‘ न दोस्ती के करम रहेंगे, न दुश्मनों के सितम रहेंगे,
फना के नजदीक है ये दुनिया न तुम रहोगे न हम रहेंगे”- मंजर भोपाली
श्रीनारद मीडिया, सीवान(बिहार):
सीवान जिला के पचरुखी बाजार के उम्मेद पैलेस में सर सैयद डे के तत्वावधान में यूनिटी एंड पीस फाउंडेशन की ओर से ऑल इंडिया मुशायरा का आरोप किया गया। इसकी सदारत देश के नामचीन शायर मंजर भोपाली ने की। जबकि इसका बखूबी संचालन मशहूर शायर नदीम फरुर्ख ने किया। इसके पूर्व उम्मेद पैलेस में सर सैयद डे को लेकर सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें तालीम और तरबियत पर चर्चा की गयी।
वहीं मुशायरे का आगाज अज्म शाकरी के इस नात-ए-पाक से हुआ-‘ आमदे मुस्तफा पर ये सारा जहां आज खुशियों में किस दर्जा मसरुर है,रात महकी हुई चांद हंसता हुआ जिधर देखिए नूर ही नूर है।’ शायर तौकीर गाजीपुरी ने भी नात पढ़ी।लेकिन महफिल में जान उस वक्त आयी जब हिन्दी-उर्दू के शायर अजहर इकबाल और सुप्रसिद्ध कवयित्री मनिका दुबे मंच साझा किया।शायर अजहर इकबाल ने श्रृंगार और सामाजिक सरोकार से संबंधित ढेरों कलाम पढ़े।
और महफिल में जान फूंक दी। उनका ये शेर -‘ ओस की तरह झिलमिलाया कर, गीले बालों को मत सुखाया कर।” “आंख फिर वक्त पर नहीं खुलती,अपनी बाहों में मत सुलाया कर।” ” घूटन-सी हो रही है उसके पास जाते हुए, मैं खुद रुठ गया हूं उसे मनाते हुए।” अब बारी थी सुप्रसिद्ध कवयित्री मनिका दुबे की। उन्होंने अपने कलाम कुछ ऐसे पेश किए-“मोती तुम्हारे हाथ में आकर फिसल गया, तुम सोचते हो तुम्हारे पांव का कांटा निकल गया।” “मुझको झील नदियां अच्छी लगती है,उसको मेरी अंखिया अच्छी लगती है।
” “शहर के शोर में वीरानियां हैं, वहां तुम हो लेकिन तनहाइयां हैं।” शायर मेसहर आफरीदी की ये कलाम भी सराहे गये। उनका ये शेर भी तालियों का सबब बना-” जमीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं, हमारी खुश नसीबी है हम भारत में रहते हैं।” वहीं मशहूर शायर अज्म शाकरी के माइक थामते ही फिर से महफिल जवां हो गयी। उनका यह कलाम -” लाखों सदमें ढेरों गम,फिर भी नहीं हैं आंखें नम।एक मुद्दत से रोये नहीं, क्या पत्थर के हो गये हम।” जबकि नदीम फरुर्ख ने पढ़ा-” राह के पत्थर को चकनाचूर होना चाहिए, वार जितना भी हो भरपूर होना चाहिए।” मशहूर शायरा शबीना अदीब के माइक थामते ही तालियों की गड़गड़ाहट से समां बंध गया। उन्होंने अपने कलामों से महफिल लूट ली।”तुम्हारा चेहरा चिरागों में कौन रखता है,मेरी तलह तुम्हारी आंखों में कौन रखता है।
खुदा की जात पर हमको है यकिन, वरना दीये को जलाके हवा में कौन रखता है।” आखिर मुशायरा के सदर नामचीन शायर मंजर भोपाली ने आते ही महफिल लूट ली-“जिंदगी के लिए इतना नहीं मांगा करते, मांगने वाले से काशा नहीं मांगा करते।” “अब तो गजले सुनाना कठिन हो गया,प्यार के गीत गाना कठिन हो गया,
मैंकहां हूं ये गूगल को मालूम है,
उनसे छुपाना कठिन हो गया।” मजाहिया शायर पपलू लखनवी, तरन्नुम की शायरा निकहत मुरादाबादी, शादाब आजमी,गुफरान बुलबुल, नौशाद अनगढ़ आदि के आशार भी सराहे गये।
इस मौके कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद जियाउल रहमान बर्क,विधायक नफीस अहमद,ईं मुजीबुल्लाह,डॉ शाहनवाज, डॉ अमजद खान, एडवोकेट कबीर अहमद, डॉ मंजूर आलम,डॉ अशरफ अली सहित दर्जनों गणमान्य मौजूद थे।
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