नए छात्रों को मोटिवेट करते हुए कहा कि सभी छात्र प्रतिभाशाली हैं आवश्यकता निरंतर अभ्यास और सतत प्रयास की है। धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर उपेंद्र कुमार पर्वत ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर प्रबुद्ध झा, डॉक्टर रमेश तिवारी आदि उपस्थित रहे। शांति पाठ के साथ सत्र का समापन हो गया।

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